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अलर्ट : अब लेप्टोस्पाइरोसिस ने बजाई खतरे की घंटी

बुखार के साथ ही होती है रोग की शुरुआतवायरस के बाद अब बैक्टीरिया कर सकता है बीमारअब स्वास्थ्य पर लेप्टोस्पाइरोसिस के हमले की आशंकाजंगली जानवर और पालतू पशुओं के संपर्क में रहने वाले हाई रिस्क जोन में

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अलर्ट : अब लेप्टोस्पाइरोसिस ने बजाई खतरे की घंटी

अलर्ट : अब लेप्टोस्पाइरोसिस ने बजाई खतरे की घंटी

महेंद्र त्रिवेदी
बाड़मेर. बारिश के बाद मौसमी बीमारियां लगातार बढऩे से पालतू पशुओंं से इंसानों में लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी फैलने का खतरा बढ़ गया है। चिकित्सा विभाग ने इसके लिए अलर्ट रहने के लिए गाइडलाइन जारी की है। प्रदेश में इस बीमारी के कुछ जिलों में केस मिल चुके हैं। इसलिए सतर्कता बरतना जरूरी हो गया है।
लेप्टोस्पाइरोसि बीमारी में सामान्यत: बुखार और मांसपेशियों में दर्द होता है। इसका इलाज संभव है, लेकिन बुखार होने पर चिकित्सकीय जांच नहीं करवाने पर यह घातक हो सकता है। इसके रोगी कई जिलों में मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग अलर्ट हो गया है।
ये हैं हाईरिस्क पर
इस रोग का मुख्य रूप से खतरा खेती करने वाले, पशुपालक, पशु चिकित्सक, नहर व नालों की सफाई करने वाले लोगों पर खतरा मंडराता है। जहां पानी एकत्रित होता है, वहां इस रोग का खतरा बढ़ता है। यह संक्रमण आंख, नाक व मुंह के सपंर्क के साथ त्वचा के कटे-फटे होने पर चपेट में ले सकता है। पालतू पशुओं और जंगली जानवरों के संपर्क में रहने वालों को अधिक सुरक्षित तरीके अपनाने की जरूरत है। जूनोटिक बीमारी लेप्टोस्पाइरा नामक बैक्टीरिया से फैलती है।
दो तरह के लक्षण
एनिक्टेरिक (माइल्ड) लेप्टोस्पाइरोसिस :
करीब 90 फीसदी मरीजों में माइल्ड तरह का लेप्टोस्पाइरोसिस पाया जाता है। इसमें बुखार और मांसपेशियों में दर्द के लक्षण सामने आते हैं और मरीज पूरी तरह से निढाल हो जाता है।
इक्टेरिक (सिवियर) लेप्टोस्पाइरोसिस :
यह 5-10 फीसदी मरीजों में मिलता है। इसमें बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, पेटदर्द, उल्टी व पीलिया हो जाता है। गंभीर स्थिति में रक्तस्राव, किडनी फेलियर व रेस्पोरेटरी फेलियर का कारण बन सकता है।
चार अलग-अलग तरह की जांच
लेप्टोस्पाइरोसिस की जांच के लिए कल्चर, माइक्रोस्कोपी, इम्यूनोलॉजी-एलाइजा, मेट व मॉलिक्यूलर-पीसीआर टेस्ट करवाने पड़ते है। इससे ही रोग की गंभीरता पता की जा सकती है।
रोकथाम और नियंत्रण के उपाय
निदेशालय की ओर से जारी गाइडलाइन में रोग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए भी उपाय सुझाए गए हैं। संक्रमित पशुओं के साथ काम करते समय सुरक्षा उपकरणों का उपयोग, संपर्क के बाद हाथ धोने, लोगों के कार्यक्षेत्र और निवास के आसपास रोडेंट्स का नियंत्रण करना भी शामिल है। वहीं हाईरिस्क ग्रुप के लोगों को डॉक्सीसाइक्लिन-200 दवा साप्ताहिक रूप से 6 सप्ताह तक कीमो प्रोफाइलेक्सिस के रूप में दी जाती है। साथ ही हाईरिस्क व जलभराव वाले क्षेत्रों की मैपिंग भी करवानी होगी। कृषि, पशुपालन व नगर परिषद के समन्वय करते हुए रोकथाम और नियंत्रण की गतिविधियां करवाने के लिए भी कहा गया है।


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