
अजी... सुनती हों....
अजी... सुनती हों....
व्यंग्य
अजी सुनती हों....आज सनडे है। कितना प्यारा लगता था....लेकिन अब....। सवेरे रसोई में पहुंची..देखा गैस सिलेण्डर मेरे सामने देखकर मुस्करा रहा है...पूछा क्या हुआ भाई। बोला अब कान कम मरोड़ा करो...दर्द मुझे नहीं तुम्हें होगा..वो क्यूं? आंखें तरेरते बोला....मेरे भाव मालूम है। मुंह बिदक गया मेरा और वो करमजला दांत निपोरने लगा। मैने मन मसोस कर कान मरोड़ा और आंच को इतना धीमा कर लिया कि लग रहा था...कम आंच में कम जलेगी। आगे बढ़ी और सोचा रसोई में अंधेरा है,सर्दियों का समय है थोड़ा बिजली का बल्ब जला लूं...वो मेरे सामने आंखें फाड़कर देख रहा था..दांतों में अंगुुली डालकर बोला,ऊपर की कमाई है क्या? इतनी महंगी बिजली में दिन में भी...,मैने तपाक से बंद किया और आंखें फेरकर पूरे घर को देख लिया..कहीं कोई जीरो वॉल्ट तो नहीं जल रहा। फ्यूज बल्ब भी हंसते हुए बोला....क्यों बहिनजी....जलूं क्या? अब देखो राब भी कहे मुझे दांतों से खाओ। खैर, खामख्वाह कौन इन निर्लज्जों को मुंह लगाए..मैं आगे बढ़ी और सोचा सुबह की चाय और नाश्ता बना लिया जाए...सब्जियों की ओर हाथ बढ़ाया तो आलू के अलावा सारी की सारी सब्जियां...नखरे दिखा रही थी। आलू को चिढ़ा रही थी..तूं एक बीस रुपए किलो बिकता है...लानत है तेरे पर। हमें देख 60 से 80 और 100 से भी पार। तभी तो तूं रोज कटता है, हर घर में। हमें देख..इन दिनों हमें हाथ लगाने से भी कांपते है। आलू अपना पक्ष रखते हुए बोला, एक मैं हूं जो लोगों के काम आ रहा हूं...तुम तो सब इस महंगाई के दौर में उस ओर शामिल हो गए हों, कुछ तो रहम करो। तुम तो सस्ती हो जाओ...सब्जियां बोली ना भाई ना...मेजोरेटी किसके साथ है। सब सरकार ही हमारे साथ है तो फिर हम क्यों आम आदमी के साथ रहें। हम तो सरकार के साथ रहेंगे। पेट्रोल-डीजल-रसोईगैस सबकुछ सरकार महंगा कर रही है। अब हम सरकार के साथ नहीं रहेंगे तो मारे जाएंगे और वो भी सस्ते में। हमें सस्ते में नहीं मरना...हम तो सरकार के साथ अपना भाव बढ़ाकर ही जीएंगे। सब्जियों की इन बातों ने मेरा तो जायका ही बिगाड़ दिया। आलू को लिया और बड़ी मुश्किल से एक टमाटर निकाला और उसको ऐसे काटा जैसे उसे भी दर्द न हों और मुझे भी... मिर्ची बेचारी जो दो तीन इस सब्जी में कट जाती थी और मुफ्त में..वो भी पूरी त्यौरियों में थी। अब आटा-दाल और मसालों की ओर नजर गई तो वो क्यों कम थे,सबके सब भाव खाए हुए। इतने सुनाए,इतने सुनाए कि सुन-सुनकर ही पक गई। बड़ मुश्किल से रसोई से बाहर आई तो सनडे होने से थोड़ी देर से उठे श्रीमान ने कहा-अजी सुनती हों...मैने आव देखा न ताव और सारे के सारे भाव उन पर निकाल दिए...नहीं सुनती...मुझे कुछ नहीं सुनना...,अब आप सुनो...आज से सनडे को भी काम पर जाओ...उन्होंन पूछा ऐसा क्योंं? जवाब दिया-रसोई से पूछो दाम क्या है?
Published on:
22 Nov 2021 12:18 pm
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