
अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारों पर छत्तीसगढ़ के दिव्यांग चित्रसेन ने फहराया तिरंगा
भिलाई@Patrika. मंजिले उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है, प्रेरणा देने वाली यह पंक्तियां युवा चित्रसेन पर खरी उतरती है।(Bhilai patrika) ट्रेन एक्सीडेंट में दोनों पैर खोने के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी। नकली पैरों के जरिए फिर खड़ा हुआ कुछ अलग कर दिखाने को। ऐसे में दिव्यांग पर्वतारोही (Divyang Mountaineer) अरुणिमा सिन्हा की कहानी उसे इस कदर प्रेरित कर गई कि उसने तीन दिन पहले दक्षिण आफ्रीका सबसे ऊंची चोटी को फतह कर लिया। बालोद के छोटे से गांव बेलौदी के चित्रसेन ने अपने हौसलों के दमपर गांव के साथ ही प्रदेश और देश का नाम रोशन किया। आफ्रीका के माउंट किलीमंजारो (Kilimanjaro Africa highest peak)को फतह कर वहां तिरंगा लहराते ही चित्रसेन ने छत्तीसगढिय़ा सबसे बढिय़ा का नारा लगाया। नेशनल रिकार्ड(National record) बनाने के साथ ही प्लास्टिक फ्री छत्तीसगढ़ का संदेश दिया। इस दौरान उन्होंने अपने अभियान का नाम 'अपने पैरों पर खड़े हैं Ó दिया।
6 दिन की मेहनत से मिली जीत
चित्रसेन ने पत्रिका को बताया कि इस पर्वतारोहण अभियान में छत्तीसगढ़ से राहुल गुप्ता भी उनके साथ थे जिन्होंने इस अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने बताया कि इस चढ़ाई में उन्हें 6 दिल लगे। 19 सितम्बर दोपहर 1 बजे से चढ़ाई शुरू की और 23 सितंबर दोपहर 2 बजे इस अभियान को पूरा किया। उन्होंने बताया कि इस चढ़ाई में उन्हें काफी दिक्कतें भी आई पर उन्होंने हौसला बनाए रखा। सबसे ज्यादा परेशानी आखिरी दिन हुई, इस दिन 12 घंटे की चढ़ाई उन्हें माइनस 5 से 10 डिग्री तापमान में बर्फीले तूफान के बीच पूरी की। इसी दौरान उनके पैर में भी चोट आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनका टारगेट उहरु चोटी तक पहुंचने का था, लेकिन समय अधिक होने, किलिमंजारो नेशनल पार्क के नियम के साथ ही मौसम देखते हुए उन्हें वहीं रोक दिया गया।
आसान नहीं सफर, पर मुश्किल भी नहीं
छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल में सिविल इंजीनियर 27 साल के चित्रसेन साहू दोनों पैर से दिव्यांग है। एक दुर्घटना में अपने दोनों पैर खो चुके चित्रसेन पिछले डेढ़ साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं। इससे पहले वे हिमाचल प्रदेश के 14 हजार फीट ऊंची चोटी की चढ़ाई चुके हैं। यही नहीं मैनपाट सहित राज्य के कई छोटे-बड़े माउंटेन पर भी उसने चढ़ाई की है। वे छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो दिव्यांग होने के बाद प्रोस्थेटिक लैग और बुलंद हौसले के दम पर किलिमंजारो फतह की। चित्रसेन ने बताया कि इस एवरेस्ट पर चढ़ाई करना आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। उनके दोनों पैर प्रोस्थेटिक (लैग) हैं। जिनका एक पैर प्रोस्थेटिक होता है और एक रियल, वो चढ़ाई के दौरान दूसरे पैर की ताकत का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने दोनों प्रोस्थेटिक लैग पर एनर्जी लगाकर चढ़ाई की।
पैर कटा तो अरुणिमा की बुक से मिली हिम्मत
चित्रसेन के जीवन में 4 जून 2014 का दिन जिदंगी बदल गया। बिलासपुर से अपने घर (ग्राम बेलोदी, जिला बालोद) जाने के लिए वे अमरकंटक एक्सप्रेस पर सवार हुआ था। प्यास लगने पर पानी लेने भाटापारा स्टेशन में उतरे ही थे कि ट्रेन का हॉर्न बज गया। वे ट्रेन में चढऩे के लिए दौड़े और अचानक उनका पैर फिसलकर ट्रेन के बीच में फंस गया। दुर्घटना के अगले ही दिन एक पैर डॉक्टरों ने काट दिया। इसके ठीक 24 दिन बाद इंफेक्शन के कारण दूसरा पैर भी काटना पड़ा। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा। इस बीच परिवार और दोस्तों ने हमेशा हिम्मत बढ़ाई। किसी ने उन्हें पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की दी और उनकी कहानी पढ़कर हौसला ऐसा बढ़ा कि दोबारा मुड़कर नहीं देखा। फरवरी 2015 में जयपुर कृत्रिम पैर लगाकर और जून में प्रोस्थेटिक लैग लगा लिया। प्रोस्थेटिक लैग लगने के बाद दोबारा खेलना शुरू किया। व्हीलचेयर पर बास्केटबॉल खेलने के साथ ही वुमंस टीम भी बनाई। साथ ही वे उन लोगों से भी लगातार मिलते हैं जो किसी हादसे के शिकार होकर अपने किसी अंग को खो देते हैं। वे बताते है कि हॉस्पिटल जाकर वे उनसे मिलते हैं और उन्हें जिंदगी से लडऩे और जीतने के लिए मोटिवेट करते हैं।
जानिए यह भी
कैंपेन - अपने पैरों पर खड़े हैं
स्थान - आफ्रीका महाद्वीप
देश - तंजानिया
पर्वत - माउंट किलिमंजारो
ऊंचाई - 5685 मीटर
चढ़ाई पूरी की - 6 दिन में
Published on:
26 Sept 2019 11:09 pm
बड़ी खबरें
View Allभिलाई
छत्तीसगढ़
ट्रेंडिंग
