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सच्चे पुरुषार्थ की नींव मजबूत होनी चाहिए – रोलसाहबसर

- श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन का द्वितीय स्थापना दिवस मनाया  

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Second Foundation Day of Shri Kshatra Purusharth Foundation

Second Foundation Day of Shri Kshatra Purusharth Foundation

बाड़मेर. श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन का द्वितीय स्थापना दिवस रविवार को समारोहपूर्वक गेहूं रोड स्थित आलोक आश्रम में क्षत्रिय युवक संघ प्रमुख भगवानसिंह रोलसाहबसर के सानिध्य में आयोजित हुआ। कार्यक्रम में विभिन्न समाज के प्रबुद्धजन शामिल हुए।

संघ प्रमुख रोलसाहबसर ने समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन का अर्थ यह होता है कि क्षात्र का अर्थ है क्षत्रिय का, पुरुषार्थ का अर्थ है जो पुरुष के लिए किया जाए, पुरूष कौन? पुरुष यानी परमात्मा या ईश्वर। जीवन में सुख व शांति सच्चे पुरुषार्थ से ही संभव है जो ईश्वर प्राप्ति निमित्त किया जाए।

हिंदुस्तान के सब शास्त्र एक ही बात बताते हंै कि एक ही लक्ष्य बताते है वो है ईश्वर प्राप्ति। संघ भी यही मानता है कि यही कार्य सार्थक है, बाकी सब कार्य थकाने और तनाव देने वाले हैं।

फाउंडेशन का अर्थ होता है नींव। क्षत्रिय के सच्चे पुरुषार्थ को नींव मजबूत होनी चाहिए। किसी भी देश की व्यवस्था संविधान के अनुसार ही चलती है।

हमारे संविधान को बनाने वालों में सभी धर्मों,जातियों व वर्गो के लोग थे। लंबे समय तक मंथन करने के बाद सब बिंदु तय हुए जिनका मूल ये था कि किस प्रकार देश के लोग सुख शांति से रहते प्रगति कर सकें।

लेकिन आज हम देखते है कि संविधान को लेकर समाज में बहुत भ्रांतियां फैल गई है। एक बार संविधान को पढ़ लें, सब शंकाएं दूर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मैं यही कहूंगा कि जागो और जगाओ।

प्रबुद्ध जनों का अभिवादन

फाउंडेशन सह संयोजक आजादसिंह शिवकर ने फाउंडेशन की रूपरेखा को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि युवाओं में व्यवस्था के प्रति नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मक सामाजिक भाव जागृत किया जाने की जरूरत है। महेंद्र सिंह तारातरा ने प्रतिवेदन प्रस्तुत कर अब तक हुए कार्य व आगामी वर्ष की कार्ययोजना पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम में मुस्लिम, जाट, मेघवाल, जटिया, पुरोहित सहित अन्य समाज के प्रबुद्ध लोग मौजूद रहे। उन्हें स्मृति चिह्न भेंट कर अभिवादन किया गया।

मुस्लिम समाज के हाजी अब्दुल गनी खिलजी कहा कि आज हमे यहां आकर बहुत खुशी हुई है। संचालन गणपतसिंह हुरो का तला ने किया। प्रारंभ में संस्थापक तनसिंह के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।