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पिता ठेल पर बेचते हैं सांक, बिटिया ने अफसर बन सपने किए साकार

गली-गली, मोहल्ला-मोहल्ला घूमकर ठेल पर सांक बेचने वाले पिता को अब भी यह इल्म नहीं है कि उनकी बेटी कितनी बड़ी सेवा के लिए चुनी गई है। सिर्फ उन्हें इतना पता है कि उनकी बेटी अफसर बन गई है

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पिता ठेल पर बेचते हैं सांक, बिटिया ने अफसर बन सपने किए साकार

भरतपुर शहर में गली-गली, मोहल्ला-मोहल्ला घूमकर ठेल पर सांक बेचने वाले पिता को अब भी यह इल्म नहीं है कि उनकी बेटी कितनी बड़ी सेवा के लिए चुनी गई है। सिर्फ उन्हें इतना पता है कि उनकी बेटी अफसर बन गई है। पापा की आंखों में शुरू से ही सपना था कि उनके बेटे-बेटी पढ़-लिखकर नाम रोशन करें। यूपीएससी के परिणाम के बाद आंखों में पल रहा सपना साकार हो उठा। शहर में अटलबंद स्थित कंकड़ वाली कुईया पर रहने वाले गोविंद की बेटी दीपेश कुमारी ने 93वीं रैंक पाई है।

गोविंद छोटे से मकान में रहते हैं। मकान इतना छोटा है कि उसमें रहने को केवल एक कमरा एवं एक रसोई है। एक ही कमरे में पत्नी ऊषा देवी, दो बेटी व तीन बेटों के साथ रह रहे हैं। खास बात यह है कि पिछले 25 साल से इसी रसोई में सांक बनाकर अपने परिवार का पालन कर रहे हैं। बेटी के अफसर बनने के बाद भी मंगलवार को गोविंद शहर के ट्रांसपोर्ट नगर क्षेत्र में सांक बेच रहे थे।

गोविंद की दूसरी बेटी ममतेश कुमारी अग्रवाल दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में चिकित्सक हैं, जबकि पुत्र नंद किशोर 12वीं उत्तीर्ण, सुमित अग्रवाल महाराष्ट्र में एमबीबीएस प्रथम वर्ष और सबसे छोटा पुत्र अमित अग्रवाल गुहाटी में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत है। दीपेश की मां गृहिणी हैं। दीपेश के माता-पिता बांके बिहारीजी एवं गिरिराजजी के भक्त हैं। बेटी की सफलता के बाद वह गिरिराजजी को डंडौती देने जाएंगे।

हर सुनने वाले ने दी बधाई
मंगलवार को जब गोविंद अपने ठेले पर सांक बेचने निकले तो उन्हें यह नहीं पता था कि उनके जीवन में कितनी बड़ी खुशी आई है। वह रोजाना कि तरह अपने ठेले को लेकर सांक बेचने निकले तो उन्हें इस खुशी का आभास हुआ। यहां पहुंचे ग्राहकों ने उनकी बेटी की सफलता की कहानी सुनी और बधाई दी। इससे पहले गोविंद बेलदारी करते थे। इसके बाद उन्होंने हलवाई का काम शुरू किया। अब पिछले 25 सालों से वह अपने हाथ की बनी नमकीन सांक बेच रहे हैं।

दिल्ली रहकर की तैयारी
दीपेश कुमारी सभी भाई-बहनों में बड़ी हैं। उनके जीवन में 'द' अक्षर का संयोग शुभ रहा है। जन्म के बाद उन्हें 'द' से दीपेश नाम मिला। आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली गई और दूसरे प्रयास में उन्होंने मुकाम हासिल किया। दीपेश ने 10वीं तक की पढ़ाई पास के ही शिशु आदर्श विद्या मंदिर से 98 प्रतिशत अंकों के साथ इसके बाद बाबा सुग्रीव स्कूल से 12वीं में 89 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इसके बाद जोधपुर के एमबीएम से सिविल इंजीनियरिंग और फिर आईआईटी मुंबई से एम-टेक की डिग्री प्राप्त की।