आकाशीय बिजली का भी खतरा ऐतिहासिक गंगा मंदिर को आकाशीय बिजली से बचाने के लिए निर्माण के समय ही मंदिर के शिखर पर तडि़त चालक लगाया गया था, लेकिन अब मंदिर के शिखर का तडि़त चालक मुड़ा हुआ है और उसका करीब आधा भाग गायब है। गंगा मंदिर आज की तारीख में आकाशीय बिजली से भी सुरक्षित नहीं है। रात के वक्त मंदिर के भवन पर सजावटी रोशनी फेंकने के लिए सालों पहले पर्यटन विभाग ने चारों तरफ की छतरियों में बिजली की बड़ी-बड़ी लाइटें लगवाई, लेकिन देखभाल और रखरखाव के अभाव में ये कीमती लाइटें भी टूट कर बर्बाद हो चुकी हैं।
चोरी हुई पीतल की क्लिप मंदिर भवन के निर्माण के समय कारीगरों ने मंदिर के पत्थरों और दीवारों को मजबूती प्रदान करने के लिए पीतल की मजबूत क्लिपों से जोड़ा था। इससे दीवारों के पत्थर आपस में जुड़े रहते थे, लेकिन असमाजिक तत्व इन क्लिपों को तोड़कर ले गए हैं इससे अब पत्थरों के बीच में गैप आने लगा है।
90 साल में पूरा हुआ था मंदिर का निर्माण पुत्र प्राप्ति के बाद भरतपुर के महाराजा बलवंत सिंह ने वर्ष 1845 में गंगा मंदिर की नींव रखी, इसका निर्माण करीब 90 साल में पूरा हुआ। सन 1937 में महाराज सवाई बृजेंद्र सिंह ने मां गंगा की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराई। तभी से ये ऐतिहासिक मंदिर अपनी भव्यता और आस्था के लिए खासी पहचान रखता है।
हकीकत ये…काम से ज्यादा कमीशन जरूरी भले ही देवस्थान विभाग ने मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पुरातत्व विभाग के माध्यम से कराया, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या दोनों ही विभागों ने लाखों रुपए से हुए जीर्णोद्धार कार्य में पारदर्शिता को लेकर ध्यान रखा। चूंकि अक्सर पुरातत्व विभाग हो या देवस्थान विभाग, दोनों के ही ऐसे कार्यों में कमीशनखोरी व भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे हैं। ऐसे में अधिकारी भी कार्यकारी एजेंसी व ठेकेदारों पर महरबानी रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। पुरातत्व विभाग की कारनामों की सूची ही इतनी लंबी है कि किसी भी स्थान पर काम कराने के बाद आंखू मूंद ली जाती है। नतीजा यह होता है कि कुछ दिन में वह स्थान पूर्व की स्थिति से भी बदतर हो जाता है।