बस्ती. लगातार कई दिन बारिश के बाद घाघरा नदी के जल स्तर में बढ़ोत्तरी होने से बंधे के किनारे बसे गांवों के लोगों में दहशत हैं। ये दहशत इसलिए की जलस्तर बढ़ने से नदी के किनारे कटान शुरू हो गई है। जिससे लगभग दो दर्जन से अधिक गांव का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। प्रभारी डीएम ने कहा की बँधो की मरम्मत का कार्य तेज है। गांव को बचाया जाएगा कटान से गांव प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा।
बाढ़ और कटान की समस्या कोई आज की बात नहीं है। इस प्रकोप के फेर में हर साल हजारों लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही से इसका निदान आज तक नहीं हो पा रहा है। आजादी के लगभग 70 साल हो चुके हैं लेकिन चाहे जो सरकारें आई कभी भी बाढ़ पीड़ितों का दुख किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि के कानों तक नहीं पहुंची।
हर साल आपदा का दर्द झेल रहे इस इन लोगों को लगातार परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस नदी के किनारे बसे गांव गोरिया नैन ,माझा खुर्द कलवारी ,सीताराम, चांदपुर ,पिपरपाती, शहजौरा पाठक ,कल्याणपुर ,बेलवा सहित दो दर्जन गांव इस बाढ़ की चपेट मे हर वर्ष आते हैं। जिले मे सरकार और यहां के जनप्रतिनिधि लाख दावा कर रहे हैं कि बंधा बन गया है लेकिन हकीकत ये है कि बंधे को महज कुछ दूर तक ही बनाकर छोड़ दिया गया।
इसे लेकर ग्रामीण तीन महीने पहले से ही कटान से बचाव के लिए लगातार प्रशासन से मांग करते रहे हैं। सरकार को भी पत्र लिखते रहे हैं लेकिन किसी तरह के इंतजाम नहीं किये गये। इन्हे आश्वासन पर आश्वासन मिलता रहा। अब जब बाढ़ शुरू हो गई तो प्रशासन के पास कोई पुख्ता जवाब नजर नहीं आ रहा है।
सरकार ने भेजे महज 70 लाख रूपये
तमाम दावे के बाद पत्रिका ने जब इस लापरवाही की असली वजह प्रशासन से जाननी चाही तो जिलाधिकारी अरविंद पांडे ने बताया कि अभी तक शासन से महज 70 लाख रूपया ही आया है जिससे बाढ़ क्षेत्र मे रेन कट भरा जा रहा है और गांव को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है, हम उन गांव के लिए बोल्डर और जाली लगा रहे हैं जबकि जमीनी हकीकत कुछ अलग ही बयां कर रही है कहीं कोई काम नहीं चल रहा ऐसे में बाढ़ क्षेत्र के पीड़ित लोगों का विकास कैसे होगा उनकी सुरक्षा बाढ़ से कैसे होगी यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है।
सरकार महज बरसात के महीने में बाढ़ की रोकथाम करने के लिए तटबंधों पर बुल्डोजर गिराती है और तटबन्ध बचाने का बडा बड़ा दावा करती है लेकिन ये महज खानापूर्ति ही दिखाई दे रहा है। कहीं ना कहीं बालू माफियाओं के चलते नदी जो तटबंध से 5 किलोमीटर दूर थी अब वह तटबंध से सटकर बह रही है ऐसे में माझा के रहने वाले लोगों की सुरक्षा महज राम भरोसे है और क्षेत्र मे दहशत का महौल है ।