scriptकोरोना में छूटी कमाई, लौटे घर, अब गांव में मिल रहा रोजगार | Missed earnings in Corona, returned home, now getting employment in vi | Patrika News
बाड़मेर

कोरोना में छूटी कमाई, लौटे घर, अब गांव में मिल रहा रोजगार

– युवाओं में गांवों की ओर लौटने की बढ़ी सोच
– गांवों में शुरू किया व्यवसाय, अभिभावक बच्चों के साथ छोड़ रहे शहर

बाड़मेरSep 14, 2020 / 08:49 pm

Dilip dave

कोरोना में छूटी कमाई, लौटे घर, अब गांव में मिल रहा रोजगार

कोरोना में छूटी कमाई, लौटे घर, अब गांव में मिल रहा रोजगार

केस संख्या १- बाड़मेर में सालों से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे तरातरा निवासी सवाईराम शहर में पाट्र्स टाइम जोब करते थे। कोरोना लॉकडाउन में घर गए और कई माह वहां रहे तो घर पर रहकर की तैयारी करने लगे। पाट्र्स टाइम नौकरी छुटी तो गांव में रोजगार की सोची और ईमित्र खोल दिया। आज वे गांव में ही रोजगार प्राप्त कर रहे हैं तो उनके भाई भी अन्य जगहों से गांव आ गए और दुकानें खोल ली।
केस संख्या २- बिसारनिया निवासी रेखाराम बाड़मेर में रहकर रीट की तैयार कर रहे थे। वे पाट्र्स टाइम जोब भी करते थे। कोरोना में घर गए तो पाट्र्स टाइम जोब छूट गई, वहीं कामकाज की जरूरत महसूस हुई तो इधर-उधर पूछताछ की। यार दोस्तों की सलाह से अब वे गांव में ही ईमित्र केन्द्र खोल रहे हैं जहां कुछ आय भी होगी तो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर पाएंगे।
केस संख्या ३- बाड़मेर में रहकर बच्चों का भविष्य संवारने की सोच के साथ शेराराम दो बच्चों के साथ मकान किराए पर रह कर रहे थे। उनकी पत्नी की नौकरी सीमावर्ती सेड़वा क्षेत्र में होने पर वो वहीं रहती थी। पति व बच्चे बाड़मेर व पत्नी सेड़वा क्षेत्र में रहने से आने-जाने की दिक्कत थी, लेकिन अंगे्रजी माध्यम की पढ़ाई के चलते दो साल से मजबूरी में रह रहे थे। लॉकडाउन में बच्चे व शेराराम सेड़वा गए तो वहां पता चला कि ब्लॉक में महात्मागांधी अंग्रेजी माध्यम की सरकारी स्कू ल खुल गई है। इस पर वे बच्चों को बाड़मेर से वहां लेकर गए और अब गांव में रहकर ही बच्चों को पढ़ाएंगे।
केस संख्या ४- बाड़मेर शहर में सालों से रह रहे नारायणसिंह के परिवार को भी कोरोना में गांव सुरक्षित लगा। दस दिन का कहकर नारायणसिंह अपने पोते-पोतियों सहित गांव गए। वहां की आबोहवा के साथ कोरोना संक्रमण का खतरा भी कम लगा तो पांच- छह माह से वहीं रह रहे हैं। बच्चे कह रहे हैं कि जब तक स्कू ल नहीं खुलता वे गांव में ही रहेंगे।
दिलीप दवे

बाड़मेर. कोरोना संक्रमण के बीच शहरों से गांवों की ओर पलायन की सुखद तस्वीर भी नजर आई है। बाड़मेर शहर में कई जने एेसे हैं जो सालों से रहते थे, लेकिन अब वे गांव में ही रोजगार की तलाश कर रहे हैं या फिर रोजगार शुरू कर दिया है। बच्चों की पढ़ाई का विकल्प भी अपने गांव या आसपास के गांवों में तलाशा जा रहा है जिसके कि उन्हें वापिस शहर नहीं आना पड़े। वैश्विक महामारी कोरोना का एक तरफ जहां नकारात्मक प्रभाव पड़ा है तो दूसरी ओर इसकी गांवों के लिए सुखद संदेश भी लेकर आई है।
बाड़मेर शहर सहित अन्य शहरों में सालों से रोजगार पर लगे ग्रामीण अपने घरों की ओर लौट गए हैं। एेसे में गांवों में ही रोजगार की संभावना तलाश करते हुए वे वहीं रहने की सोच के साथ गांवों में स्थायी निवास कर रहे हैं। शहर में सालों से रह रहे कई युवाओं को व्यापार, कृषि और स्वरोजगार गांवों में मिल गया है जिस पर वे अब गांवों में रहने लगे हैं। वहीं, खेती-किसानी के प्रति भी युवाओं में रुझान दिखा है।
बॉर्डर से लेकर बाड़मेर के आसपास के गांवों में कई युवा जब तक कोरोना संक्रमण का दौर पूरी तरह से खत्म नहीं होता तब तक गांव में ही रहकर कामकाज कर रहे हैं। इधर, अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई या निजी स्कू लों में शिक्षण के चलते शहरों में रह रहे अभिभावक भी अब गांव व आसपास के क्षेत्र में एेसे स्कू ल तलाश कर रहे हैं जहां वे अपने बच्चों को पढ़ा सके।
कुछ अभिभावक वापिस आना तो चाह रहे हैं, लेकिन जब तक हालात सामान्य नहीं होते वे अपने छोटे बच्चों को शहर में लाने से परहेज बरत रहे हैं।

गांवों की ओर जाने की सोच- बड़े शहरों में कोरोना का असर है इसलिए गांवों में युवा अभी घरों में रहकर ही कार्य करना चाह रहे हैं। इसके चलते कई युवाओं ने दुकानें खोल दी है तो कई कृषि कार्य में लग गए हैं। गांवों की ओर लौटने की सोच युवाओं में नजर आ रही है।- कानसिंह राजगुरु, ग्रामीण बीसू
गांवों में मिल रहा रोजगार- तकनीकी युग में युवाओं का कम्प्यूटर का ज्ञान होने पर रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। एेसे में युवा गांवों में ही रोजगार की तलाश कर रहे हैं। यह अपने आप में सुखद स्थिति है।- महेश पनपालिया, सामाजिक कार्यकर्ता
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो