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rail पचपदरा में 32 साल बाद रेल चलाने की तैयारी

- अंग्रेजों के जमाने में चलाई थी रेल- बाढ़ के बाद बंद हो गई थी- अब फिर से चलाने की तैयारी

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rail पचपदरा में 32 साल बाद रेल चलाने की तैयारी

rail पचपदरा में 32 साल बाद रेल चलाने की तैयारी

बाड़मेर .
वक्त का पहिया कैसे घूमता है यह देखना है तो बाड़मेर जिले के पचपदरा कस्बे आ जाइए। अंग्रेजों के जमाने में नमक की वजह से आर्थिक राजधानी बना और अब राज्य के मेगा प्रोजेक्ट refinery के कारण फिर से यहां आर्थिक छलांग है। यहां 1990 की बाढ़ के बाद से बंद रेल को पुन: प्रारंभ करने की तैयारियां शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री ने जयपुर बैठक में इसके लिए सुझाव मांगे है।
जयपुर में हुई रिफाइनरी की बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पचपदरा को फिर से रेलसेवा से जोडऩे के लिए बात की। यह रेल सेवा अब बढ़ी आबादी की वजह से बालोतरा से लिंक होगी या खेड़-तिलवाड़ा से इसको लेकर भी विचार विमर्श किया जा रहा है ताकि सुगमता के साथ परिवहन हो सके।
क्यों है अब जरूरी
refinery project को सड़क के साथ रेल परिवहन से जोडऩा जरूरी है। बालोतरा तक रेल सेवा है लेकिन आगे पचपदरा रिफाइनरी तक करीब 18 किमी रेलसेवा नहीं है,लिहाजा यहां तक रेल लाइन बिछाने का कार्य किया जाएगा। रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल हब के लिए यह जरूरी है।
नहीं रहेगी परेशानी
पचपदरा में रेलवे की जमीन पहले से ही है,जहां रेलवे के कार्मिक रहते थे। यहां रेलवे का एक बड़ा प्रोजेक्ट लगाने की भी योजना थी
1938 में पहली बार चली थी
1938 में जब पचपदरा में नमक की खाने थी और नमक परिवहन जोरों पर था तब पचपदरा के सेठ गुलाबचंद ने अंग्रेज सरकार के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि कस्बे को रेल से जोड़ा जाए। तब अंग्रेजी हुकुमत ने शर्त रखी थी कि पंद्रह साल तक के लिए अनुबंध होगा, यदि रेल से घाटा हुआ तो उसकी पूर्ति निजी स्तर पर सेठ गुलाबचंद करेंगे, जिसको उन्होंने स्वीकार कर लिया। तब बालोतरा से पचपदरा के बीच में एक पव्वा चलता था, जिसमें चार पैसेंजर कोच और शेष नमक परिवहन के लिए कोच लगते थे। यह रेल इतनी सफल रही कि लंबे समय तक निर्बाध चली।
16 जुलाई 1990 को आई थी
1990 में बाढ़ आ गई थी। बाढ़ की वजह से पचपदरा-बालोतरा के बीच में पानी था। बालोतरा से रेल रवाना होकर पचपदरा की ओर आगे बढ़ी लेकिन बीच में पानी आ गया तो रेल को बैक ही वापिस लेना पड़ा। जानकारों का कहना है कि यह रेल का आखिरी फेरा था। इस रेल को स्थानीय भाषा में पव्वा कहते थे जिसमें चार पैसेंजर और शेष नमक के लिए कोच लगे हुए होते थे।
1992 में उखड़ी थी रेल पटरिया
रेल बंद होने के बाद वर्ष 1992 में रेल पटरियों को भी पचपदरा तक उखाड़ लिया गया था और इसके बाद यह रेलमार्ग पूर्णतया बंद हो गया और रेलवे स्टाफ जो यहां रहता था, उन सबका तबादला कर दिया गया।


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