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रहस्यों से भरा 13 वीं शताब्दी का प्राचीन शिव मंदिर, भाई-बहन के बलिदान की गाथा समेटे, कुंड के अंदर है गुप्त सुरंगों का जाल

नवरंग मंडप नागर शैली में बना देवबलौदा का प्राचीन शिव मंदिर अपने आप में खास है। कल्चुरी राजाओं ने 13 वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया।

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भिलाई

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Dakshi Sahu

Aug 09, 2021

भिलाई. राजधानी रायपुर और दुर्ग के बीच भिलाई-तीन चरोदा रेललाइन के किनारे बसे देवबलौदा गांव का ऐतिहासिक शिव मंदिर कई रहस्यों को साथ लिए हुए है। नवरंग मंडप नागर शैली में बना देवबलौदा का प्राचीन शिव मंदिर अपने आप में खास है। कल्चुरी राजाओं ने 13 वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर के अंदर करीब तीन फीट नीचे गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग और मंदिर के बाहर बने कुंड को लेकर प्रचलित लोक कथाओं के बीच यह मंदिर अपने आप में खास है। सावन सोमवार में इस प्राचीन शिव मंदिर में भक्तों का तांता लगता है। भगवान शिव को जल अर्पित करने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। ऐसा कहा जाता है जो सच्चे मन से भगवान का जल अभिषेक करता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।

छ:मासी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है..
पौराणिक कथाओं के अनुसार मंदिर को बनाने वाला शिल्पी इसे अधूरा छोड़कर ही चला गया था। इसलिए इसका गुंबद ही नहीं बन पाया। वहीं यहां मौजूद कुंड के भीतर ऐसा गुप्त रास्ता है जो आरंग में निकलता है। मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक कहानी यह भी है कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। उस दौरान छह महीने तक लगातार रात ही थी, लेकिन खगोल के इतिहास में ऐसी घटना का कहीं भी उल्लेख नहीं है। संस्कृतिकविद् एवं शिक्षक रामकुमार वर्मा बताते हैं कि शायद मंदिर के निर्माण में लंबा समय लगा होगा और लोगों ने इस लंबे समय की बात को छ:मासी रात में बदल दिया।

कुंड में है गुप्त सुरंग
यहां मौजूद प्राचीनच तालाब के बीचोबीच कलशनुमा पत्थर आज भी मौजूद है। कुंड के बारे में लोगों का कहना है कि इस कुंड के अंदर एक गुप्त सुरंग है जो सीधे आरंग के मंदिर के पास निकलती है। वह शिल्पी जब इस कुंड में कूदा तब उसे वह सुरंग मिली और उसके सहारे वह सीधे आरंग पहुंच गया। बताया जाता है कि आरंग में पहुंचकर वह पत्थर का हो गया और आज भी पत्थर की प्रतिमा वहां मौजूद है। इस कुंड में 23 सीढिय़ा है और उसके बाद दो कुएं है। इसमें से एक पाताल तोड़ कुआं है जिससे लगातार पानी निकलता है।

भाई-बहन दोनों ने लगा दी पानी में छलांग
मंदिर के बारे में दूसरी मान्यता यह भी है कि जब शिल्पकार मंदिर को बना रहा था तब वह इतना लीन हो चुका था कि उसे अपने कपड़े तक की होश नहीं था। दिन रात काम करते-करते वह नग्न अवस्था में पहुंच चुका था। उस कलाकार के लिए एक दिन पत्नी की जगह बहन भोजन लेकर आई। जब शिल्पी ने अपनी बहन को सामने देखा तो दोनों ही शर्मिंदा हो गए। शिल्पी ने खुद को छुपाने मंदिर के ऊपर से ही कुंड में छलांग लगा दी। बहन ने देखा कि भाईकुंड में कूद गया तो इस गम में वह बगल के तालाब में कूद गई। आज भी कुंड और तालाब दोनों मौजूद है और तालाब का नाम भी करसा तालाब पड़ गया क्योंकि जब वह अपने भाई के लिए भोजन लेकर आई थी तो भोजन के साथ सिर पर पानी का कलश भी था।