
‘नेकी’ का सेतु नहीं बन पाई ‘दीवार’
ब्यावर. ‘नेकी कर दरिया में डाल’ के फलसफे से अलग हटके जरूरतमंद की मदद करने के लिए शहरों में नेकी की दीवार (हालांकि दीवार की बजाय सेतु होना चाहिए था) स्थापित की गई थी। इसके पीछे मकसद ये था कि लोग अपने इस्तेमाल किए जा चुके कपड़े फेंकने की बजाय नेकी की दीवार पर रख जाएं। शर्त ये रखी गई कि कपड़े फटे हुए और गंदे न हों तथा धो के और इस्त्री करके ही छोडक़र जाएं जिससे जरूरतंद लोग इन्हें तुरंत इस्तेमाल कर सकें। छोड़े गए कपड़ों को रखने के लिए लोहे के शेड बनाए गए और रैक भी रखी गईं। लेकिन समय गुजरने के साथ इस पवित्र उद्देश्य को ग्रहण लग गया।
ब्यावर के भगत चौराहा और चांदमल मोदी औषधालय के करीब बनाया गया नेकी की दीवार का शेड इस बानगी के रूप में देखा जा सकता है कि साधन संपन्न व जरूरतमंद के बीच हमेशा से खड़ी रहने वाली ‘दीवार’ न तो गिरी और न नेकी का सेतुबंध ही बंध पाया। लगातार प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण ‘नेकी’ करने वाले लोग अपने इस्तेमाल किए हुए कपड़े अब कूड़े की तरह फेंक जाते हैं और जरूरतमंद गरीब जरूरतमंद होते हुए भी उन कपड़ों को ले जाना तो दूर हाथ भी नहीं लगाते। नतीजतन कपड़े शेड के बाहर सडक़ पर कबाड़ की तरह बिखरे पड़े हैं। कपड़ों के ढेर पर दिन में खानाबदोश नींद निकालते हैं और रात में श्वान सोते रहते हैं। शेड के बाहर कपड़े फैले होने का एक कारण शेड पर ताला लगा होना है जबकि शेड की जालियां भी टूटी पड़ी हैं।
Published on:
23 Oct 2019 11:03 pm
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