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परमदरा ऐसा गांव…यहां भगवान कृष्ण के भाई ने सीखी थी मल्ल विद्या, हर घर में पहलवान

locationभरतपुरPublished: Aug 11, 2020 07:46:40 pm

Submitted by:

Meghshyam Parashar

-प्रदेश में सुदामा का एकमात्र मंदिर है स्थापित

परमदरा ऐसा गांव...यहां भगवान कृष्ण के भाई ने सीखी थी मल्ल विद्या, हर घर में पहलवान

परमदरा ऐसा गांव…यहां भगवान कृष्ण के भाई ने सीखी थी मल्ल विद्या, हर घर में पहलवान

भरतपुर/डीग. जिले के डीग-कामां मार्ग स्थित गांव परमदरा में प्रदेश का एकमात्र सुदामा मंदिर है, वे भगवान श्रीकृष्ण के सखा थे। श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने इसी गांव में मल्ल विद्या का हुनर सीखा था। शास्त्रों में भी इस बात का प्रमाण मिलता है। चूंकि यहां आज भी प्राचीन समय से बलराम अखाड़ा संचालित है, जहां से पहलवानी का हुनर सीखने वाले पहलवानों ने देशभर में ताकत का लोहा मनवाया है। गांव के हर घर से पहलवान निकले हैं।
डीग-कामां सड़क मार्ग पर स्थित गांव परमदरा ब्रजांचल में भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली रहा है। इसको प्राचीन ग्रंथों में प्रमोदवन के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने मल्ल विद्या सीखी थी यहां द्वापर कालीन कृष्ण कुंड के पास स्थित कल्याण बगीची में बलराम अखाड़ा आज भी मौजूद है। इसके पास ही भगवान श्री कृष्ण के परम सखा सुदामा का मंदिर है। गांव परमदरा प्रारंभ से ही मल्लविद्या का केंद्र रहा है। यहां के गुर्जर समुदाय के लोगों का शुरू से ही पशुपालन के साथ मल्ल विद्या के प्रति रुझान रहा है। इस गांव के निवासी बंशो पहलवान, जिनकी उम्र वर्तमान में करीब 100 वर्ष बताई जाती है वह भरतपुर रियासत के प्रमुख पहलवान रहे हैं। जबकि परमदरा के पूर्व सरपंच नत्थन पहलवान पांच बार राजस्थान केसरी रह चुके हैं तथा इन्होंने वर्ष 1975 में कोलकाता में आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। गांव के रतन पहलवान भी पांच बार राजस्थान केसरी रह चुके हैं। प्रताप पहलवान ने 100 किलो वर्ग में जलदाय विभाग में विभागीय कुश्ती प्रतियोगिता में राजस्थान में पहला स्थान प्राप्त किया था। युवा पहलवान मनोज ने 65 किलो वर्ग में खेलो इंडिया कुश्ती प्रतियोगिता में देश में पहला स्थान प्राप्त किया है। आज भी बलराम अखाड़े में प्रतिदिन गांव के करीब पांच दर्जन बाल और युवा पहलवान बुजुर्ग नत्थन पहलवान रतन पहलवान से प्रतिदिन मल्लविद्या के दांवपेच सीखते हैं।
-आज उम्र 100 वर्ष की हो गई है। जिस समय पहलवानी किया करता था उस समय प्रतिदिन 10 किलो दूध, आधा किलो घी, 250 ग्राम बादाम व 250 ग्राम मुनक्का खाता था। हर दिन पांच हजार दंड बैठक करता था। न तो अब पहलवानों को उतनी खुराक मिल पा रही है और न सही प्रशिक्षण मिल पा रहा है। मल्ल विद्या बृज संस्कृति की परिचायक है। सरकार को इसके संरक्षण के प्रयास करने चाहिए।
बंशो गुर्जर, पूर्व राजस्थान केसरी, निवासी परमदरा
-यदि गांव परमदरा में खेल स्टेडियम बनवा कर खेल प्रशिक्षक की नियुक्ति करा पहलवानों के लिए सरकार की ओर से समुचित खुराक की व्यवस्था की जाए तो यहां के पहलवान दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं।
नत्थन पहलवान पूर्व राजस्थान केसरी, निवासी परमदरा
-अब लोगों के पास छोटे-छोटे खेत रह गए हैं। आमदनी का कोई और जरिया नहीं है फिर पहलवान के लिए खुराक कहां से लाएं। ऐसी हालत में सरकार या निजी क्षेत्र की कंपनियों को आगे आकर पहलवानों को गोद लेकर उनके लिए खुराक और प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए।
रतन पहलवान पूर्व राजस्थान केसरी
-गांव परमदरा में मल्ल विद्या को बढ़ावा देने के लिए सरकार को यहां खेल स्टेडियम का निर्माण कराकर कोच नियुक्त कर पहलवानों को समुचित सुविधाएं उपलब्ध करनी चाहिए तभी खेल प्रतिभाएं निखर कर आगे आ पाएंगी।
प्रताप पहलवान, निवासी परमदरा
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