scriptहोलकर से दोस्ती की खातिर महाराजा रणजीत सिंह ने ठुकराया था अंग्रेजों से संधि का प्रस्ताव | Ranjit Singh rejected the offer of a treaty with the British | Patrika News

होलकर से दोस्ती की खातिर महाराजा रणजीत सिंह ने ठुकराया था अंग्रेजों से संधि का प्रस्ताव

locationभरतपुरPublished: Dec 03, 2020 03:36:13 pm

Submitted by:

Meghshyam Parashar

-महाराजा यशवतंराव होलकर की जयंती आज

होलकर से दोस्ती की खातिर महाराजा रणजीत सिंह ने ठुकराया था अंग्रेजों से संधि का प्रस्ताव

होलकर से दोस्ती की खातिर महाराजा रणजीत सिंह ने ठुकराया था अंग्रेजों से संधि का प्रस्ताव

भरतपुर. अंग्रेजों के जानी दुश्मन इंदौर के महाराजा यशवंतराव होलकर और भरतपुर के महाराजा रणजीत सिंह के साथ गहरी मित्रता थी। भरतपुर के महाराजा ने अपने देश प्रेमी मित्र यशवंत राव होलकर की खातिर अंग्रेजों की संधि को ठुकरा दिया था। भारत की आजादी के लिए सन 1805 ई. में भरतपुर दुर्ग पर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ा गया युद्ध भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रखता है। करीब तीन माह तक चले इस भीषण युद्ध में जाट-होलकर वीरों ने बड़ी बहादुरी का प्रदर्शन किया था। इंदौर- भरतपुर के योद्धाओं के आगे अंग्रेजी सेना टिक नहीं पाई थी। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बावजूद भी किले का पतन नहीं हो सका था। अंग्रेजों से लोहा लेने के उपरांत भरतपुर दुर्ग को लोहागढ़ का खिताब मिला था।
भारतीय स्वतंत्रता के महानायक महाराजा यशवंतराव होलकर पुस्तक के लेखक घनश्याम होलकर के अनुसार यशवंत राव होलकर का जन्म महाराष्ट्र के बाफगांव में तुकोजीराव होलकर के यहां तीन दिसंबर सन 1776 ई. को हुआ था। छह जनवरी सन् 1799 ई. को राजगद्दी पर बैठने के बाद उन्होंने मराठा संघ को एकजुट करने का प्रयास किया लेकिन आपसी वर्चस्व को लेकर सफलता नहीं मिली। परिणाम स्वरूप सन 1802 ई. में होलकर की सेना ने बाजीराव पेशवा द्वितीय और दौलतराव सिंधिया की संयुक्त सेना को हड़पसर के मैदान में परास्त कर दिया। पेशवा अपनी जान को खतरा जान कर अंग्रेजों से जा मिले हालांकि होलकर ने उन्हें वापस बुलाने के प्रयास किए लेकिन अंग्रेजी षडय़ंत्रों के कारण ऐसा नहीं हो सका और पेशवा ने अंग्रेजों से संधि कर ली। इसी दौरान रघुजी भोंसले और दौलतराव सिंधिया अंग्रेजों से परास्त होकर संधि कर बैठे। यशवंत राव होलकर ने आठ जुलाई सन् 1804 ई. को कोटा के समीप कर्नल मानसन की सेना को लगभग समाप्त कर दिया। वाकई होलकर पुस्तक में मोहन सिंह लिखते हैं कि जब कोटा से मानसन का पीछा करते हुए होलकर की सेना फतेहपुर सीकरी पहुंची तो रात्रि का लाभ उठाकर मानसन आगरा की ओर भाग गया। यशवंत राव होलकर ने अपने दूत भास्कर भाऊ को पत्र लिखकर भरतपुर के महाराजा के पास भेजा। उन्होंने पत्र में लिखा दोस्ती की खातिर देश की रक्षा के हित में आप हमारा साथ दें। उन्होंने अन्य भारतीय शासकों को भी पत्र लिखते हुए कहा कि हमें जाति धर्म से ऊपर उठकर देश धर्म के लिए एकजुट होना होगा अंग्रेजों को भारत से खदेडऩे के लिए आप सभी हमारा साथ दें।
