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बेटे की सांसों पर पहरा देकर बैठी मां की अटूट प्रार्थनाएं

उसे नींद आती है तो मां का कलेजा कांप जाता है। नींद नहीं आती है तो मां प्रार्थना करती है इसको आराम मिले। पल-पल सांसों पर पहरा देकर बैठी मां की आंखों के आंसू सूख गए है। अभी बड़े बेटे को खोए हुए सालभर भी नहीं हुआ है और अब छोटा जवान बेटा उसी हालत में है। इलाज इतना महंगा कि घर-बार बिकने पर भी पूरा नहीं हों।

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बेटे की सांसों पर पहरा देकर बैठी मां की अटूट प्रार्थनाएं

बेटे की सांसों पर पहरा देकर बैठी मां की अटूट प्रार्थनाएं


अभियान-आओ मिलकर बचाएं एक जान
बाड़मेर पत्रिका.
उसे नींद आती है तो मां का कलेजा कांप जाता है। नींद नहीं आती है तो मां प्रार्थना करती है इसको आराम मिले। पल-पल सांसों पर पहरा देकर बैठी मां की आंखों के आंसू सूख गए है। अभी बड़े बेटे को खोए हुए सालभर भी नहीं हुआ है और अब छोटा जवान बेटा उसी हालत में है। इलाज इतना महंगा कि घर-बार बिकने पर भी पूरा नहीं हों। बस,इस मां के पास बची है तो प्रार्थनाएं,जो टूट नहीं रही है। बेटे के सांसों की पहरेदार इस मां खुद सांस लेती है तो आंसू टपकने लगते है लेकिन रोक देती है कि बेटा देख लेगा तो उस पर क्या गुजरेगी? इधर,ललित के उपचार के लिए सरकार तक पहुंची अर्जी पर सुनवाई की कोई खबर नहीं आई है। पूरा परिवार यही दुआ कर रहा है कि सरकार सुन ले....।
तनसिंह सर्किल के पास रहने वाले ललित को दुर्लभ व गंभीर पेम्पोरोग है। उपचार के लिए 2.75 करोड़ रुपए की जरूरत है। परिवार के वश की बात नहीं। सरकार इन योजनाओं में मददगार बन रही है लेकिन ललित की अर्जी अभी सरकारी कार्यालयों में है। मां प्रतिभा सोनी से पत्रिका ने बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा। प्रतिभा का खुशहाल परिवार था। दो बेटे। दोनों ही खूबसूरत, होनहार और हट्टे-कट्टे। पति एक कंपनी में नौकरी कर रहे थे और बड़ा बेटा दिग्विजय भी एक प्राइवेट नौकरी में। अब मां देानों बेटों की शादी को लेकर सपने पालने लगी थी। उसे क्या मालूम था कि खुशियों को ग्रहण लगने वाला है। बड़ा बेटे दिग्विजय के हाथ पांव में दर्द होने लगा और फिर दर्द बढ़ा तो उपचार को जहां तक पहुंच सकते थे, पहुंच गए। पता ही नहीं लग पाया कि क्या रोग है? दिग्विजय की मृत्यु हो गई तो मां पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा। अभी दिग्विजय के सदमे को प्रतिभा भूली ही नहीं थी कि उसके दूसरे बेटे ललित के भी यही लक्षण दिखते ही कलेजा कांप गया। तुरंत प्रभाव से उपचार को दौड़े। बैंगलोर में हुई जांच में सामने आया कि गंभीर पेम्पो रोग है। उपचार के लिए 2.75 करोड़ रुपए की जरूरते है। प्रतिभा की आंखों के सामने अंधेरा छा गया है। वह कहती है घर-बार बेच दंू तो भी यह रकम नहीं जुटा पाऊंगी। जब से बीमारी और उसके खर्च का पता चला है परिवार के अन्य लोग इसमें लगे है कि जैसे-तैसे यह इंतजाम हों तो ललितक की जान बच जाए,इधर प्रतिभा 24 घंटे बेटेकी सांसों की पहरेदार बनी हुई है। आंखों के सामने दूसरे बेटे को भी इस हालत में देख रही मां का कलेजा छलनी हो चुका है लेकिन वह एक आस लगाए है कि कहीं न कहीं से कोई मदद होगी। एक बेटा खो चुकी मां अटूट प्रार्थनाओं में दूसरे बेटे की जिंदगी मांग रही है....।
मदद का सिलसिला शुरू
राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित समाचार सुनिए सरकार...एक युवक की जिंदगी को बस आपसे ही आस व तीरा को मुम्बई ने दी जिंदगी बाड़मेर से जीवन मांगे ललित शीर्षक से प्रकाशित समाचार बाद ललित की मदद के लिए अब लोग जुटने लगे है। ललित के एकाउंट में यह राशि शुक्रवार से पहुंचेन लगी है। विभिन्न सामाजिक संगठन, आम लोग और समाज के सदस्यों व सोशल मीडिया ग्रुप ने ललित के एकाउंट नंबर को शेयर करते हुए मदद के लिए अपील करना शुरू कर दिया है।
गौरवराज ने 50 हजार की मदद की
ललित मदद के लिए गौरवराजसिंह ने बड़ी रकम से शुरूआत की है। भाजपा युवा नेता गौरवराजसिंह राजपुरोहित जुडिय़ा ने 50 हजार रुपए की मदद की। उन्होंने कहा कि उनके पिता जोगराजसिंह राजपुरोहित ने पत्रिका का समाचार पढऩे के बाद कहा कि मानवसेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं है। उन्होंने इसके लिए मदद को कहा। गौरवराज इससे पहले कोविड काल में जयपुर में मास्क वितरण और प्रवासियों की मदद करने में अग्रणी रहे थे। उन्होंने कहा कि वे अपने परीचितों को भी प्रोत्साहित करेंगे कि ललित की मदद के लिए आगे आएं। इलाज की बड़ी रकम के लिए बहुत सारे लोगों का साथ जरूरी है।


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