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पांव से लिखा, लीलाधर को नौकरी, लीला अपने पैसों को तरस रही

बीकानेर में रोजगार शिविर में लीलाधर ने पांव से लिखा और उसको तुरंत रोजगार मिला। लीला के पांवों से लिखने की काबिलियत की तारीफ भी खूब हुई।

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रतन दवे
पत्रिका न्यूज नेटवर्क/बाड़मेर।बीकानेर में रोजगार शिविर में लीलाधर ने पांव से लिखा और उसको तुरंत रोजगार मिला। लीला के पांवों से लिखने की काबिलियत की तारीफ भी खूब हुई। केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभारी हुआ। वहीं बाड़मेर में एक बेटी लीला पांवों से पत्र लिख-लिखकर हार गई है लेकिन उसकी मदद कहीं नहीं हो रही है।

हापों की ढाणी की रहने वाली लीला के दोनों हाथ करंट लगने से बचपन में ही काटने पड़े थे। लीला उस समय चौथी कक्षा में पढ़ती थी। हाथ कटने के बाद बेटी के भविष्य को लेकर पिता भूरसिंह की चिंता बढ़ गई, लेकिन लीला ने स्कूल जाना नहीं छोड़ा। लीला ने हाथ छोड़ पांवों से लिखना शुरू किया और वह अब स्नातक प्रथम वर्ष में पढ़ रही है।

क्रेडिट कॉपरेटिव में जमा करवाने की भूल
लीला की यह राशि परिजनों ने एक क्रेडिट कॉपरेटिव सोसायटी में जमा करवा दी और वह बंद हो गई। तब से लीला लगातार पांवों से पत्र लिख-लिखकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रधानमंत्री मोदी व न्यायालय तक गुहार पहुंचा चुकी है। करीब आठ माह पूर्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अपनी दास्ता बताई थी। उन्होंने यहां जांच करवाई और रिपोर्ट मंगवाई। लेकिन लीला को अभी तक राशि नहीं मिली है।

लीला को मदद की राशि मुश्किल से मिली थी। अब केन्द्र या राज्य जो भी हों मदद करें। वो आगे पढ़ना चाहती है। उसको मदद की बहुत जरूरत है।- नरेन्द्र सिंह, लीला के भाई

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पत्रिका बनी हमदर्द
2013-14 में पत्रिका ने लीला के दर्द को समझा औैर उसके दोनों हाथ डिस्कॉम की लापरवाही की वजह से कटने के बावजूद मुुआवजा नहीं मिलने के मुद्दे को प्राथमिकता से उठाया। करीब सात साल पहले का मामला होने के बावजूद डिस्कॉम ने पत्रिका के अभियान बाद राशि दी। इधर, भामाशाहों ने भी करीब 1.50 लाख रुपए दिए। छह लाख रुपए मिलने पर लीला और परिवार इस बात से आश्वस्त था कि अब लीला को सहारा मिलेगा।


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