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जिंदगी के साथ अर्पण, अंतिम समय परिजन सा तर्पण

- सैकड़ों प्रभुजी को बेटा बनकर दे रहे मुखाग्नि- गंगाजी भी जाती हैं प्रभुजी की अस्थियां

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जिंदगी के साथ अर्पण, अंतिम समय परिजन सा तर्पण

जिंदगी के साथ अर्पण, अंतिम समय परिजन सा तर्पण

भरतपुर. अपनों ने बिसराया तो वह दर-दर की ठोकर खाने पर विवश हो गए। न जिंदगी का गुमान रहा और न मौत का भान। न काया की कद्र थी और न मन की फिक्र। जिंदगी जैसे बोझ हो गई हो। धरती उनकी बिछौना बन गई और आसमां चादर। सांसों के नाम पर चलती ऐसी जिंदगियों का सहारा और अंतिम समय का आसारा 'अपना घर बना है। जिंदगी को अलविदा कहने वाले 'प्रभुजी के 'अपने बने हैं अपना घर के संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज एवं उनकी पत्नी डॉ. माधुरी भारद्वाज।
सड़कों पर बेसुध घूमती ऐसी जिंदगियों को जीवन देने का जुनून उनकी रग-रग में समाया है। जीते-जी ऐसी जिंदगियों का सहारा बनने के साथ वह अंतिम समय में भी ऐसे लोगों का आसरा बन गए हैं। उनके अपने उन्हें बिसरा चुके हैं। ऐसे प्रभुजी के अंत समय का सहारा डॉ. दंपती बने हुए हैं। भारद्वाज दंपती सैकड़ों प्रभुजी को बेटा-बेटी बनकर मुखाग्नि दे चुके हैं। ऐसे प्रभुजन की जिंदगी संवारने को दंपती जीन-जान से जुटे हैं। अपना घर में सही होने वाले कई प्रभुजन को तो उनकेअपने घर ले जाते हैं, लेकिन जिनका कोई नहीं है, उनका सहारा डॉ. भारद्वाज दंपती हैं। अपना घर में स्वर्गवासी होने वाले सभी प्रभुजन को दंपती विधि-विधान से मुखाग्नि देकर उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी को भलीभांति निभा रहे हैं। यह सिलसिला यहां बरसों से चल रहा है। डॉ. दंपती कहते हैं कि संभवतया भगवान ने हमें ऐसे लोगों के लिए चुना है। ऐसे लोगों को जिंदगी देना भगवान के हाथ में है, लेकिन यदि ऐसे लोग स्वर्गवासी होते हैं तो उनका अंतिम संस्कार भी हमारा फर्ज है।

अस्थियां जाती हैं गंगा-जमुना

अपना घर में प्राण त्यागने वाले प्रभुजी का विधि विधान के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाता है। अस्थियां विसर्जन करने के लिए भी यहां पूरी व्यवस्था है। अंतिम संस्कार करने के बाद पहले अस्थियों को गंगाजी ले जाया जाता था, लेकिन कोरोना काल में इन अस्थियों को जमुनाजी ले जाया जा रहा है। खास बात यह है कि श्राद्ध पक्ष में पितृ अमावस्या को सभी को एक साथ तर्पण किया जाता है। पूर्व में सभी का अंतिम संस्कार धर्मानुसार किया जाता था, लेकिन कुछ जगह से सहयोग नहीं मिलने के कारण अब सभी को मुखाग्नि दी जा रही है।

अंतिम इच्छा करते हैं पूरी

अपना घर के संस्थापक डॉ. बी.एम. भारद्वाज बताते हैं कि अमूमन प्रभुजी का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार कर दिया जाता है, लेकिन यदि कोई प्रभुजी कहकर जाते हैं कि उनका अंतिम संस्कार फलां जगह होना चाहिए तो उनकी इस अच्छा को पूरी किया जाता है। प्रभुजी के बताए गए स्थान पर उनका रीति-रिवाज के अनुसार संस्कार किया जाता है। अन्य संस्कार भी उनकी इच्छा के अनुसार पूरे किए जाते हैं।

अब तक 3232 का हो चुके स्वर्गवासी

- 3232 प्रभुजनों का अपना घर में स्वर्गवास हो चुका है अब तक वर्ष 2005 से।

- 1996 पुरुष प्रभुजन

- 1236 महिला प्रभुजन