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रतन दवे@बाड़मेर. मैं बाड़मेर का श्मशानघाट हूं। आपने सुना नहीं होगा कि कहीं पर मैं भी जिंदा होता हूं और मुस्कराने लगता हूं लेकिन मैं यहां जिंदा हुआ। मुस्कराया भी और मैने मरघट पर जीवन जीने का संदेश दिया। यह आश्चर्यजनक कमाल कैसे हुआ इसकी कहानी सुनाता हूं। वर्ष 2007 के करीब मेरी सुध ली गई। तत्कालीन नगरपालिका बोर्ड ने तय किया कि मुझमें प्राण फूंकेंगे। फिर क्या था, यहां मेरे निष्प्राण शरीर के लिए हर समाज को अलग-अलग जगह देकर जिम्मेदारी दी गई। पेड़ों के साथ पार्क विकसित हुआ। देखते ही देखते द्वार बने। स्वीमिंग पूल भी हो गया। हरीभरी दूब बिछा दी गई। अस्थियां रखने के लिए अलमारियां लगी। लोगों के बैठने के लिए हॉल बना।
पक्षियों के लिए चिडि़याघर,बेसहारा पशुओं के लिए गोशाला, बेआसरा लोगों को भी आसरा। जिस मरघट में केवल मुर्दों को जलाने लाया जाता था उसमें जिंदगी ने एेसे प्रवेश किया कि सुबह-शाम लोग यहां योग व व्यायाम करने आने लगे। दिन में भी कई लोग पेड़ों की छांव तले आकर सो जाते और पार्क की तरह यहां पर भी बात करते कई लोगांे को मैने सुना। वीरानगी में मेरे पास फटकने से डरने वाले लोगों ने मेरे यहां बदलाव के बाद से यहां से गुजरने वाली सड़क को मुख्य मार्ग बना लिया। इस कार्य में नगरपरिषद बोर्ड के साथ ही आम लोगों ने भी पूरा साथ दिया।
पत्रकार भूरचंद जैन और पार्षद भवानीसिंह मामा को तो मैं भूल ही नहीं सकता। अपने जीवन को मेरे लिए समर्पित कर दिया। इसी का परिणाम था कि मुझे श्मशान की बजाय पार्क समझे जाने लगा था। जो भी यहां आता कहता कि क्या श्मशान बना है, वास्तव में यह काम है। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था लेकिन बीते दिनों से मेरी बेकद्री शुरू हो गई है। एक अफसर आया और उसको लगा कि मेरे यहां नगरपरिषद के कार्मिकों की क्या जरूरत? बारह कार्मिक यहां क्यों दिए गए हैं? यहां काम करने वालों ने इल्तिजा की कि यह बहुत जरूरी है। इसकी हालत खराब हो जाएगी लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी और यहां से कार्मिक हटा दिए।
नतीजा मेरी मुस्कान जाती रही। हरियाली उजडऩे लगी है। पेड़ों की डालियां बिखर गई हैं। पत्थर टूटने लगे हैं। हरी दूब सूख चुकी है। यहां आने वालों को अब पानी भी नसीब नहीं होता। कोई जवाब देने वाला नहीं मिल रहा है। समझदार अफसर की इस नासमझी ने मेरी जिंदगी को मौत की ओर बढ़ा दिया है। ...अब...अब मुझे आपकी जरूरत है। आप ही मुझे प्राण दे सकते हैं । 36 कौम के सभी लोग मुझसे जुड़े हैं। मुझे जिंदा रहना है। मैं नहीं चाहता कि मेरी मौत हो। तुमसे जिंदगी मांग रहा हूं...। दोगे न...। आज से मैं बोलूंगा और तुम केवल सुनोगे नहीं, सारे जिम्मेदारों को सुनाओगे और मुझे उम्मीद है तुम मुझमें प्राण फूंकोगे। फूंकोगे न....। मैं श्मशान बोल रहा हूं...मेरी सुध लो।
कार्मिक हटा दिए
यहां लगे हुए कार्मिकों को हटा दिया गया है। इससे परेशानी हुई है। सफाई सहित सभी कार्य प्रभावित हो रहे हैं। कार्यवाहक आयुक्त के मना करने के बाद ठेकेदार के कार्मिक नहीं आए हैं। इनको वापिस भेजा जाए तो स्थिति में सुधार होगा। अभी स्थिति खराब होने लगी है।- भवानीसिंह राठौड़, मुख्य व्यवस्थापक श्मशान समिति
Published on:
01 Nov 2017 12:18 pm
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