
बड़वानी। देश में यह ऐसा स्थान है, जहां नागपंचमी (nagpanchami) के दिन पांच लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन करते हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे श्रद्धालु होते हैं जिनकी मनोकामना पूरी हो जाती है। ऐसे लोग भी बड़ी संख्या में आते हैं जिन्हें संतान प्राप्ति की चाहत होती है। यह स्थान है नागलवाड़ी का शिखरधाम। यहां भीलटदेव (bhilat dev) की मूर्ति चमत्कार करती है।
patrika.com आपको बता रहा है नागपंचमी के मौके पर भीलटदेव के चमत्कारिक मंदिर के बारे में...।
नागदेवता के रूप में पूजे जाने वाले भीलटदेव का जन्म 1220 में मध्यप्रदेश के हरदा जिले के ग्राम रोलगांव में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा रेलण एवं ममतामई माता का नाम मेदाबाई था। निमाड़ (nimarh) के प्रसिद्ध संत सिंगाजी (sant singhaji) की तरह ही वह भी गवली परिवार में गो-पालन कर जीवनयापन करते थे। उनका परिवार सुख-समृद्धि होते हुए भी संतान नहीं होने से सूना-सूना रहता था। उनके माता-पिता सच्चे शिव भक्त थे।
शिखरधाम मंदिर (shikhar dham temple) के पुजारी बताते हैं कि आस्थावान दंपती की भक्ति साधना से प्रसन्न होकर एक दिन शिवजी ने दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। निःसंतान राणा दंपती की आंखें छलक आईं। उन्होंने भगवान से कहा कि आप सर्व ज्ञाता हो, हमारे निसंतान होने के कलंक को गंगाधर मां गंगा की धार से धो दीजिए, तब शिवजी बोले.. है भक्त युगल आपकी किस्मत में संतान का सुख तो नहीं है, लेकिन मेरे वरदान के फल स्वरूप एक तेजस्वी बालक का जन्म होगा, लेकिन वह आपके पास जब तक रहेगा, तब तक मैं चाहूंगा।
इस दंपती की मनोकामना पूरी हुई और उनके घर भीलटदेव का अवतरण हुआ। दोनों खुशी-खुशी अपने बच्चे के साथ दिनरात बिताने लगे। एक दिन शिवजी साधु के वेश में परीक्षा लेने आ गए। कहानियों के मुताबिक शिव-पार्वती ने इनसे वचन लिया था कि वो रोज दूध-दही मांगने आएंगे। अगर नहीं पहचाना तो बच्चे को अपने साथ ले जाएंगे। एक दिन वे भूल गए और शिव-पार्वती बाबा भीलटदेव को उठा ले गए। बदले में पालने में शिवजी अपने गले का नाग रख गए। इसके बाद मां-बाप ने अपनी गलती मानी। इस पर शिव-पार्वती ने कहा कि पालने में जो नाग छोड़ा है, उसे ही अपना बेटा समझें। इस तरह बाबा को लोग नागदेवता के रूप में पूजते हैं।
किन्नर ने भी मांग लिया था वरदान
भीलटदेव आने वाले निःसंतान दंपती की मनोकामना पूरी हो जाती है। एक बार एक किन्नर ने भी भीलटदेव की परीक्षा लेने का विचार किया। 200 साल पहले एक किन्नर ने सोचा कि यहां महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए आती हैं। सभी की मनोकामना पूरी हो जाती है। उसने भी भीलट देव से मनोकामना मांग ली। भीलटदेव के आशीर्वाद से किन्नर को भी गर्भ ठहर गया। लेकिन, बाद में उसकी मौत हो गई। मान्यता है कि उस घटना के बाद कोई भी किन्नर इस क्षेत्र में रात नहीं बिताता। वे सूर्यास्त के बाद क्षेत्र से बाहर चले जाते हैं। यहां के सेगांव रोड पर उसी किन्नर की समाधि शिला लगी हुई है।
Updated on:
02 Aug 2022 04:10 pm
Published on:
02 Aug 2022 04:01 pm
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