जानिए पशु और पशुपालकों की पीड़ा 1. उफ दवा… ऊंट के मुंह में जीरा कहने को भरतपुर स्थित पशु चिकित्सालय संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन सुविधाओं का टोटा इसे छोटे अस्पतालों की श्रेणी की ओर से धकेलता प्रतीत हो रहा है। पहले पशुओं के लिए अस्पताल से करीब 122 दवाएं मिलती थीं, जो अब सिमटकर महज 20 से 22 प्रकार की रह गई हैं। यह दवा भी अस्पताल को बेहद कम मात्रा में मिल रही हैं। स्टॉक कम आने के कारण एक बार की डिमांड में महज 8 से 10 दिन ही काम चल पाता है। ऐसे में पशुपालकों को महंंगे दामों पर बाजार से दवा खरीदनी पड़ती हैं।
2. भवन के हाल भी खराब पशुओं का उपचार करने के लिए बने भवन के भी हाल खराब हैं। इस संबंध में कई मर्तबा पशु चिकित्सक एवं अधिकारियों ने उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा है, लेकिन इसके बाद भी व्यवस्थाओं में खास सुधार नहीं हो सका है। सूत्रों ने बताया कि बिल्डिंग में बिजली के तार भी यहां-वहां बिखरे पड़े हैं। इसके अलावा बारिश के मौसम में भवन में नमी है। ऐसे में यहां करंट का खतरा लगातार बना हुआ है। अधिकारियों के कहने के बाद भी न तो इसके लिए बजट मिला है और न ही अन्य कोई सुधार किया है। ऐसे में पशुपालकों को परेशान होना पड़ रहा है।
3. चिकित्सक भी नहीं पूरे संभाग मुख्यालय के जिले में बने पशु चिकित्सलय में पशु चिकित्सकों का भी कमी महसूस की जाती है। चिकित्सालय की स्थापना के समय से भी यहां स्वीकृत पदों के अनुरूप चिकित्सक लगाए जा रहे हैं, जबकि पशु धन की संख्या बढऩे के कारण यहां चिकित्सकों की कमी साफ महसूस की जा रही है। खास बात यह है कि अन्य संभाग स्तर के जिलों में चार-चार चिकित्सालय स्थापित हैं, लेकिन भरतपुर में एक ही चिकित्सालय है। ऐसे में यहां दूरदराज के पशु उपचार के लिए पहुंचते हैं, जिन्हें पर्याप्त सुविधा नहीं मिल पाती।
इनका कहना है हमारे पास मेडिसिन आ चुकी है। कुछ दवाएं पहले लॉकडाउन की वजह से अटक गई थीं। अब हम सभी जगह सप्लाई कर रहे हैं। सभी केन्द्रों पर 15 दिन में दवाएं पहुंच जाएंगी। ऑपरेशन थियेटर हमारे यहां नहीं है। इसके लिए पत्र व्यवहार किया है। थियेटर के रजिस्ट्रेशन का काम प्रोसिस में है। कोशिश है कि थियेटर की जल्द स्थापना हो।
– नगेश कुमार, संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग भरतपुर