
रेल लाइन की निगरानी के लिए सशस्त्र सीमा बल की दो बटालियन यहां 24 घंटे तैनात जब आप खबर पढ़ रहे होंगे उसके 24 घंटे के भीतर इस ट्रैक पर पहली बार ट्रेन चलेगी। इस ट्रेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां से 300 किलोमीटर दूर बस्तर अंचल के बीजापुर से 14 अप्रैल को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे। जिस ट्रैक पर पहली बार ट्रेन चलने वाली उस ट्रैक के सुरक्षा इंतजाम देखने पत्रिका की टीम यहां पहुंची। यह पहली बार मौका है जब रेल परियोजना के पूरे 90 किलोमीटर क्षेत्र की रिपोर्टिंग की गई है।

इस इलाके में पल-पल खतरा रावघाट रेल परियोजना का दूसरा चरण भी पूरा देश की सबसे महत्वकांक्षी रावघाट रेल परियोजना का दूसरा चरण पूरा हो चुका है। इसके पहले चरण में 17 किमी का ट्रैक बिछाया गया, जिसके अंतिम स्टेशन गुदुम तक ही ट्रेन चल रही है। इसके आगे 17 किमी का ट्रैक भानुप्रतापपुर तक बन गया है। पत्रिका टीम इस ट्रैक के भानुप्रतापुर थानांतर्गत भैंसमुंडी इलाके में पहुंची तो एसएसबी की सर्चिंग टीम मौजूद थी। आसपास के बड़े इलाके को भी एसएसबी ने अपनी निगरानी में ले रखा था।

एसएसबी की निगरानी रावघाट रेल परियोजना का दूसरा चरण पूरा यहां पल-पल खतरा और चारों तरफ पसरी दहशतइस इलाके में पल-पल खतरा है। चारों तरफ दहशत है। नक्सलियों के आतंक से यहां मीडिया भी विशेष सुरक्षा के बिना यहां नहीं पहुंच पाते। देश के अंदर का ऐसा खतरनाक इलाका जहां रेल लाइन की सुरक्षा के लिए सशस्त्र सीमा बल की दो बटालियन चौबीस घंटे पहरा दे रही हैं। इसके आगे रावघाट क्षेत्र बीएसएफ की दो बटालियन की सुरक्षा में है। इस रेल लाइन को बिछाने में साठ साल लग गए।

सशस्त्र सीमा बल जिनके सुरक्षा घेरे की वजह से रेललाइन कागजों से धरातल पर उतर आई सुरक्षा कारणों से कुछ तथ्य प्रकाशित नहीं किए जा रहे पत्रिका ने इस पूरे इलाके की रिपोर्टिंग की। यहां सशस्त्र सीमा बल के आठ कैम्प ऑपरेटिंग बेस (सीओबी) हैं। दो बटालियन यहां तैनात हैं, लेकिन इनकी संख्या और स्थान का उल्लेख सुरक्षा कारणों से नहीं किया जा रहा है। फिर भी बता दें कि रावघाट तक रेलवे ट्रैक नहीं बिछाया जाएगा। माना जा रहा है कि अगले तीन साल में ट्रैक अपने आखिरी पड़ाव तक पहुंच जाएगा। रावघाट से वहां तक लौह अयस्क को ढोकर लाया जाएगा, इसके बाद रेलवे रैक के जरिए इसको बीएसपी तक पहुंचाया जाएगा।

2014 से अब तक 34 किलोमीटर तक का रेलवे ट्रैक बनाना आसान नहीं था पर एसएसबी ने कर दिखाया। चप्पे-चप्पे पर जवानों की नजर गुदुम से लेकर अंतागढ़ और नारायणपुर मार्ग पर कुछ किलोमीटर पर एसएसबी और बीएसएफ के जवान सड़क पर सभी आने-जाने वाली गाडिय़ों की चैकिंग करते हैं। पत्रिका टीम के आने की पहले से सूचना थी, एसएसबी के अफसर भी साथ थे, तब भी गाड़ी को पूरी जांच और तसल्ली के बाद ही आगे जाने दिया गया। रोजाना जवान जंगल में मजदूरों को सुरक्षा देने जाते हैं। इन दिनों यहां पेड़ कटाईका काम चल रहा है जो सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है।क्योंकि पेड़़ कटने के बाद अगर जल्दी नहीं उठाए गएतो माओवादियों को उसमें आइईडी लगाने का मौका मिल जाता है और दबे हुएपेड़ों के नीचे आइइडी खोज निकालना बड़ा चैलेंज होता है। पर यहां जवान काम करने वाले लोगों के साथ साया बनकर साथ होते हैं ताकि वे बेफ्रिक होकर अपना काम जल्दी और आसानी से कर सकें।

एसएसबी और बीएसएफ के जवान सड़क पर सभी आने-जाने वाली गाडिय़ों की चैकिंग करते हैं। एसएसबी के बिना संभव नहीं था रेललाइन बिछाना शुक्रवार को एक और उपलब्धि भरा दिन बीएसपी के साथ-साथ रेलवे के लिएभी होगा पर इन सब के बीच सबसे ज्यादा खुश होंगा सशस्त्र सीमा बल जिनके सुरक्षा घेरे की वजह से रेललाइन कागजों से धरातल पर उतर आई। 2014 से अब तक 34 किलोमीटर तक का रेलवे ट्रैक बनाना आसान नहीं था पर एसएसबी ने कर दिखाया। चाहे जमीके समतलीकरण का काम हो या पुल-पुलियों की सुरक्षा या फिर जंगल में सबसे पहले पेड़ कटवाना हो। वे हर वक्त मजदूरों के साथ साए की तरह साथहोते हैं। 56 किलोमीटर के बचे हुएरेलवे ट्रैक पर 79 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में पेड़ कटाईसे लेकर लेवलिंग का काम हो चुका है।बस अब बीच के पुल-पुलियों के तैयार होने का इंतजार है। एसएसबी के यहां आठ कैम्प ऑपरेटिंग बेस (सीओबी) हैं।

अब तक बिना किसी नुकसान के 34 किलोमीटर रेलवे टै्रक तैयार करा दिया हर चैलेंज के लिए हम तैयार : डीआईजी मनमोहन सिंह, सशस्त्र सीमा बल के डीआईजी मनमोहन सिंह कहते हैं, एसएसबी ने जो जिम्मेदारी ली है वह समय पर ही पूरी होगी। अब तक बिना किसी नुकसान के 34 किलोमीटर रेलवे टै्रक तैयार करा दिया। आगे भी 56 किलोमीटर के बचे हुए वर्क को टाइम लिमिट में ही तैयार करा दिया जाएगा। हमारी फोर्स सभी चैलेंज के लिए तैयार है। अगले तीन साल में यह ट्रेन 95 किलोमीटर का अपना सफर यह करेगी। रावघाट रेल लाइन उनके जीवन में भी नया बदलाव लेकर आ रही है। आज ट्रैक का काम शुरू होने के बाद माओवादी क्षेत्र से लगे गांव फोर्स की वजह से खुद को सुरक्षित महसूस करने लगे हैं और यह हमारे लिए भी बड़ी बात है कि फोर्स ने उनका विश्वास जीता।

आगे भी 56 किलोमीटर के बचे हुए वर्क को टाइम लिमिट में तैयार कराया जाएगा