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जानिए मजदूरी देने में बाड़मेर कैसे है देश में दूसरे स्थान पर

100 दिन काम करने के लिए टांका, सड़क और व्यक्तिगत कार्य पर जोर देने के साथ ही अधिकतम को मजदूरी का लक्ष्य तय किया। काम और मांग बढ़ते गए और जब परिणाम आया तो पता चला कि देश में हम दूसरे स्थान पर है।

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जानिए मजदूरी देने में बाड़मेर कैसे है देश में दूसरे स्थान पर

जानिए मजदूरी देने में बाड़मेर कैसे है देश में दूसरे स्थान पर



यह अकल्पनीय और बड़ा लक्ष्य था। 100 दिन का रोजगार देने में देश में दूसरे स्थान पर आना,लेकिन मुझे लगता है कि यह केवल मजदूरों की मेहनत का नतीजा रहा। कोरोना के काल ने मजदूरी के ताले लगा दिए तो बेरोजगार हुए लोग जब घर लौटे तो उनको मनरेगा में मजदूरी देने के द्वार खोल दिए गए। 100 दिन काम करने के लिए टांका, सड़क और व्यक्तिगत कार्य पर जोर देने के साथ ही अधिकतम को मजदूरी का लक्ष्य तय किया। काम और मांग बढ़ते गए और जब परिणाम आया तो पता चला कि देश में हम दूसरे स्थान पर है।

100 दिन का रोजगार

वर्ष 2021-22 के दौरान ग्रामीण इलाकों में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने में बाड़मेर जिले ने द्वितीय स्थान हासिल किया गया है, जबकि ओडिशा का गंजाम जिला रोजगार उपलब्ध करवाने में देश में प्रथम है। बाड़मेर जिले में 1 लाख 21 हजार 161 परिवारों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया। वर्ष 2021-22 के दौरान 4 लाख 98 हजार 508 परिवारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाते हुए प्रदेश में सर्वाधिक 3 करोड़ 75 लाख 65 हजार 769 मानव दिवस सृजित किए। इसमें से 1 लाख 21 हजार 161 परिवारों ने 100 दिवस पूर्ण किए, जो पूरे प्रदेश में सर्वाधिक है। औसत मजदूरी दर 211 रुपए प्रतिदिन रही है। यह औसत मजदूरी दर भी राज्य में सर्वाधिक है।

44 हजार 152 नए कार्य स्वीकृत

वर्ष 2021-22 के दौरान 44 हजार 152 नए कार्य स्वीकृत किए गए। इसके अलावा प्रगतिरत कार्यों में से 44 हजार कार्य पूर्ण करवाते हुए 1174 करोड़ इसमें से श्रम मद में 789 करोड़ तथा सामग्री मद में 376 करोड़ रूपए खर्च हुए है। जो कि राज्य के कुल व्यय का लगभग 21 प्रतिशत है।
वर्ष 2020-21 के दौरान देश भर में लॉक डाउन लगा लेकिन यहां काम का लॉकडाउन नहीं था। भारी तादाद में प्रवासी श्रमिक बाड़मेर लौटे थे। इसकी वजह से मनरेगा में रोजगार की मांग बढ़ गई। साथ ही स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध करवाने से उनको खासी राहत मिली। इन मजूदरों की मेहनत का नतीजा ैकि स्थाई परिसपंतियों का सृजन हुआ।ग्रेवल सड़कों के निर्माण से आवागमन सुगम हुआ है। वहीं टांका निर्माण होने से बारिश के पानी के संग्रहण के साथ ग्रामीणों को पेयजल संकट से राहत मिली है। यह आंकड़े इतिहास बनते है। देश में दूसरे स्थान पर बाड़मेर को पहुंचाने की बधाई के असली हकदार मजदूर है। इसमें यह भी कहेंगे कि महिला मजदूरों की संख्या ज्यादा रही है। नारीशक्ति मनरेगा में आगे रहती है।

गेस्ट एडिटर
मोहनदान रतनू, मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद


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