
file photo....thar mahotsav
बाड़मेर. कला, संस्कृति, हैंडीक्राफ्ट के साथ बड़े धार्मिक् स्थल बाड़मेर जिले में पर्यटन की असीम संभवनाएं को दर्शाते है, देश ही नहीं अब विदेश तक बाड़मेर की एक अलग पहचान बन रही है। ऐसे में यहां पर पर्यटन को विकसित करना कोई मुश्किल काम नहीं है। हैंडीक्राफ्ट और पर्यटक स्थलों के साथ धार्मिक पर्यटन भी यहां की आर्थिक प्रगति को बूस्ट कर सकता है। बस, संभावनाओं को धरातल पर उतरने की ही जरूरत है। इसके लिए प्रयास बड़े स्तर पर करने की आवश्यकता है।
थार में पर्यटन स्थलों को लेकर विकसित करने के साथ उनके प्रचार-प्रसार को लेकर भी बड़ी योजना की जरूरत है। पर्यटकों को जैसलमेर से बाड़मेर तक लाने के लिए यहां की विशेषताओं और मेले और संस्कृति को बड़ा प्लेटफार्म देने की भी जरूरत है। तभी पर्यटक आकर्षित होकर यहां तक पहुंचेंगे।
यहां पर है पर्यटन की संभावनाएं
यहां 11वीं सदी के किराडू के मंदिरों की विरासत है। महाबार और रोहिड़ी के रेतीले धोरों पर सफारी की जा सकती है। सोनिया चैनल और रेडाणा के रण का विकास हो तो पर्यटन स्पॉट तैयार किए जा सकते है। देवका के सूर्यमंदिर भी टूरिÓम का बड़ा आधार है। इनको विकसित करने की जरूरत के साथ प्लेटफार्म देना होगा।
धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत
बाड़मेर जिले में सिवाना का किला, नाकोड़ा जैन मंदिर, खेड़ मंदिर, बाबा रामदेव की जन्मभूमि काश्मीर, खेमाबाबा मंदिर, नागणे'या माता मंदिर नागाणा, ब्रह्मधाम आसोतरा, राव मल्लीनाथ-रूपादेव मंदिर तिलवाड़ा, माजीसा मंदिर जसोल, भीमगोड़ा, तारातरा, वांकला माता विरात्रा, वैरमाता चौहटन, जसदेरधाम बाड़मेर सहित धार्मिक स्थलों की पूरी श्रृंखला है जहां लाखों धार्मिक पर्यटक आते हैं। धार्मिक पर्यटन के विकास को लेकर योजना बनाने की जरूरत है।
पशु मेला और परम्पराएं को पर्यटन नक्शे पर लाएं
मल्लीनाथ पशुमेला तिलवाड़ा के विकास को लेकर प्रयास नाकाफी हैं। जबकि इस मेले में लाखों लोग पहुंचते है, कुछ कोशिश की जाए तो पर्यटक भी मेले में पहुंच सकते है। वहीं मालाणी के जसोल, कोटड़ी, समदड़ी, कनाना, सनावड़ा में होली के बाद जब गेर जमती है तो यहां अलग ही दृश्य और माहौल बनता है। लेकिन पर्यटन के नक्शे पर इसे लाने के लिए विभाग और प्रशासन के कोई प्रयास नहीं है।
आर्थिक संपन्नता आई, पर्यटन नहीं
बाड़मेर में तेल और खनिज मिलने के बाद यहां पर आर्थिक संपन्नता तो आई। लेकिन पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला। जिसके चलते तेल के बूते पर बाड़मेर को मिली पहचान को पर्यटन की दृष्टि से आगे बढ़ाने को लेकर न कोई योजना बनी और प्रयास भी नहीं किए गए। इसके कारण पर्यटन की दृष्टि से राजस्थान में बाड़मेर अंतिम पायदान पर है।
विकास तो दूर, बचाने की कोशिश भी नहीं
हैण्डीक्राफ्ट के विकास के लिए हाट बाजार बनाया। लेकिन पिछले 16 साल से उस तरफ कोई देखता भी नहीं है। पर्यटकों के लिए बना खड़ताल होटल तो खत्म ही हो गई। बालोतरा के मोरचंग होटल के हालात भी अ'छे नहीं है। पर्यटन की पहचान बनने वाली इमारतों के विकास की योजना तो दूर रही, इनके रखरखाव की कोशिश भी कहीं नजर नहीं आई। आज इमारतें जमीदोंज हो रही है।
सांस्कृतिक पर्यटन हब बाड़मेर नहीं पहुंचा
पश्चिमी राजस्थान को सांस्कृतिक पर्यटन हब बनाने की साल 2019 में शुरूआत हुई। पर्यटन सर्किट बनाते हुए जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर के साथ बाड़मेर को भी इसमें शामिल किया गया। पर्यटन विभाग और यूनेस्को के बीच एमओयू हुआ और 42 महीनों में काम पूरा करने का टारगेट था। इसमें दस नए सांस्कृतिक विरासत स्थल विकसित करने की योजना बनी। इसमें बाड़मेर जिले के शिव के मांगणियार कलाकारों के माध्यम से संगीत पर्यटन को बढ़ावा और चौहटन के दस्तकारों के माध्यम से शैक्षिक पर्यटन को बढ़ाने की योजना बनाई। लेकिन अब तक धरातल पर कुछ नजर नहीं आया।
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थार महोत्सव से पर्यटन विकास का बना माहौल
राजस्थान पत्रिका के अभियान के बाद प्रशासन ने पहल करते हुए बाड़मेर में पूरे 8 साल बाद थार महोत्सव का आयोजन हुआ। जिससे पर्यटन विकास को लेकर कुछ माहौल बनने की शुरूआत हुई। पत्रिका ने समाचार श्रंखला चलाते हुए थार महोत्सव की जरूरत बताई और पर्यटन की दृष्टि से भी इसकी महत्ता समझाई। इसके बाद यहां पर थार महोत्सव आयोजित हुआ और हजारों लोगों ने इसमें भाग लिया। राजस्थान ही नहीं कई प्रदेशों के कलाकार इसमें शामिल हुए और यहां की कला और संस्कृति से रूबरू हुए। पत्रिका ने बॉर्डर टूरिÓम को लेकर भी समाचार अभियान चलाया। इसके बाद प्रशासन के स्तर पर योजना बनाने के लिए फाइल चली। लेकिन यह अभी तक आगे नहीं बढ़ पाई है।
Published on:
27 Sept 2022 12:57 pm
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