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बीमार बेटी का स्कूल में एडमिशन कराने कोर्ट गई मां, गोद में उठाकर कॉलेज ले जाते हैं पिता, पढि़ए स्मार्ट फोन के दौर में परवरिश की बेमिसाल कहानी

शर्मा दंपती जेनेसिस इमारे फ्रेक्ट्रा नामक हड्डी की बीमारी (sick) के साथ जन्म लेने वाली अपनी बेटी अनुजा को उसकी पहचान और मुकाम देने में जुटे हैं। बेटी अनुजा हिम्मत नहीं हारती और उसके माता-पिता हौसले को कमजोर नहीं पडऩे देते। (Bhilai news)

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भिलाई

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Dakshi Sahu

Jul 28, 2019

anuja family

बीमार बेटी का स्कूल में एडमिशन कराने कोर्ट गई मां, गोद में उठाकर कॉलेज ले जाते हैं पिता, पढि़ए स्मार्ट फोन के दौर में परवरिश की बेमिसाल कहानी

भिलाई. नन्ही सी बेटी की नाजुक हड्डियां और माता-पिता का मजबूत हौसला... संघर्ष और सफलता के बाद चेहरे पर आती मुस्कान ने परवरिश की एक सच्ची तस्वीर गढ़ दी, जो अब औरों के लिए मिसाल है। शर्मा दंपती जेनेसिस इमारे फ्रेक्ट्रा नामक हड्डी की बीमारी (Sick )के साथ जन्म लेने वाली अपनी बेटी अनुजा को उसकी पहचान और मुकाम देने में जुटे हैं। बेटी अनुजा हिम्मत नहीं हारती और उसके माता-पिता हौसले को कमजोर नहीं पडऩे देते। (Bhilai news)

दुर्ग स्थित पांच बिल्डिंग निवासी मुकेश शर्मा के घर 18 साल पहले नन्ही परी (Disable)आई। स्वास्थ्य विभाग (Health department) में नेत्र सहायक अधिकारी के रूप में कार्यरत मुकेश शर्मा याद करते हैं जब बेटे के बाद बेटी के जन्म ने लिया तो घर खुशियों से भर गया। मगर एक दिन अचानक बेटी के रोने ने उनको बेचैन कर दिया। दो साल की बेटी अक्सर रोने लगती। उनकी समझ में कुछ नहीं आया तो डॉक्टर के पास पहुंचे। उनकी बेटी के हाथ में फ्रैक्चर था।

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प्लास्टर खुलता उससे पहले एक और फ्रैक्चर हो गया। हड्डी टूटने का सिलसिला थम नहीं रहा था तब स्पेशलिस्ट डॉक्टर से संपर्क किया। पहली बार उनको मालूम चला कि बेटी को जन्म से जेनेसिस इमारे फ्रेक्ट्रा नामक हड्डी की बीमारी है। इस कड़वी सच्चाई ने उनको अंदर तक हिलाकर रख दिया, लेकिन मुकेश और उनकी पत्नी ने ठान लिया कि न खुद कमजोर पड़ेंगे और न बेटी को पडऩे देंगे। (Bhilai news)

आज होनहार बिटिया कॉलेज में
अपनी परवरिश से बेटी के जीवन में मुस्कान भरते शर्मा दंपती के सामने एक और मुश्किल आई। बेटी को स्कूल में प्रवेश दिलाने पहुंचे तो साफ इनकार कर दिया गया। शासकीय स्कूल चिखली में शिक्षिका एवं अनुजा की मां मीता बताती हैं कि जब केन्द्रीय विद्यालय में एडमिशन के लिए वे अपनी बेटी को लेकर गई तो प्रिंसिपल ने एडमिशन देने से इसलिए मना कर दिया और कहा कि पहले उसका इलाज कराएं। उसकी ललक देख पढ़ाई का हक दिलाने उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया। इंसाफ मिला और बेटी स्कूल पहुंची। होनहार बिटिया ने बारहवीं में 86 प्रतिशत अंक हासिल किए। अब वह भिलाई महिला महाविद्यालय के बीएससी माइक्रोबॉयोलॉजी में प्रथम वर्ष की छात्रा है।

पहली लड़ाई जीत गईं फिर शिक्षकों से भी मिला सहयोग
स्कूल में उन्हें लिखकर देना पड़ा कि अगर स्कूल में अनुजा के संग कोई हादसा होता है तो उसकी जिम्मेदारी उनकी होगी। मीता ने बताया कि अक्सर बीमार होने की वजह से वह कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाती थी, तब बेटी ने डायरी लिखनी शुरू की, एक दिन डायरी पढ़ी तो समझ आया कि उसे स्कूल से कितना लगाव है। दसवीं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद शिक्षकों ने आगे बढ़कर उसे बायोग्रुप में एडमिशन दिया।

बेटी की सुविधा के लिए कॉलेज ग्राउंड फ्लोर पर लाया कक्षा-लैब
शर्मा दंपती कहते हैं कि अक्सर कई पैरेंट्स अपने बच्चों की कमियों को समाज के बीच लाने कतराते हैं, लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया। बेटी को यह पता है कि उसे क्या बीमारी है उसने खुद को समझा लिया है और वह इसी के साथ आगे बढऩा चाहती है। हाल में भिलाई महिला कॉलेज में उसका एडमिशन कराया है। जहां उसकी सुविधा के लिए क्लास नीचे आ गई, लैब की सुविधा भी ग्राउंड फ्लोर पर मिल गई। कॉलेज के गेट पर सहेलियां व्हील चेयर पर लेने आ जाती है और प्रोफेसर्स हो या कोई और हर कोई उसकी मदद को आगे हाथ बढ़ाता है।

हड्डी टूटने का असहनीय दर्द सहने वाली मेरी साहसी बेटी
मुकेश शर्मा बताते हैं कि बेटी अनुजा में जीने की जीजिविषा गजब की है। हड्डी के टूटने और उसे जोडऩे का दर्द सहना आम बात नहीं है पर उनकी बेटी ने लगातार 12 साल तक वह दर्द सहा जो सामान्य बच्चे नहीं झेल पाते। कई बार बेटी के दोनों पैर और दोनों हाथों में तीन-तीन महीने प्लास्टर होता। बेटी के दर्द को देख लगता कि कैसे उसे संभालेंगे पर बेटी के साहस को देखा तो उन्हें भी हिमम्त मिली। अनुजा कहती हैं कि उनके पैरेंट्स ने उन्हें जो दिया वह कोई और नहीं कर सकता। उसका सपना है कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी कर अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करे। (Bhilai news)

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