17 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

गांव की सरकार में धनबल और परिवारवाद की पंचायती क्यों ?

पंचायत चुनाव में आचार संहिता की अनदेखी पर अरुण शर्मा की टिप्पणी

2 min read
Google source verification

बस्सी

image

Arun Sharma

Jan 24, 2020

गांव की सरकार में धनबल और परिवारवाद की पंचायती क्यों ?

गांव की सरकार में धनबल और परिवारवाद की पंचायती क्यों ?

जयपुर। गांव की सरकार स्वस्थ लोकतंत्र की नींव मानी जाती है, लेकिन अगर राजनीति में पद का लोभ आ जाए तो निष्पक्ष विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है ? पंचायत चुनाव में पद पाने के लिए उम्मीदवार किसी भी तरह के जोड़ तोड़ से नहीं चूक रहे। जयपुर जिले की कई ग्राम पंचायतों में रिश्तेदार, पति-पत्नी और भाई तक आमने-सामने हैं या अलग-अलग पदों के लिए चुनाव मैदान में हैं। गोविन्दगढ़ पंचायत समिति में ऐसे नामांकन हुए हैं। वहीं पंचायत चुनाव में आदर्श आचार संहिता की भी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। प्रशासन के दावों के बाद भी प्रत्याशी लग्जरी कारों में जनसंपर्क कर रहे हैं। ग्राम पंचायतों में मतदाताओं को रिझाने के हर तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। गांव-ढांणियां भी प्रत्याशियों के पोस्टर बैनरों से अछूती नहीं हैं, हालांकि निर्वाचन विभाग ने प्रत्याशियों के चुनाव खर्च की सीमा तय कर रखी है, लेकिन कई प्रत्याशी लग्जरी कारों के लवाजमों के साथ महीनों से चुनाव प्रचार में जुटे हैं। कार्यकर्ताओं के चाय-पानी और बैनर-पोस्टर पर जमकर पैसा खर्च किया जा रहा है। क्या तय राशि इतना सब संभव है ? जबकि एक ग्राम पंचायत में 5-7 से ज्यादा गांव नहीं हैं, अधिकतम 8-10 हजार वोट एक ग्राम पंचायत में हैं। गांव-ढाणियों के जाने पहचाने लोग ही चुनाव मैदान में भाग्य आजमाते हैं। कई जगह तो एक ही नाम पर सहमति बनाकर निर्विरोध चुनाव के उदाहरण भी सामने आए हैं। फिर भारी-भरकम लवाजमों की आवश्यकता क्यों ? भले ही पुलिस-प्रशासन आचार संहिता की पालना करवाने, निष्पक्ष और भय मुक्त चुनाव के दावे करता हो, लेकिन हकीकत अलग है। कई प्रत्याशियों ने दर्जनों लग्जरी गाडियां चुनाव प्रचार-जनसंपर्क में लगा रखी हैं। समर्थकों में विवाद, प्रत्याशी पर हमले जैसी घटनाएं भी सामने आई हैं। गांव की सत्ता पाने के लिए धनबल-बाहूबल दुरुपयोग क्यों किया जाना चाहिए ? हालांकि कुछ प्रत्याशी ऐसे भी हैं जो बिना किसी लवाजमे और शोर-शराबे के नामांकन भरकर अपनी साक के बूते जीत भी हासिल करते हैं। लेकिन ऐसे उदाहरण कम हैं। गांव का चुनाव सौहार्द का चुनाव है, लोकतंत्र को मजबूत करने का चुनाव है। इसलिए आचार संहिता की पालना करवाना प्रत्याशियों की पहली जिम्मेदारी है। सभी को मिलकर आदर्श आचार संहिता की पालना में सहयोग करना चाहिए। चुनावी मैदान से परिवारवाद को दूर रखना चाहिए। तभी जीते प्रत्याशी गांव के विकास का निष्पक्ष खाका तैयार कर सकेंगे।