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भिलाई गोलीकांड की बरसी पर विशेष : श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी ने बीएसपी से की थी यूनियन की शुरुआत

लोगों को यह जानकार आश्चर्य होगा कि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक एवं श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी ने यूनियन की शुरुआत बीएसपी के ब्लास्ट फर्नेस यूनिट से की थी।

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Shanker guha niyogi

श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी ने बीएसपी से की थी यूनियन की शुरुआत

भिलाई. लोगों को यह जानकार आश्चर्य होगा कि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक एवं श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी का भिलाई इस्पात संयंत्र से पुराना रिश्ता रहा है। वे बीएसपी के ब्लास्ट फर्नेस के कमर्चारी थे। उन्होंने यूनियन की शुरुआत बीएसपी के ब्लास्ट फर्नेस यूनिट से की थी। यूनियन में उनकी भूमिका और गतिविधियों को संयंत्र प्रबंधन ने खतरा बताकर उन्हें काम से निकाल दिया था। यहां काम से निकाले जाने के बाद उन्होंने विभिन्न जगहों एवं कंपनियों में काम के बाद दिल्ली राजहरा माइंस को कर्मभूमि के रूप में चुना था।

बीएसपी में ब्लास्ट फर्नेस एक्शन कमेटी का गठन
उनकी हत्या के बाद छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की कमान संभालने वाले उनके श्रमिक साथी जनक लाल ठाकुर ने उक्त बातें पत्रिका से साझा की। उन्होंने एक जुलाई (01 जुलाई 1992) भिलाई गोलीकांड की बरसी पर नियोगी से जुड़े संस्मरण सुनाए। ठाकुर ने बताया कि साल 1965-66 में भिलाई स्टील प्लांट में काम करते हुए नियोगी एक यूनियन संगठक के रूप में उभरे। 1967 में उन्होंने मजदूर संगठन 'ब्लास्ट फर्नेस एक्शन कमेटीÓ के गठन में मदद पहुंचाई। जल्द ही उन्हें सुरक्षा के लिए खतरा बताकर संयंत्र प्रबंधन ने नौकरी से निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के सीमावर्ती वनांचल क्षेत्र चंद्रपुर और गढ़चिरौली में काम प्रारम्भ किया। इस दौरान उन्होंने विभिन्न प्रकार के काम किये। कभी वन मजदूर के रूप में काम किया तो दुर्ग में मछलियां पकडऩे और बकरी चराने का काम किया, कैरी जुन्गेरा में उन्होंने खेत मजदूर के रूप में भी काम किया था। दल्ली राजहरा माइंस को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले नियोगी ने लोहे की खदान में मजदूर के रूप में काम भी किया। इसके बाद छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के रूप में एक बड़ा श्रमिक संगठन बनाया।

गरीब मजदूरों की कहीं सुनवाई नहीं हो रही
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के जनक लाल ठाकुर ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी यहां के गरीब मजदूरों की सुनवाई नहीं हो रही है। शुरू से लेकर आज तक प्रशासन और सरकार मोर्चा के पदाधिकारियों के खिलाफ फर्जी केस लगाकर आंदोलन को कुचलने का प्रयास ही किए है। वहीं पूंजीपतियों के मामले की सुनवाई जल्द होकर फैसले भी आ जाते हैं। हम लोग गरीब हैं इसलिए सरकार के खिलाफ मानहानि का दावा भी पैसों के अभाव में नहीं कर पाते हैं।

न्याय पालिका पर पूरा भरोसा
उन्होंने हॉल ही में छत्तीसगढ़ के चीफ जस्टिस टीबी राधाकृष्णन के उस बयान का हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि जज को सिर्फ जज की भूमिका ही नहीं बल्कि मध्यस्थता कर फैसला देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोर्चा के श्रमिकों का मामला 22 साल से लंबित है। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस के बयान से फैसले की उम्मीद जगी है और हमें अब सिर्फ न्याय पालिका पर ही भरोसा है।