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पहाडिय़ों के बीच है भीमा नायक की गुमनाम गोलबैड़ी

इतिहास में खो गई पुरातत्व धरोहर, पत्थर से बंद की गुफा, हो रही उपेक्षा का शिकार

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Veer Shaheed Bhima Nayak cave at Golbaidi

Veer Shaheed Bhima Nayak cave at Golbaidi

बड़वानी/अंजड़. आदिवासी योद्धा तथा अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले वीर शहीद भीमा नायक का अस्थाई ठिकाना पुरातत्व विभाग की अनदेखी से खंडहर होकर उपेक्षा का शिकार हो रहा है। अंजड़ से करीब 5 किमी दूर ग्राम पलासिया (सजवाय) में छोटी-छोटी पहाडिय़ों के बीच स्थित एक गोलबैड़ी में गुफा बनाकर आदिवासी योद्धा भीमा नायक छुपकर अंग्रेजों से लोहा लेते थे।
पुराने लोग बताते है कि इसी गोलबैड़ी में अंदर एक सुरंग भी है, जो पास के एक खेत की बावड़ी में निकलती हैं। कहा जाता है कि भीमा नायक इस गोलबैड़ी से नगाड़े पर डंका बजाते थे, तो उसकी आवाज यहां से कई किलो मीटर दूर धाबावावड़ी गांव तक सुनाई देती थी। गोलबैड़ी पर बनी गुफा में जाने वाले रास्ते को पत्थरों से बंद कर दिया गया। पुरातत्व विभाग की इस अनमोल धरोहर को शासन, प्रशासन एवं पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। इसी गोलबैड़ी के पास एक प्राचीन हनुमान मंदिर भी है। जिसकी प्रतिष्ठा भी वीर शहीद भीमा नायक ने ही की होगी। ऐसे कयास लगाए जाते है। इस गोलबैड़ी को यदि पुरातत्व विभाग संवर्धन कर उचित विकास करें तो अंग्रेजों से लोहा लेने वाले आदिवासी वीर योद्धा भीमा नायक की इस अमूल्य धरोहर को न केवल बचाया जा सकता है, अपितु इसे प्रदेश के लिए पर्यटन केंद्र के रूप में भी स्थापित किया जा सकेगा।
पौधरोपण में नहीं मिल रहा प्रशासनिक सहयोग
बैड़ी एवं मंदिर के आसपास की सरकारी जमीन तथा पहाडिय़ों पर पौधरोपण का कार्य किया जाए, तो ये क्षेत्र पर्यटन नक्शे पर उभर सकता है। वैसे मंदिर समिति वहां पौधरोपण का काम करती है, लेकिन प्रशासनिक सहयोग नहीं मिलने से उन्हें भी समस्याओं से जूझना पड़ रहा हैं। मंदिर समिति के सदस्यों एवं जनसहयोग से इस पुरातत्व धरोहर को विकसित कर बचाया जा सकता है। मंदिर समिति के यतीन शर्मा का कहना है कि क्षेत्र को रमणीय बनाने का समिति सदस्य पूरा प्रयास कर रहे है, लेकिन प्रशासनिक सहयोग के अभाव में उनकी मेहनत भी बेकाम होती जा रही है।