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जानें, आखिर क्या है डॉल्फिन जैसी भीमकाय मांगुर मछली, जो इन दिनों देश में सिरदर्द बनी हुई है

एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। कहावत सालों पहले बनी होगी लेकिन इन दिनों मांगुर मछली से इसे समझा जा सकता है। डॉल्फिन जैसी भीमकाय यह मछली इन दिनों देश में सिरदर्द बनी हुई है।

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जानें, आखिर क्या है डॉल्फिन जैसी भीमकाय मांगुर मछली, जो इन दिनों देश में सिरदर्द बनी हुई है

जानें, आखिर क्या है डॉल्फिन जैसी भीमकाय मांगुर मछली, जो इन दिनों देश में सिरदर्द बनी हुई है


-अफ्रीकन कैट फिश (मांगुर) पक्षियों व छोटी मछलियों को शिकार बना रही है शिकार

भरतपुर. पक्षियों के घर मतलब केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में शिकारी मछली मांगुर खतरा बनी हुई है। हालांकि केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान पक्षियों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता है। यहां भरपूर भोजन और अनुकूल वातावरण के चलते ही इसे पक्षियों का स्वर्ग भी कहा जाता है, लेकिन उद्यान में बीते करीब डेढ़ दशक से शिकारी मछली मांगुर का खतरा मंडरा रहा है। उद्यान के जलाशयों में पैर पसार चुकी यह मछली न केवल छोटे पक्षियों को अपना शिकार बना लेती है बल्कि पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाली छोटी मछलियों को भी खा जाती है। ऐसे में कई वर्षों से यह मांगुर मछली उद्यान प्रबंधन के लिए सिरदर्द बनी हुई है। इससे छुटकारा पाने के लिए उद्यान प्रशासन हर वर्ष जलाशयों से मांगुर मछली को बाहर निकलवाता है लेकिन अभी तक इससे पूरी तरह से निजात नहीं मिल पाई है। यह मछली पक्षियों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है इसलिए इसके खिलाफ वर्ष 2009 से अभियान चला रखा है। हर वर्ष मानसून से पहले यहां की आठ झीलों में जाल डलवाकर इस खतरनाक मछली को बाहर निकाला जाता है। वर्ष 2009 से वर्ष 2022 तक उद्यान से 78,403 मांगुर मछलियों को बाहर निकाला जा चुका है। उल्लेखनीय है कि उद्यान में अलग-देश विदेश के करीब 350 से अधिक प्रजाति के पक्षी प्रवास और प्रजनन करते हैं। इतना ही नहीं उद्यान अपनी जैव विविधता के लिए भी दुनियाभर में जाना जाता है। ऐसे यहां मांगुर मछली एक बड़ी मुसीबत बनी हुई है, जो कि यहां के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरनाक है।


ये है मांगुर मछली
अफ्रीकन कैट फिश को मांगुर मछली के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले वर्ष 2005 में उद्यान के जलाशयों में मांगुर मछली की मौजूदगी की जानकारी मिली। यह मछली मांसाहारी मछली होती है जो छोटे पक्षी और छोटी मछलियों को खा जाती है। इसकी लंबाई करीब चार फीट तक और वजन 10 किलो तक हो जाता है। मादा मांगुर हजारों की संख्या में अंडे देती है, इसकी वजह से इसकी संख्या बहुत तेजी से फैलती है।

कब कितनी मछली निकाली
वर्ष मछली निकाली
2009-10 3500
2010-11 26
2011-12 00
2012-13 114
2013-14 00
2014-15 7304
2015-16 40,117
2016-17 9,000
2017-18 236
2018-19 00
2019-20 2,159
2020-21 9044
2021-22 354
2022-23 6,556

मांगुर को नष्ट करेंगे
असल में वर्ष 1997 में केंद्रीय कृषि विभाग ने सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर इस प्रजाति की मछली के मौजूदा स्टॉक को नष्ट करने की बात कही थी। वर्ष 2000 में कृषि मंत्रालय ने इस प्रजाति के प्रजनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसे में केवलादेव उद्यान में अफ्रीकन कैट फिश (मांगुर) के खिलाफ 12 साल से अभियान चला रखा है। एक महीने तक अभियान जारी रखा गया था।
मानस ङ्क्षसह, डीएफओ, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर