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सिर्फ इंसानों को ही नहीं कीट-पतंगों को भी लगती है गर्मी, इसलिए फुर्र हो गई 10 लाख की मधुमक्खी

मधुमक्खियां बिना प्रोडक्शन किए ही फुर्र हो गई हैं। अब खाली डिब्बे और छत्ते ही रह गए हैं। इस पूरे मामले में जिम्मेदार जवाब देने से बच रहे हैं।

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Rajnandgaon patrika

गर्मी बढऩे से शहद प्रोडक्शन के लिए लाई 10 लाख की मधुमक्खी उड़ गईं

राजनांदगांव. जिले के छुईखदान ब्लाक मुख्यालय से 18 किमी दूर ग्राम कुकरीटोला में चल रही मधुमक्खी पालन जैसी केंद्र सरकार की महती योजना दम तोड़ चुकी है। अधूरे प्रशिक्षण, मॉनिटरिंग का अभाव और मधुमक्खियों का रख-रखाव नहीं होने कारण ये मधुमक्खियां बिना प्रोडक्शन किए ही फुर्र हो गई हैं। अब खाली डिब्बे और छत्ते ही रह गए हैं। इस पूरे मामले में जिम्मेदार जवाब देने से बच रहे हैं। स्थानीय खादी ग्रामोद्योग के अफसरों का कहना है कि उनका काम लोन देना है। मधुमक्खी के रख-रखाव के बारे में उन्हें जानकारी नहीं। वहीं निजी फर्म का कहना है कि युवाओं को पुणे की टीम ने प्रशिक्षण देकर मधुमक्खी दी थी, तापमान बढऩे के कारण मधुमक्खी उड़ गईं होंगी।

एक-एक युवाओं को करीब 60 हजार का नुकसान
मधुमक्खी पालन कर अपनी गरीबी दूर करने का सपना संजो रहे कुकरीटोला के २० युवा किसानों को भी बड़ा झटका लगा है। बताया कि एक-एक युवाओं को करीब ५०-६० हजार रुपए का नुकसान हुआ है। जबकि मधुमक्खी पालन के लिए केंद्र सरकार की ओर से खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से १० लाख रुपए का अनुदान मिला हुआ था। किसानों को प्रशिक्षित कर मधुमक्खी सप्लाई की जिम्मेदारी खादी ग्रामोद्योग बोर्ड रायपुर द्वारा राजनांदगांव के एक फर्म को दी गई थी।

तापमान बढऩे के कारण वे वहां से उड़ गईं
मिली जानकारी अनुसार कुकरीटोला के २० युवाओं को मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित कर प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण देने के लिए बकायदा पुणे से टीम आई हुई थी। यहां के २० युवाओं को गांव में ही दो महीने मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दी गई। इन युवाओं को फरवरी २०१८ में मधुमक्खी (वेलीफेरा प्रजाति) के 10-10 डिब्बे दिए गए। युवाओं द्वारा इन मधुमक्खियों को खेतों में रखकर उनके भोजन के लिए चना व सरसों की खेती की गई थी। प्रशिक्षण देने वाले व मॉनिटरिंग कर रहे अफसरों का कहना है कि मधुमक्खियों के लिए भोजन नहीं होने और तापमान बढऩे के कारण वे वहां से उड़ गईं। अब सभी डिब्बों का एक जगह डंप कर रख दिया गया है। ये डब्बे रखे रखे खराब हो रहे हैं।

कहां हुई गड़बड़ी
मधुमक्खी पालन कर रहे कुकरीटोला के युवा रामरतन ने 'पत्रिकाÓ को बताया कि जब उन्हें अफसरों ने मधुमक्खी दी, तो बताया गया कि यह वेलीफेरा प्रजाति की मधुमक्खी है। ४० डिग्री से ज्यादा तापमान होने पर ये भाग जाएंगी। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि गर्मी के महीने में यहां का तापमान तो ४० डिग्री तक पहुंचता ही है, तो फिर इस प्रजाति को क्यों मंगवाया गया। अफसरों का कहना है किसानों की ओर से लापरवाही की गई होगी। भोजन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई होगी। उन्हें सिर्फ थ्योरिकल जानकारी दी गई थी, प्रेक्टिकल का अनुभव नहीं होना भी कारण हो सकता है।

ऐसे समझे फायदे को
जानकारों ने बताया कि मधुमक्खी साल भर में एक डिब्बे मधुमक्खी लगभग ८० किलोग्राम शहद (मधु) का प्रोडक्शन करती है। एक किलो शहद की कीमत १५० रुपए है। एक बक्शे से सालभर में १२ हजार रुपए का शहद निकलेगा। ऐसे में २० डिब्बे से करीब २ लाख ४० हजार रुपए का शहद किसानों को प्राप्त होता। यह स्थानीय बाजार की कीमत है। जबकि इसकी सप्लाई विदेशों में भी होती है। वहां और अधिक दाम में सप्लाई की जाती है।

जानिए मधुमक्खी की प्रकृति को
मधुमक्खी एक कीट वर्ग की प्राणी है। ये मधु (शहद) बनाती हैं। यह झुंड में रहती हैं। एक छत्ते में एक-दो रानी मधुमक्खी और कुछ नर होते है। इसके अलावा बड़ी संख्या में श्रमिक मधुमक्खी होते हैं, जो शहद बनाने का कार्य करते हैं। इनके छत्ते मोम के होते हैं। ये फूलों में आए पराग को अपना भोजन बनाती और छत्ते में शहद का निर्माण करती हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि यदि रानी मधुमक्खी छत्ते से चली जाती है, छत्ते से सारे मधुमक्खी उसके पीछे चले जाते हैं।