
नगर निगम में पीएस राशि की आड़ में चल रहा मनमानी व मिलीभगत का खेल जनहित पर भारी पड़ रहा है। यह खेल यहां कई वर्षों से जारी है, लेकिन निगम ने आज तक इस मामले में कभी किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।
यही वजह है कि निगम के निर्माण कार्य लटके रहते हैं और कामों की कछुआ चाल के आगे शहर की जनता रोती रहती है।
क्या है पीएस राशि का खेल
नगर निकायों में यह आम टे्रंड बन चुका है कि किसी कार्य की टैंडर में जो राशि लिखी जाती है, ठेकेदारों द्वारा उससे कम दाम पर (बिलों राशि) पर काम लेते हैं। इस प्रक्रिया में यह प्रावधान है कि कम दाम में लिए गए ठेके मेें निगम ठेकेदार से पीएस राशि (एक प्रकार की अमानत राशि) जमा करे।
इसके बाद ही संबंधित ठेकेदार को उक्त काम का कार्यादेश जारी किया जाता है। लेकिन इसमें छोड़ी गई 'गलीÓ निगम कर्मियों तथा ठेकेदारों को खूब रास आती रही है। नगर निगम पीएस राशि जमा कराने के लिए पत्र तो जारी करता है, लेकिन इस बात की चिंता नहीं करता कि तय मियाद में संबंधित ठेकेदार ने राशि जमा कराई है कि नहीं।
ना ही कभी ठेकेदारों को इस बात के लिए पाबंद करना ही उचित नहीं समझा गया कि वे पीएस राशि एक समय सीमा में जमा कराएं ताकि कार्यादेश जारी किए जा सके। एक साथ कई कामों के टैंडर लेने वाले ठेकेदार एक-दो कामों की पीएस राशि जमा कराकर उन कामों के तो कार्यादेश ले लेते हैं, जबकि शेष को लटका देते हैं।
इन कामों को पूरा करके उन्हें पीएस राशि का रिफंड मिलता है जिसे फिर से जमा कराकर वे अन्य टैंडर का कार्यादेश लेते हैं। इस वजह से निगम के कामों का लंबित होना आम बात बन चुकी है। कई मामलों में तो टैंडर होने के कई-कई माह बाद भी कार्यादेश जारी नहीं होते।
सरकार को हो सकता है नुकसान
पीएस राशि ऐसे मामलों में वसूली जाती है जिसमें टैंडर कम राशि (बिलो) में खुलते हैं। यदि निगम अब टैंडर निरस्त करता है और आगामी टैंडर में ठेकेदार बढ़ी राशि से टैंडर लेता है तो ऐसे में सरकार को वित्तीय नुकसान हो सकता है, लेकिन निगम चुप्पी साधे है।
अब लगा रहे जीएसटी का बहाना
जीएसटी लागू होने के बाद से निगम में एक और नई मुसीबत खड़ी हो गई है। जो टैंडर एक जुलाई से पूर्व जारी हुए और उनकी पीएस राशि जमा नहीं हुई है, ऐसे ठेकेदारों पर निगम का कोई नियंत्रण नहीं और निगम पर इन टैंडरों को निरस्त करने का दबाव बनाया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि यदि निगम पीएस राशि निर्धारित समय सीमा में जमा करा लेता तो जीएसटी लागू होने से उस पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन वह वह स्वयं दोराहे पर है।
यूआईटी झंझट से दूर
नगर निगम के टैंडर उसके लिए गलफांस बन गए हैं, लेकिन नगर विकास न्यास में चैन की बंसरी बज रही है। शहर का विकास करने वाली दोनों संस्थाओं में एक ही मामले को लेकर अलग-अलग हालात ने निगम की कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर दिया है। माना जा रहा है कि पीएस राशि जमा कराने के प्रति सख्त रवैया नहीं होने के कारण निगम में ऐसे हालात पैदा हुए हैं।
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