
Panchayati Raj Election
रतन दवे
पंचायती राज में मिले महिला आरक्षण का मखौल उड़ रहा है। पुरुषों ने महिलाओं को मिले आरक्षण पर जीत-हार से पहले ही अतिक्रमण कर लिया है। सारी संवैधानिक संस्थाएं इस मुद्दे पर मौन है।
सरकार भी सख्त नहीं है। मतदाता भी संबंधित क्षेत्र में महिला के नाम पर राजनीति कर रहे पुरुषों को यह प्रश्न नहीं कर रही है कि आप क्यों? जो चुनाव लड़ रही है वो महिला कहां है? सुदूर एक गांव में महिला का निर्विरोध चुनाव होते ही उसे घर भेज दिया गया और परिवार के रिश्तेदार पुरुष मालाओं से लकदक होकर घूमने लग गए।
एक जगह 91 साल की महिला चुनाव लड़ रही है। पता चला कि बेटे के पांच संतानें है इसलिए पत्नी को नहीं लड़ा पाया तो वृद्ध मां को आगे कर दिया, यानि दो संतान के कानून को भी एेसे धत्ता बता दिया गया।
91 साल की मां कहां राजनीति करेगी उसकी तो अब बोलने, उठने और चलने-फिरने की स्थिति नहीं है। प्रचार-प्रसार के लिए छपे पम्फलेट में पुरुषों ने महिलाओं के फोटो तक प्रकाशित नहीं किए है, खुद का चेहरा आगे लाया गया।
यानि वे महिला का चेहरा भी सामने लाना नागवार मान रहे हैं तो क्या उम्मीद करंेगे कि सरपंच चुनने के बाद कभी वे उसे ग्राम पंचायत भवन में कदम रखने की भी अनुमति देंगे।
दरअसल यह स्थितियां प्रदेशभर में है। गांवों में शिक्षा का स्तर कमजोर होने के साथ ही महिलाओं को घर की दहलीज तक ही सीमित रखा जा रहा है। आरक्षण और कानूनी पेचीदगियों के चलते अब महिलाओं को चुनाव लड़ाना मजबूरी हो गया है लेकिन काम असल में पुरुष ही करेंगे।
पिछले दस सालों में एेसे उदाहरण भी मिले है कि महिला सरपंच की ग्राम पंचायत में अनियमितता होने पर महिलाओं को जेल जाना पड़ा है और उनके खिलाफ पुलिस में मामले चले है जबकि संबंधित महिला का इससे कोई लेना देना नहीं रहा, वह तो मुहर के रूप में इस्तेमाल हुई।
यहां जिम्मेदारी सरकार की बनती है कि पहले कदम से ही सख्त हो जाए। तय कर लिया जाए कि चुनाव प्रचार-प्रसार से लेकर जैसे ही महिला शपथ लंेगी पुरुष रिश्तेदारों की दखलअंदाजी बंद कर दी जाए। ग्राम स्तर के पंचायती राज के कर्मचारियों को कड़े निर्देश हों कि महिला जहां चुनी गई है वहां पर पुरुषों की दखल हुई तो इसके लिए व्यक्तिश: जिम्मेदारी तय होगी।
विकास अधिकारी से लेकर जिला कलक्टर तक इसके लिए जिम्मेदार होंगे। केवल आरक्षण देने से महिला सशक्तिकरण का युग नहीं आएगा। वास्तविकता तो यह है कि ग्राम पंचायत की बैठक से लेकर स्कूल की सामान्य अभिभावक बैठक तक मंें महिला जनप्रतिनिधि नहीं आती है। इक्कीसवीं सदी में महिला सशक्तिकरण के कानूनी हक की बात पहले दिन से करना सब जिम्मेदारों की जिम्मेदारी है।
Published on:
19 Jan 2020 03:19 pm
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