
रतन दवे/बाड़मेर . मस्कूलर डिस्ट्रोफी, पोम्पेरोग सहित रेअर डिजिज की बीमारियों ने राज्य में करीब 1000 और हर जिले में बीस से तीस मरीज है। इन मरीजों का उपचार रेअर डिजिज के ग्रु्रप थ्री में है। जिसमें सालाना खर्च 3 से 16 करोड़ तक का है। राज्य व केन्द्र सरकार 50 लाख तक ही किसी बीमारी के लिए अधिकतम मदद देती है। ऐसे में इन सारे मरीजों को क्राउड फंडिंग(भीड़ के भरोसे) छोड़ दिया गया है। केन्द्र की ओर से बने पोर्टल पर न तो ज्यादा मदद आई और न इतनी बंटी। राज्य का पोर्टल ही बंद कर दिया गया। अब ये मरीज जहर सी जिंदगी को घुट-घुट कर जी रहे है।
क्या है रेअर डिजिज
केन्द्र सरकार की रेअर डिजिज(दुर्लभ रोग) की सूची में तीन तरह की श्रेणियां है। इसमें एक कम लागत, दूसरी मध्यम और तीसरी अधिक लागत है। 50 लाख की आर्थिक मदद योग्य बीमारियों के अलावा अन्य के लिए क्राउड फंडिंग का पोर्टल बना हुआ है। इस पोर्टल पर सहायता मिलने पर मरीजों को देय होगी लेकिन व्यवहारिक तौर पर इस पर पर्याप्त मदद नहीं आ रही है।
12 सेंटर पर उपचार, पर रुपया बहुत अधिक
देश के 12 सेंटर्स पर ही इन रोगों के उपचार का इंतजाम है लेकिन इसमें भी करोड़ों रुपए का व्यय है। सामान्य परिवार के लोग अपनी संपत्ति बेचकर भी इलाज करवाए तो पूरे नहीं पड़ रहा है। महीने का एक इंजेक्शन ही 3 से 14 लाख तक आ रहा है। वह भी विदेशों से मंगवाना पड़ता है। ऐसे में इन मरीजों का उपचार नहीं हो रहा है।
नीति तय करें और मदद करे
18 साल से कम उम्र के मरीजों के लिए सरकार ने 5000 रुपए पेंशन प्रारंभ की है। यह पेंशन सभी रोगियों को मिले, चाहे उनकी उम्र ज्यादा हों। जितना नि:शुल्क दवा पर राज्य व देश में व्यय हो रहा है, उसका महज अंश ही हम पर खर्च होगा। हमारा इलाज गंभीर है। परिवार की क्षमता में नहीं है। इसलिए पहले हमें उपचार दें। 200-300 रुपए की मुफ्त दवा तो कोई भी खरीद लेगा, करोड़ों कहां से लाएंगे। सरकार स्पष्ट नीति बनाएं। क्र्राउड फंडिंग कोई उपाय नहीं है।
प्रभात चौधरी
शहर के नेहरू नगर के रहने वाले प्रभात चौधरी को जन्म के कुछ समय बाद ही मस्कूलर डिस्ट्रोफी हो गई। इसके बाद से चलने-फिरने लायक है। 13 साल का यह बच्चा परिजनों की मदद से पढ़ तो रहा है लेकिन बीमारी के उपचार के लिए कोई सरकारी प्रावधान नहीं है।
ललित
पोम्पे रोग से पीड़ित ललित की पीड़ा बढ़ती जा रही है। सात साल से अधिक समय से बिस्तर पर है। उपचार के लिए एक इंजेक्शन 14 लाख का चाहिए। सरकार की तरफ से महंगी बीमारी में मदद का कोई प्रावधान ही नहीं है। ललित के लिए पत्रिका ने अभियान चलाया तो क्राउड फंडिंग हुई लेकिन अब कुछ नहीं।
क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी रहा बाबू जाखड़ अब चलफिर नहीं सकता। बिस्तर पर है। मस्कूलर डिस्ट्रोफी से पीडि़त बाबू के उपचार को सरकार के पास कोई मदद नहीं है। आश्वासन देने को विधायक-सांसद तक घर आए लेकिन फिर मदद नहीं हो पाई।
इशान जाखड़
शहर के नेहरू नगर में रहने वाले ईशान की उम्र 14 साल है। सातवीं में पढ़ रहे ईशान को भी रेअर डिजिज है। अब तक इलाज नहीं हुआ है। महंगा उपचार है और वह भी नजदीक में कहीं नहीं मिल रहा है।
Updated on:
18 Mar 2025 09:54 pm
Published on:
18 Mar 2025 07:47 pm
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