श्राद्ध पक्ष में नहीं मिल रहे कौवे तो आएं जयपुर के हिंगोटी, मिलेंगे हजारों कौवे, प्रतिदिन खा रहे 30 किलो पोहे
श्राद्ध पक्ष में कौवे को भोजन कराना चाहते हैं और आसपास कौवे नहीं है तो तूंगा-महादेवपुरा सड़क मार्ग पर स्थित हिंगोटी ग्राम वन में पर्यावरण प्रेमियों की मेहनत से हजारों कौवे रोजाना भोजन करते हैं।
श्राद्ध पक्ष में नहीं मिल रहे कौवे तो आएं जयपुर के हिंगोटी, मिलेंगे हजारों कौवे, प्रतिदिन खा रहे 30 किलो पोए
कुलदीप शर्मा (तूंगा)
श्राद्ध पक्ष: आम दिनों में घर की मुंडेर पर भले ही कौवे की कांव-कांव लोगों को पसंद नहीं हो, लेकिन श्राद्ध पक्ष में लोग इनकी आवाज को सुनने का इंतजार करते नजर आते है। श्राद्ध पक्ष में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार अगर कौवे को भोजन कराना चाहते हैं और आसपास कौवे नहीं है तो क्षेत्र का एक ऐसा स्थान जहां पर्यावरण प्रेमियों की मेहनत से हजारों कौवे रोजाना भोजन करते हैं। जयपुर ग्रामीण के तूंगा-महादेवपुरा सड़क मार्ग पर स्थित हिंगोटी ग्राम वन में प्रर्यावरण संरक्षण की झलक सहज ही दृष्टिगत होती है। सायंकालीन दृश्य तो अत्यंत ही मनोहर हो जाता है। कई प्रजातियों के पक्षियों की चहचहाहट एक मधुर संगीत की स्वर लहरियां बिखेर देती है। इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के पक्षी, नीलगाय, सियार लोमड़ी, खरगोश, नेवला, गिरगिट जैसे सैकड़ों प्रकार के जीव जंतु प्राकृतिक रूप से विचरते सहज ही नजर आ जाते हैं। इन सबमें सबसे विशेष श्राद्ध पक्ष में लुप्त प्राय रहने वाले कौवे यहां 10 हजार से अधिक की संख्या में विचरण करते हैं।
लुप्त होती प्रजाति को मिला संरक्षणइस नवाचार से जहां एक और कौवों की लुप्त होती प्रजाति को संरक्षण मिला है और पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका है। दूसरी और सनातन हिंदू संस्कृति में भी श्राद्ध पक्ष में कौवे का विशेष महत्व है। आचार्य सत्यनारायण शर्मा के अनुसार श्राद्ध पक्ष में कौए को भोजन कराने का विशेष महत्व है। पुराणों में कौए को यम का प्रतीक भी माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान आपके प्रदत्त भोजन को कौए ग्रहण कर ले तो माना जाता है पितरों ने भोजन पा लिया।
दस हजार से अधिक कौवे
जहां एक और जंगलों का सफाया होता जा रहा है, जंगली जीवों की कई प्रजातियां लुप्त हो रही है, वहीं दूसरी ओर हिंगोटी ग्राय वन में हजारों की संख्या में कौवे एवं अन्य पक्षी पके हुए चावल एवं चरुण्डियों में पानी पीते नजर आए। जंगल में इनके रहने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था की गई है जिसके तहत पेड़ों पर मटकी के घोंसले टंगे हुए हैं। पर्यावरण प्रेमी शिवशंकर प्रजापति ने बताया कि यहां जनसहयोग से प्रतिदिन 30 किलो पोए तैयार कर पक्षियों विशेषकर कौवे को परोसे जाते हैं। पेयजल के लिए जंगल में जगह-जगह चरुण्डियां बनाई गई है एवं पेड़ों पर परिंडे टांगे गए हैं, तूंगा एवं आसपास के अनेक व्यक्ति इनके लिए चुग्गा लेकर आते हैं एवं चरुण्डियों की सफाई कर पानी भरते हैं। श्राद्ध पक्ष में एवं अमावस्या के दिन तो मानो भीड़ ही जुट जाती है। हिंगोटी निवासी रामभजन गुर्जर इस ग्राय वन के पेड़ों की रखवाली की नि:शुल्क सेवा करता है।