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भरतपुर

राजस्थान के एक पुजारी का ‘अजब-गजब’ कारनामा, बेच डाली 40 करोड़ की सरकारी जमीन

पुजारी ने मालिक कर जमीन घोटाला कर दिया। यहां ज्यादातर भूखंड भी शहर के रसूखदारों को बेचे गए हैं। इस पूरे घोटाले में देवस्थान विभाग की भूमिका भी जांच के घेरे में है।

भरतपुरMay 07, 2024 / 11:54 am

जमील खान

मेघश्याम पाराशर
Rajasthan Samachar : भरतपुर. शहर अजेय दुर्ग लोहागढ़ स्थित परिसर में एक मंदिर के नाम पर वसीयत को आधार बनाकर करोड़ों रुपए की सरकारी जमीन के बेचान का मामला सामने आया है। असल में मंदिर के नाम से किला परिसर में कभी भी कोई जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हुई, बल्कि मंदिर के नाम से जमीन दूसरे गांव में है। पुजारी ने मालिक कर जमीन घोटाला कर दिया। यहां ज्यादातर भूखंड भी शहर के रसूखदारों को बेचे गए हैं। इस पूरे घोटाले में देवस्थान विभाग की भूमिका भी जांच के घेरे में है। जमीन का बाजार मूल्य अनुमानित करीब 40 करोड़ है। राजस्थान पत्रिका ने जब पड़ताल की तो इस पूरे मामले में जमीन घोटाले का सच निकल कर सामने आया।
किला परिसर स्थित मंदिर श्रीकिशोरी मोहन का निर्माण रियासतकालीन समय में हुआ था। उस समय भरतपुर रियासत के महाराजा ने गांव खैमरा कला में इस मंदिर के नाम से जमीन पुन्यार्थ दी थी। बाकी मंदिर के आसपास स्वामित्व का कोई खाली भूखंड नहीं था। यह एरिया राजकीय संग्रहालय पुरातत्व विभाग व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सीमा में आने वाली संरक्षित स्मारक की भूमि में आता है। यहां कुछ समय के अंदर वसीयत के आधार भूखंडों का बेचान कर दिया गया। कच्चा परकोटा की जमीन को भी खोदकर कुछ भूखंड बनाकर उन्हें बेच दिया गया। जबकि वसीयत में जमीन की कोई नाप नहीं है।
दर्जनों मंदिरों की जमीनों का घोटाला
देवस्थान विभाग की लापरवाही से अकेले भरतपुर शहर में दर्जनों मंदिरों की जमीनों का घोटाला हुआ है। जनवरी 2018 में पुरोहित मोहल्ला में स्थित राजकीय सुपुर्दगी श्रेणी के ऐतिहासिक वराह भगवान मंदिर का परिसर पुजारी के भाई की ओर से अवैध तरीके से बेच दिया गया। आरोपी लाखों रुपये में मंदिर परिसर को बेचकर चंपत हो गया और इधर देवस्थान विभाग सोता रहा। जनवरी 2021 में श्रीहनुमानजी महाराज ब्रह्मचारी बगीची आश्रम की जमीन पर भी कुछ रसूखदारों ने कब्जा कर लिया था। श्रीरघुनाथजी विरक मंदिर के किरायेदार ने मंदिर की 277.59 वर्गगज जमीन को करोड़ों रुपए बेच दिया। अप्रेल 2021 में डीग के गांव खोहरी में मंदिर की 486 बीघा भूमि पर कब्जा करने का मामला सामने आया।
खुद देवस्थान विभाग ने माना गलत
एक सितंबर 1983 को सहायक आयुक्त देवस्थान विभाग ने नोटिस लक्ष्मीनारायण को दिया था। इसमें मंदिर पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा व बेचान करने का आरोप लगाया गया था। इस नोटिस को शून्य करने के लिए सिविल न्यायालय में वाद दायर किया गया। इसमें दावा खारिज कर दिया गया।
ऐसे समझिए पूरा मामला
