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कई दिनों तक सहीं यातनाएं, दुश्मनों ने काट दिए थे कई अंग, फिर भी नहीं बताए देश के राज, जानें राजस्थान के वीर अर्जुनराम की शहादत की कहानी

देश के लिए हंसते हंसते अपनी जान न्योछावर करने वाले कई वीर सैनिकों की आपने कहानियां सुनी होंगी। यही नहीं, फिल्मी पर्दे पर भी इन वीर सैनिको की दास्तान देखी होंगी। ऐसी ही एक वीर सैनिक की गाथा हम आपको बताने जा रहे हैं जिसने मातृभूमि की रखा के अपनी जान दे दी लेकिन दुश्मनों को नहीं बताए देश के राज।

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Arjun Ram Baswana

कई दिनों तक सहीं यातनाएं, दुश्मनों ने काट दिए थे कई अंग, फिर भी नहीं बताए देश के राज, जानें राजस्थान के वीर अर्जुनराम की शहादत की कहानी

देश के लिए हंसते हंसते अपनी जान न्योछावर करने वाले कई वीर सैनिकों की आपने कहानियां सुनी होंगी। यही नहीं, फिल्मी पर्दे पर भी इन वीर सैनिको की दास्तान देखी होंगी। ऐसी ही एक वीर सैनिक की गाथा हम आपको बताने जा रहे हैं जिसने मातृभूमि की रखा के अपनी जान दे दी लेकिन दुश्मनों को नहीं बताए देश के राज। हम बात कर रहे हैं नागौर जिले के छोटे से गांव बूढ़ी में जन्में अर्जुनराम बसवाणा का।

उनका जन्म 5 अक्टूबर, 1976 को भंवरी देवी और चौधरी चोखाराम बसवाणा के घर हुआ। अर्जुनराम ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बूढ़ी गांव, उच्च प्राथमिक शिक्षा सिणोद, 12वीं और प्रथम वर्ष की शिक्षा नागौर से की। वह खेल में भी बहुत अच्छे थे, खासकर हॉकी और कबड्डी के बेहतरीन खिलाड़ी थे, जिसके चलते उन्हें कई पुरस्कार भी मिले थे। उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखने की बजाए मातृभूमि की सेवा करना बेहतर समझा। उनका चयन सेना के लिए हो गया और अपनी ट्रेनिंंग पूरी करने के बाद 20 अक्टूबर, 1996 को 4 जाट रेजिर्मेंट मिली। बरेली स्थित जाट रेजिमेंटल सेंटर में कुछ समय बिताने के बाद 1998 में उनकी तैनाती जम्मू कश्मीर के करगिल क्षेत्र में हुई।

फिर भी नहीं खोला मुंह
वर्ष 1999 में पाकिस्तान ने करगिल सहित जम्मू कश्मीर के कई इलाकों में घुसपैठ कर बंकर बना लिए थे। उसी वर्ष लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और अन्य साथियों के साथ गश्त पर निकले थे अुर्जनराम। पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारतीय गश्ती दल पर अचानक हमला कर दिया और अर्जुनराम को अन्य साथियों के साथ बंधक बना लिया। पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारतीय सेना के राज जानने के लिए अर्जुनराम और भारतीय सैनिकों के साथ अमानवीय व्यवहार किया।

पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा देश की सामरिक सूचनाएं हासिल करने के लिए बर्बतापूर्वक यातनाएं देने के बावजूद वीर अर्जुनराम ने अपना मुंह नहीं खोला और 9 जून, 1999 को शहीद हो गए। आज भी अर्जुनराम की वीरता की कहानी का बखान करते हुए उनके गांव के लोग नहीं थकते हैं। वहीं, उनके पिता और मां को इस बात का फक्र है कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हुआ।