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उत्तर गुजरात-बड़ी सभाओं में बड़ा खाना, शराब के चोर रास्ते खुले

गुजरात में चुनाव के दौर में मतदाता के ठाट से इंकार नहीं है। यहां बड़ी सभाओं मेें भरपूर बड़े खाने का रिवाज है तो दूसरी ओर शराबबंदी के इलाके में शराब भी पहुंच रही है। चुनाव लडऩे वालों में अमीरों की संख्या ज्यादा होने से वोटर्स और कार्यकर्ताओं की सहूलियत में कोई कमी नहीं रही है।

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उत्तर गुजरात-बड़ी सभाओं में बड़ा खाना, शराब के चोर रास्ते खुले

उत्तर गुजरात-बड़ी सभाओं में बड़ा खाना, शराब के चोर रास्ते खुले


रतन दवे
बनासकांठा
गुजरात में चुनाव के दौर में मतदाता के ठाट से इंकार नहीं है। यहां बड़ी सभाओं मेें भरपूर बड़े खाने का रिवाज है तो दूसरी ओर शराबबंदी के इलाके में शराब भी पहुंच रही है। चुनाव लडऩे वालों में अमीरों की संख्या ज्यादा होने से वोटर्स और कार्यकर्ताओं की सहूलियत में कोई कमी नहीं रही है। इस बार के चुनाव में भाजपा ने रैलियों, सभाओं और रोड़ शो के तमाम पिछले रिकार्ड तोड़ दिए तो आम आदमी पार्टी ने भी दम लगाया। कांग्रेस का मतदाता वोटबैंंक की तरह है लेकिन इनके लिए भी खातिरदारी वोट की व्यवहारिक जरूरत माना जाता है।
बनासकांठा के एक इलाके में बड़ी सभा हो रही थी। इस सभा में पचास हजार से अधिक लोग नौ जिलों से जुट रहे थे। सभा स्थल से करीब दो किमी दूर एक खेत में बड़ा पंडाल लगा हुआ था। जहां पर आने वालों के लिए हलुआ, चावल, दाल और एक सब्जी के बड़े-बड़े बर्तन भरे पड़े थे। पीने के पानी को ट्रेक्टर लगाकर देसी जुगाड़ से यहां नल लगा रखे थे। नीचे बैठकर पंगत की तरह भोजन का दौर सभा से दो घंटे पहले प्रारंभ हो गया था। भरपेट खाने की छूट थी तो चककर खाने में मशगूल दिखे। खाने को लेकर यहां व्यवस्था में लगे ईसरभाई ओदिच्य बोले,यह तो जरूरी है। इतनी दूर से आए लोग भूखे थोड़े ही जाएंगे । यह खर्चा कौन करता है तो वो बोले-जिसको चुनाव लडऩा है वो ही करेगा। चुनाव आयोग की पाबंदी की चर्चा हुई तो बोले- जमवा नूं सूं हिसाब राखवा नूं... आमां कोई छतरीस भोजन तो नथी..दाल-भात अनै सीरो छै..। खैर, यह एक सभा इस बात का आंकलन करवा रही है गुजरात में दावतों का एक बड़ा दौर इस एक महीने में चला है। चाहे वह उत्तर गुजरात हों याा फिर पूरा प्रदेश।
शहरी कल्चर ऐसा
ग्रामीण इलाके की सभाओं में जहां यह दावत का दौर चला है तो शहर में अलग मिजाज रहा। शहरों में आम तौर पर यहां दिन में कार्यालय या अन्यत्र कार्यकर्ता पार्टी के दफ्तरों में पांच-सात ही नजर आते है,लेकिन शाम को मजमा जमता है। पालनपुर में ललितभाई पाटीदार कहते है कि काम-धंधे वाले लोग है। दिन में समय नहीं मिलता लेकिन रात 8 बजे बाद यहां दफ्तर के आगे भीड़ रहती है। यहां चाय और नाश्ते का प्रबंध रहता है। शहरों में मतदाता इसमें भी खाने-पीने को लेकर पार्टी दफ्तर में कम आते है।
बंद है शराब, पर मिलती है
शराबबंदी गुजरात में है लेकिन यहां शराब मिलने से कोई इंकार नहीं करता। चुनावों के दौर में आदिवासी इलाकों में तो शराब बांटी ही जाती है। देसी शराब ज्यादा बिकती है। राजस्थान से यहां अवैध शराब आने के रास्ते है। पंजाब और चण्डीगढ़ निर्मित शराब पहुंचती है। राजस्थान के बाड़मेर-बांसवाड़ा-सिरोही जिलों के चोर रास्ते चुनावों में भी खुले है।


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