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गोबर से बनी मच्छर अगरबत्ती इंसानों के लिए कितनी सुरक्षित, यह जानने चूहों पर होगा परीक्षण

- गौठानों में मवेशियों व ह्यूमन बीइंग दोनों को डेंगू-मलेरिया से बचाने रिप्लेंट का निर्माण करने खास मशीन मंगवाई गई है। प्रोजेक्ट के लिए विवि को 70 लाख रुपए का अनुदान मिला है।

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गोबर से बनी मच्छर अगरबत्ती इंसानों के लिए कितनी सुरक्षित, यह जानने चूहों पर होगा परीक्षण

गोबर से बनी मच्छर अगरबत्ती इंसानों के लिए कितनी सुरक्षित, यह जानने चूहों पर होगा परीक्षण

भिलाई. गोबर, करंज की पत्ती और सिट्रोनील ऑयल की मदद से कामधेनु विश्वविद्यालय का पंचगव्य विभाग मसकिटो रिप्लेट (मच्छर भगाओ क्वॉइल) तैयार करने में जुटी है, जो बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त रिप्लेंट को आपके घरों से बाहर कर देगा। आम तौर पर अभी बाजार में मच्छर बत्ती मिल रही है, लेकिन कामधेनु विवि खास तरह के क्वाइल का इजाद कर रहा है, जो पूरी तार जलकर आसानी से मच्छरों को दूर रखेगा। इंसानों पर इसका प्रभाव जानने के लिए शुरुआत विवि इसका परीक्षण चूहों पर करेगा। गौठानों में मवेशियों व ह्यूमन बीइंग दोनों को डेंगू-मलेरिया से बचाने रिप्लेंट का निर्माण करने खास मशीन मंगवाई गई है। प्रोजेक्ट के लिए विवि को 70 लाख रुपए का अनुदान मिला है।

एक रुपए से भी कम
पंचगव्य विभाग के नेचुरल रिप्लेंट की कीमत बाजार में मिलने वाले रासायनिक प्रोडक्ट से 30 गुना सस्ता होगा। फिलहाल इसे ग्रामीण और शहरी दोनों के लिए बजट फ्रेंडली बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है। गांव में गोबर को पवित्र माना जाता है। इसका उपयोग घरों की शुद्धता के लिए होता है। ऐसे में इसका बाजार बहुत बड़ा है, जिससे महिलाएं अपनी आय कर सकती हैं।

पंचगव्य विभाग का कहना है कि गांवों में बनाई जा रही मच्छर अगरबत्ती का फायदा और नुकसान इंसानी शरीर पर कितना हो रहा है, इसको लेकर कोई आंकड़े नहीं है। कामधेनु विवि में चल रही रिसर्च में स्वास्थ्य पर पडऩे वाले असर को मापने नागपुर की विशेष प्रयोगशाला में टेस्टिंग जारी है। फिलहाल मौजूद मच्छर अगरबत्ती से बहुत अधिक धुआ निकलता है, जिससे सांस लेने में परेशानी हो सकती है। यही वजह है कि नागपुर की लैब विवि में बनी रिप्लेंट क्वॉइल की स्मोक टॉक्सिसिटी परखने प्रयोग कर रही है। जिसके नतीजे दिसंबर अंत तक मिलेंगे।

विवि में तैयार हो रही मॉस्किटो रिप्लेंट पूरी तरह साइंटिफिक है। ंइसका प्रभाव जानने के लिए नागपुर के प्रयोगशाला में परीक्षण चल रहा है।
- डॉ. केएम कोले, डायरेक्टर, पंचगव्य सेंटर