
ग्राम नंदौरी बन रहा आत्मनिर्भर, लिख रहा अपनी गाथा
भिलाई. भिलाई . ग्राम नंदौरी आसपास के गांव से अलग है। इस गांव में कोई विपदा आती है, तो गांव के लोग किसी का मुंह नहीं ताकते। गांव के मां अन्नपूर्णा भंडार सोसायटी से निपटारा कर लेते है। यह सोसायटी उनके लिए वरदान है। इसके सहारे वे कई मुसीबत जदा की मदद भी करते हैं। 1945 में गठित इस सोसायटी का संचालन तीसरी पीढ़ी कर रही है। अब चौंथी पीढ़ी के हाथ में सौंपने की तैयारी चल रही है। इस सोसायटी के नाम पर गांव के सियानों की आज भी तारीफ लोग करते हैं।
चौंथी पीढ़ी को शिफ्ट करने की तैयारी
वर्तमान में नहूस बंछोर ही अन्नपूर्णा भंडार के अध्यक्ष हैं। उनके दादा ने इसे शुरू करने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद पिता और अब वे खुद इसकी देखरेख कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसे अगली पीढ़ी को जल्द शिफ्ट कर दिया जाएगा। इसकी शुरूआत गांव के भीखम सिंह बंछोर, मनराखनलाल बंछोर, रिखी दास वैष्णव, इतवारी राम वर्मा व हरबन निर्मल ने की थी।
800 किसानों को बचाया साहूकारों से
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में ग्राम नंदौरी के 800 किसानों को साहूकारों के कर्ज से आजाद रखने तात्कालीन बुजुर्गों ने शुरूआत कर दी थी। गांव में उन्होंने 78 साल पहले छेरछेरा पर्व के मौके पर नई परंपरा शुरू की। यहां के बुजुर्ग ने गाजेबाजे के साथ घर-घर पहुंचे। गांव वालों का हुजूम घर के सामने पहुंचा और छोली फैला कर धान मांगा। तो घर के लोगों ने हाथ खोलकर धान दिया। धान एकत्र होने के बाद बुजुर्गों ने बैठक कर गांव के तमाम लोगों बुलाया। गांव के तमाम किसानों के सामने भीखम सिंह बंछोर ने कहा कि अब नंदौरी का कोई किसान कर्ज लेने सेठ-साहूकारों के दरवाजे नहीं जाएगा। किसान की जरूरत को अन्नपूर्णा भंडार से पूरा किया जाएगा। इसके एवज में वह बाद में कुछ अतिरिक्त धान के साथ इसे लौटा देगा। हर किसी किसान का चेहरा खिल उठा। तालियों के साथ इस परंपरा को गांव के लोगों ने अपना लिया।
धान रखने बनाना पड़ा कोठा
साल-दर-साल धान एकत्र होता गया। धान की मात्रा जब बहुत अधिक होने लगी, तब उन्होंने गांव के बीच में एक अन्नापूर्णा भंडार के नाम से कच्ची कोठी बना दी। गांव के लोग अब शादी, ब्याह या शोक कार्यक्रम के लिए उधार धान गांव से ही लेने लगे। बुजुर्गों की मंशा कामयाब हो गई। गांव का किसान अब सेठ साहूकारों के पास ब्याज से रुपए लेने नहीं जाता।
कहां खर्च करते हैं सोसायटी का रकम
सोसायटी का रकम पदाधिकारी विपदा के वक्त ही खर्च करते हैं। गांव में किसी गरीब परिवार में मौत हो जाए, तो उसके लिए धान देकर मदद कर दी जाती है। गर्मी के दिनों में नहर में पानी छोड़ा जाता है, इससे शीतला तालाब व दूसरे तालाबों में पानी भरा जाता है। नहर किसी भी स्थान से फूट जाता है। तब सोसायटी बिना विलंब किए इसका मरम्मत करवा देती है।
गांव को बनाया आत्मनिर्भर
गांव के बुजुर्गों ने इस गांव को आत्मनिर्भर बनाया है। नंदौरी में स्कूल का अतिरिक्त कमरा, आजादी के पहले से बने कुंआ की मरम्मत 60 हजार से किए, ५० साल पहले गांव की कच्ची सड़क, 4 लाख में बनवाया सांस्कृतिक भवन, दो साल पहले तालाब के पास शीतला मंदिर का निर्माण सोसायटी के फंड से करवाया। इसके अलावा वर्तमान में गांव से एकत्र किए धान को जिस भवन में रखा जाता था, उसकी मरम्मत किया जा रहा है।
Published on:
08 May 2023 07:07 pm
