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मानव निर्मित जंगल तैयार करने में नंदिनी माइंस ने खड़ी की पहाड़ जैसी मुश्किलें, इसलिए 20 फीसदी पौधे बन गए ठूंठ

मानव निर्मित जंगल छत्तीसगढ़ सरकार की एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। इस पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है और इसे पर्यावरण,जैव विविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मुश्किल टास्क यह है कि नंदिनी की निष्प्रयोज्य मांइस को हरा भरा ऐसे करना है, जैसे प्रकृति ने खुद बनाया हो लेकिन बनाएगा मानव।

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भिलाई

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Shiv Singh

Jun 23, 2022

मानव निर्मित जंगल तैयार करने में नंदिनी माइंस ने खड़ी की पहाड़ जैसी मुश्किलें, इसलिए 20 फीसदी पौधे बन गए ठूंठ

नंदिनी की निष्प्रयोज्य माइंस में सूखे चुके पौधों के स्थान पर नए पौधे रोपने के लिए गड्ढा खोदती महिला श्रमिक : फोटो गोकरण निषाद

भिलाई. नंदिनी की निष्प्रयोज्य माइंस में देश के सबसे बड़े मानव निर्मित जंगल की योजना में यहां की खदानें मुश्किलों का पहाड़ बन गई हैं। पानी की कमी से पिछले साल रोपे गए 20 फीसदी पौधे सूख चुके हैं जबकि जंगली सूअरों ने काफी पौधों को जड़ों से उखाड़ कर फेंक दिया है। ऐसे मुश्किल हालातों में इन उजड़े और खत्म हो चुके पौधों के स्थान पर नए सिरे से पौधे रोपने के लिए गड्ढे खोदे जा रहे हैं।
यह है योजना
दुर्ग जिले की नंदिनी की निष्प्रयोज्य माइंस की 885 एकड़ भूमि में मानव निर्मित जंगल तैयार किया जा रहा है। सरकारी प्रस्ताव के अनुसार यहां 80 हजार पौधे रोपे जाने हैं। इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत ३ करोड़ रुपए है। इसमें इको टूरिज्म विकसित करने, पक्षी प्रेमियों के लिए हब , सैर-सपाटा, आसपास क्षेत्र में रोजगार सृजन आदि शामिल है। यह प्रस्ताव पिछले वर्ष 2021 में तैयार किया गया था और डीएमएफ से राशि भी स्वीकृत की गई। तब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी जनवन कार्यक्रम के तहत नंदिनी माइंस में पौधा रोपकर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी।
जल संकट और जंगली सूअरों ने पौधों को उजाड़ा
यहां की देखरेख करने वाले एक वनकर्मी ने बताया कि मानव निर्मित जंगल तैयार करने के लिए पिछले साल रोपे गए 14 हजार 400 पौधों में 20 फीसदी पौधों को पानी की कमी, नौतपा की गर्मी और जंगली सूअरों ने उजाड़ दिया है। पत्रिका टीम ने नंदिनी माइंस के मौका मुआयना करते समय देखा कि बड़ी संख्या में पौधे सूख चुके हैं। जंगली सूअरों ने पौधों को उखाड़ कर फेंक दिया है।
पौधों की सिंचाई बड़ी चुनौती
पथराली जमीन व माइंस होने के कारण यहां बोरवेल्स सफल नहीं हो रहे हैं। बोरवेल्स सफल नहीं हो रहे हैं। ऐसे में अब वन विभाग इस सीजन वॉटर मैनेजमेंट की प्लानिंग कर रहा है ताकि अब पौधों को सूखने से बचाया जा सके।
अब आगे क्या
अब इस बारिश के मौसम में पौधे रोपने के लिए तैयारी शुरू हो गई है। सबसे पहले सूख चुके पौधों के स्थान पर गड्ढे खोद कर नए पौधे रोपे जाएंगे। इसके साथ ही अन्य खाली पड़ी वनभूमि में पौधे रोपे जाएंगे। इनमें महुआ, साल, करंज जैसे पौधे रोपे जाएंगे। इनमें अधिकांश पौधे वन विभाग की अपनी रोपणी से ही लेनी की तैयारी है।

फैक्ट फाइल
स्थान : नंदिनी माइंस
कुल एरिया : 885 एकड़
प्रोजेक्ट की अवधि : 5 साल
प्रोजेक्ट की राशि : 3 करोड़ रुपए
रोपे जाने वाले पौधे : 80 हजार

वर्सन
मानव निर्मित जंगल में पौधे रोपने की प्रक्रिया चल रही है। सूख चुके पौधों के स्थान पर नए पौधे लगाए जाने हैं। आगे की भी प्लानिंग तैयार की जा रही है। सभी समस्याओं को दूर कर लिया जाएगा।

लक्ष्मिन कहार
रेंजर धमधा, वन विभाग दुर्ग