भारत में अंग्रेजी राज पुस्तक के भाग दो मे सुंदरलाल लिखते हैं कि कर्नल मानसन के आगरा की ओर भागते ही यशवंतराव ने आगे बढ़कर अंग्रेजी कंपनी के इलाके मथुरा पर अपना कब्जा जमा लिया और आगे की रणनीति तैयार कर दिल्ली की ओर कूच किया। मराठों का नवीन इतिहास पुस्तक के भाग तीन मे गोविंद सखा राम सरदेसाई लिखते हैं कि भरतपुर के जाट राजा रणजीत सिंह ने इस समय स्पष्ट रूप से होलकर का पक्ष अपना लिया था हालांकि रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से संधि कर ली थी लेकिन यशवंतराव की नीति-रीति से प्रभावित होकर उसका साथ देने का निर्णय लिया। रणजीत सिंह ने अपनी संधि का खंडन कर दिया। जाट लोग वीर योद्धा थे। अपनी स्वाधीनता की रक्षा के दृढ़ निश्चय का प्रदर्शन वे कई बार कर चुके थे। उन्होंने भारत के उद्धारक के रूप में यशवंत राव होलकर का डीग में स्वागत किया। जाटों का गौरवशाली इतिहास पुस्तक में रामवीर सिंह वर्मा लिखते हैं कि मराठों में अब केवल यशवंतराव होलकर ही केवल ऐसा व्यक्ति था जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी तलवार को म्यान में नहीं रखा था। सात जनवरी सन् 1805 ई. में भरतपुर के मैदान में शुरू हुआ यह युद्ध करीब तीन महीने तक चलता रहा। इस दौरान दोनों ओर से जमकर गोले बरसाए गए । बंदूक की गोलियां चली और तलवार, भाले, बल्लम, फरसा तीर कमान की परंपरागत लड़ाई की मार शुरू हो गई। इंदौर और भरतपुर के सैनिकों ने मिलकर बड़ा युद्ध कौशल दिखलाया था। हजारों अंग्रेजी सैनिक इस युद्ध में मारे गए। भरतपुर का मैदान अंग्रेजी सैनिकों की लाशों से पट गया था। 21 फरवरी को अंग्रेजों ने चौथा प्रयास किया लेकिन फिर मुंह की खाई अंग्रेजों के इस बार 3200 सैनिक मारे गए, जिनमें 103 यूरोपियन अफसर थे। द ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया पुस्तक के भाग 3 में स्मिथ लिखते हैं कि कोटा में मानसन की हार और आगरा पलायन, दिल्ली का घेरा और भरतपुर में फिर असफलता ने वैलजली के जादू का अंत कर दिया। साम्राज्य विस्तार की दौड़ अंतिम चरण में रुक गई। भरतपुर युद्ध इतना उग्र और विकराल था जिसे भारत के इतिहास में अमर महाकाव्य की प्रसिद्धि प्राप्त हुई। अंग्रेजों का नेतृत्व लॉर्ड लेक ने किया था। कर्नल मरे, कर्नल डान, कर्नल मानसन, कर्नल बर्न,मेजर जनरल जोन्स,, जनरल स्मिथ, कर्नल जैट, लैड और सीटन प्रमुख रूप से शामिल थे।
ऐतिहासिक पत्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वे अंतिम समय तक सक्रिय रहे थे। 28 अक्टूबर सन् 1811 ई. को देव उठनी एकादशी के दिन प्रात:काल उस महान देश भक्त योद्धा ने अंतिम सांस लेकर इस दुनियां से विदाई ली थी। उनका भव्य स्मारक भानपुरा में बनाया गया। कर्नल जेम्स टॉड यशवंतराव होलकर की मृत्यु के दस बर्ष बाद भानपुरा पहुंचे थे। उन्होंने वहां आमजन मे महाराजा के प्रति आदर और सम्मान को करीब से देखा था। राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास पुस्तक के भाग तीन में उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा जब वे महाराजा के प्रिय अश्व महुआ के पास पहुंचे तो वह घोड़ा आक्रमण की मुद्रा में आ गया था। होलकर का घोड़ा भी अपने स्वामी की भांति हम फिरंगियों से नफरत करता है।

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