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हिन्दी को सलाम

हिंदी दिवस विशेष कविता

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मुकेश अमन

मुकेश अमन

हिन्दी तो बस हिन्दी है ।
मां के सिर की बिन्दी है ।।
उर्दू, अरबी या फिर चीनी,
अंग्रेजी हो या जापानी,
सारे जग में सबसे सुन्दर,
सबसे मीठी हिन्दी है ।

हिन्दी तो बस हिन्दी है ।
मां के सिर की बिन्दी है ।।
हिन्दी मातृभाषा है ,
जनगणमन की आशा है,
आज खुले में, नीलगगन में,
नही किसी की बन्दी है ।

हिन्दी तो बस हिन्दी है ।
मां के सिर की बिन्दी है ।।
हिन्दी जैसे गंगा-जमुना,
ज्यूं सबुह का सच्चा सपना,
मुंह खुले रसधार बहे,
श्वास-श्वास में हिन्दी है ।

हिन्दी तो बस हिन्दी है ।
मां के सिर की बिन्दी है ।।
माटी की है सौरभ इसमें,
हम सबका है गौरव इसमें,
हिन्दी से पहचाने जाते,
हर बात हमारी हिन्दी है ।

हिन्दी तो बस हिन्दी है ।
मां के सिर की बिन्दी है ।।

हिन्दी तो बस हिन्दी है ।
मां के सिर की बिन्दी है ।।

गीतकार- - मुकेश अमन
बाड़मेर राजस्थान


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