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Inland Port Project : अरब सागर से जुड़ेगा राजस्थान, पर सर्वे रिपोर्ट ने चेताया, लूणी-जवाई नदी के अस्तित्व पर आएगा संकट

Inland Port Project Update : राजस्थान में समुद्र का आगाज। जल्द राजस्थान अरब सागर से जुड़ेगा! कच्छ के रण से लेकर लूणी और जवाई नदी तक प्रस्तावित 615.445 किमी लंबे नेशनल वॉटरवे-48 और इसके तहत बनने वाले इनलैंड पोर्ट प्रोजे€क्ट को लेकर पर्यावरणीय संकट गहराने की चेतावनी दी गई है। सर्वे रिपोर्ट में क्या खुलासा हुआ, जानिए।

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Inland Port Project Rajasthan to be connected to Arabian Sea survey report warns Luni-Jawai river danger

ग्राफिक्स फोटो पत्रिका

Inland Port Project Update : तपते रेगिस्तान में समंदर की दस्तक ज्यादा नजदीक दिख रही है। कच्छ के रण से लेकर लूणी और जवाई नदी तक प्रस्तावित 615.445 किमी लंबे नेशनल वॉटरवे-48 (एनडŽब्ल्यू-48) और इसके तहत बनने वाले इनलैंड पोर्ट प्रोजे€क्ट को लेकर पर्यावरणीय संकट गहराने की चेतावनी दी गई है।

तोजो विकास इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड ने भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण को सौंपी हाइड्रोग्राफिक सर्वे की अंतिम रिपोर्ट में संकेत दिए हैं कि इस परियोजना से स्थानीय पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। यह जलमार्ग गुजरात के कोटेश्वर समुद्र मुहाने से शुरू होकर कच्छ के रण, फिर लूणी नदी के 491.903 किमी और जवाई नदी के 123.542 किमी लंबे मार्ग से होते हुए जालोर के संकरना पुल तक प्रस्तावित है। बालोतरा, सिणधरी, समदड़ी, सिवाना, जसवंतपुरा, सांचौर, बागोड़ा, भीनमाल और जालोर इस परियोजना के सीधे प्रभाव वाले इलाके हैं।

औद्योगिक अपशिष्ट से गहराएगा संकट

लूणी नदी पहले ही टेक्सटाइल अपशिष्ट और रासायनिक प्रदूषण से अत्यधिक प्रभावित है। बालोतरा के बाद इसकी धारा खारे पानी में बदल जाती है। ऐसे में इनलैंड पोर्ट प्रोजे€क्ट से औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने पर अपशिष्ट भार और भी बढ़ेगा। इससे भूजल में खारेपन का रिसाव तेज होगा और बालोतरा-जालोर बेल्ट में पेयजल संकट भयावह रूप ले सकता है।

भूमि बंजर होने का खतरा

विशेषज्ञों का मानना है कि जलमार्ग योजना आकर्षक के साथ खतरनाक भी साबित हो सकती है। राजस्थान में एनडŽब्ल्यू-48 का हिस्सा भले 11.202 किमी ही है, लेकिन इसका दुष्प्रभाव पूरे लूणी जवाई बेसिन पर पड़ेगा। समुद्र का खारा पानी नहरों के जरिए रेगिस्तानी क्षेत्रों में पहुंचा तो भूजल स्तर बढ़ने के बावजूद वह पीने और खेती के योग्य नहीं रहेगा। भूमि बंजर होने का खतरा बढ़ेगा। रेगिस्तानी वनस्पति खारे वातावरण में टिक नहीं पाएगी।

अत्यंत संवेदनशील पर्यावरणीय जोन में दखल

कच्छ का रण, नीर-काला डूंगर, गंधव, गोलिया, सिवाना, समदड़ी, भीनमाल और जालोर क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय महत्व के इको-हैबिटेट हैं। इसी पट्टी में ग्रेटर फ्लेमिंगो का विश्व-प्रसिद्ध घोंसला क्षेत्र आता है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारी मशीनरी, वेयरहाउस, भूमि अधिग्रहण और औद्योगिक €लस्टर इन प्राकृतिक आवासों को गहरी क्षति पहुंचेगी।

पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होगा

समुद्र का खारा पानी रेगिस्तान में पहुंचा, तो मीठे जल स्रोतों को दूषित कर सकता है। मिट्टी की लवणता बढ़ेगी, भूमि बंजर होगी, प्राकृतिक वनस्पति नष्ट तथा खाद्य श्रृंखला प्रभावित होगी। रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ने से स्थानीय प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा होगा।
डॉ. दाऊलाल बोहरा, सदस्य, अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइयूसीएन) एवं प्राणि विज्ञान विशेषज्ञ