5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

जानिए, कौनसे रेलमार्ग पर बमबारी के बीच चलती रही रेल

भारत और पाक के बीच 1947 का बंटवारा हुआ लेकिन दोनों मुल्क बंटते-बंटते भी एक जुड़ाव रखे हुए थे। वह जुड़ाव था मेरे मार्ग से। 1900 में बने मार्ग पर अनवरत मीटरगेज रेल दौड़ रही थी, लेकिन युद्ध 1965 में दोनों देशों में तनाव ऐसा बढ़ा की हमला बोल दिया। पश्चिमी सीमा का गडरारोड़ इलाका।

3 min read
Google source verification
जानिए, कौनसे रेलमार्ग पर बमबारी के बीच चलती रही रेल

जानिए, कौनसे रेलमार्ग पर बमबारी के बीच चलती रही रेल

मैं थार एक्सप्रेस: युद्ध 1965 बिखरा पटरियों पर खून, टूटा 65 साल का रिश्ता
बाड़मेर पत्रिका.
भारत और पाक के बीच 1947 का बंटवारा हुआ लेकिन दोनों मुल्क बंटते-बंटते भी एक जुड़ाव रखे हुए थे। वह जुड़ाव था मेरे मार्ग से। 1900 में बने मार्ग पर अनवरत मीटरगेज रेल दौड़ रही थी, लेकिन युद्ध 1965 में दोनों देशों में तनाव ऐसा बढ़ा की हमला बोल दिया। पश्चिमी सीमा का गडरारोड़ इलाका। युुद्ध अपने पूरे चरम पर था। भारत की सेना ने गडरारोड़, मुनाबाव, सुन्दरा सहित पूरे पश्चिमी इलाके में मोर्चा संभाला हुआ था। सैनिक जाबांजी के साथ लड़ रहे थे। मेरा यही मार्ग जो 1900 में बना था यहां मीटरगेज रेल से सैनिक पहुंचे थे और मालगाडिय़ों से सैनिक असला। राशन सामग्री से लेकर बड़े-बड़े टैंक लदकर आए। सेना के वाहन और सैनिकों का पूरा लवाजमा। पश्चिमी सीमा इतनी मजबूूत थी कि पाकिस्तान को सीमा के इस इलाके पर कमजोर हो गया। पाकिस्तान को एक बात समझ में आ गई कि यदि ये पटरियां और रेल शुुरू रही तो भारत कहीं पर भी कमजोर नहीं होगा और पश्चिमी सीमा से फतेह सुनिश्चित है। ऐसे में 9 सितंबर 1965 को बाड़मेर से र वाना होकर मुनाबाव तक आ रही एक राशन सामग्री की रेल की जानकारी पाकिस्तान को मिली तो पाकिस्तान ने इस मार्ग पर हवाई हमला बोल दिया। हवाई हमले की जानकारी भारत को थी और भारत ने रेलवे के अधिकारियों को इसको साझा किया कि रेल रवाना होती है तो हमला हो सकता है। दूसरा रेल से पहुंचने वाली राशन सामग्री भी सेना के लिए बहुत जरूरी है। रेलवे के पीडब्ल्यूआइ रूपचंद चौधरी ने रेलवे कार्मिकों को देशसेवा के लिए आह्वान किया और ये रेलकर्मी अपनी जान हथेली पर लेकर रेल में सवार हो गए। गडरारोड़ से पहले ही पाकिस्ताने हमला बोल दिया। रेल पटरिया उखडऩे लगी। रेलवे के हमारे इन जांंबाजों ने अदम्य साहस, वीरता और देशप्रेम के जज्बे से पटरियों को दुरुस्त करना शुरू किया और रेल को आगे बढ़ाते गए। एक-एक कर 17 रेलकर्मी शहीद हो गए। रेल पटरियों पर इनकी पार्थिव देह और देशप्रेम के उबाल वाला खून बिखरता गया। रिश्तों की मिठास के लिए बिछा मेरा यह मार्ग आज खून से सन्न हो रहा था और दोनों मुल्क जो इस मार्ग को रिश्तेदारी के लिए शुरू किए हुए थे युद्ध की नौबत में आमने-सामने थे। रेलकर्मियों की शहादत और वीरता की वजह से रेल राशन सामग्री लेकर अंतिम स्टेशन मुनाबाव तक पहुंच गई लेकिन ये रेल पटरियां युद्ध में उखड़ गई। युद्ध समाप्त हुआ और भारत ने अपनी ओर से रेल पटरियां दुरस्त करवाने का कार्य भी कर लिया लेकिन कटुता दोनों मुल्कों में ऐसी बढ़ी कि यह मार्ग बंद कर दिया गया। 1965 के बाद 1971 का युद्ध हुआ और इसके बाद 41 साल तक यानि 18 फरवरी 2006 तक इस मार्ग को भारत-पाक के लिए बंद रखा गया। भारत के आखिरी स्टेशन मुनाबाव तक तो रेल चल रही थी जो भारत की रेल सेवा थी लेकिन आगे गेट बंद। उधर पाकिस्तान के आखिरी रेलवे स्टेशन खोखरापार तक तो रेल का आना ही बंद हो गया। 41 साल तक बिछोह का एक लंबा समय ऐसा बीता कि मुझे लगता है उस समय की पीढ़ी ने तो फिर यह सोचना ही बंद कर दिया कि कभी इस मार्ग से कोई रेल गुुजरेगी....कभी मुनाबाव का बॉर्डर गेट भी खुलेगा...उस पार से कोई बेटी, बहू, पिता-मां, भाई-बहिन इधर आएंंगे और इधर से इस मार्ग से कोई उधर भी जाएगा...रिश्ते रिस रहे थे, ***** रहे थे, आंसू पी रहे थे, बिछोह सह रहे थे लेकिन कोई आवाज न थी...पटरियां बिछी थी लेकिन लोहा बनकर..., जो लोग इधर-उधर रिश्तेदारी से जुड़े थे वे इन पटरियों को देखकर आंसूू बहाते और चल पड़ते...1965 में बिछा खून मुझे 41 साल तक खून के आंसू रुला गया..(क्रमश:)


बड़ी खबरें

View All

बाड़मेर

राजस्थान न्यूज़

ट्रेंडिंग