मंदिर श्रीकिशोरी मोहन का निर्माण किला परिसर में भरतपुर रियासत की ओर से कराया गया था। मंदिर के पूजा, भोग सामग्री व पुन्यार्थ के लिए महाराजा जसवंत सिंह ने 136 बीघा छह बिस्वा जमीन गांव खैमरा कला में दान दी थी। इसके अलावा सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार मंदिर के आसपास कोई भी भूमि स्वामित्व में नहीं थी। मंदिर निम्बार्क संप्रदाय का है। इसके महंत श्यामदास शिष्य गोवर्धनदास नागा रहे थे। श्यामदास ने समय-समय पर की गई वसीयतों में भरतपुर किले के अंदर स्थित इस मंदिर व कुम्हेर में स्थित मंदिर श्रीकिशोरी मोहन के बंटबारे में सबसे पहले किले में स्थित मंदिर के आसपास की खाली जमीन को जोड़ा। जबकि रिकॉर्ड के अनुसार मंदिर सरकारी रहा है। दो वसीयतों में कुम्हेर व भरतपुर के दोनों मंदिरों का दो पुजारियों के बीच बंटबारा किया गया।
छह सितम्बर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि किसी भी मंदिर की जमीन पर सिर्फ भगवान का मालिकाना हक होता है, पुजारी या किसी सरकारी अधिकारी का नहीं। दरअसल, ये अक्सर देखने को मिलता है कि मंदिर की जमीन पर पुजारी अपना अधिकार बना लेते हैं। सरकारी कागजात पर भी पुजारी का नाम लिख दिया जाता है। उसके बाद पुजारी अपनी मर्जी से मंदिर की जमीन को बेच देते हैं। हाइकोर्ट भी इससे पहले राज्य सरकार को ऐसे मामलों को लेकर निर्देशित कर चुका है। उत्तम शर्मा, एडवोकेट
1. पुजारियों ने सिविल न्यायालय भरतपुर में 2681/83 विवाद पेश किया। मंदिर श्रीकिशोरी मोहनजी जरिये महंत राधिकादास चेला महंत श्यामदास बनाम लक्ष्मीनारायण निवासी पैंघोर के मध्य स्वामित्व को लेकर चला। इसमें दोनों पक्षों में राजीनामा के आधार पर मंदिर के नाम पर जमीन दिखाते हुए वर्ष 1987 में बंटबारा कर लिया गया। हालांकि इस प्रकरण में राज्य सरकार व अन्य कोई भी विभाग पार्टी नहीं बनाया गया। जबकि मंदिर देवस्थान विभाग में पंजीकृत था। साथ ही आवश्यक पक्षकार था।
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2. लक्ष्मीनारायण शर्मा बनाम राज्य सरकार महंत राधिकादास के मध्य सिविल न्यायालय में 413/99 विवाद चला। इसमें मंदिर का पुजारी घोषित करने को लेकर विवाद दायर हुआ। इसमें 30 नवंबर 2000 को न्यायाधीश ने निर्णय दिया कि वादी मंदिर को निजी श्रेणी का मंदिर साबित करने में असफल रहा है। यह भी साबित करने में असफल रहा है कि वादी मंदिर की संपत्ति पर विधिक तौर पर अधिकारी बनाए रखने का अधिकारी नहीं है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मंदिर किशोरी मोहनजी किला भरतपुर 25 जून 1981 के राजपत्र में देवस्थान विभाग का सुपुर्दगी श्रेणी का मंदिर घोषित किया गया है। महंत श्यामदास की ओर से जो वसीयत दिसंबर 1982 में निष्पादित की गई है, उक्त वसीयत निष्पादित करने से पूर्व ही मंदिर देवस्थान विभाग की ओर से अपने नियंत्रण में ले लिया गया था।
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3. यह दावा खारिज होने के बाद वादी पक्ष ने जिला न्यायाधीश के समक्ष एक अपील 493/2014 अपील संख्या 117/2000 अपील पेश की। 14 नवंबर 2017 को यह अपील खारिज करते हुए मंदिर व संपत्ति को देवस्थान विभाग का मानते हुए अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय पर मुहर लगा दी। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से संबंधित भूखंडों को लेकर नोटिस दिए जा चुके हैं। विभाग से स्वीकृति मांगी जा रही है। हम जल्द वहां कार्रवाई करेंगे। भले ही कोई निर्माण करे या भूखंड पर कब्जा। नियमों के तहत कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। डॉ. अमित यादव, जिला कलक्टर

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