
भिलाई. मानवाधिकार की टीम को केवल सोनी सोढ़ी ही क्यों दिखाई देती है? बस्तर में पीडि़त और भी आदिवासी हैं। एक बार वहां जाकर देखें। दिल्ली में बैठकर सब कुछ नजर नहीं आता। यह बातें डॉ प्रेरणा मल्होत्रा ने कही। स्वामी स्वरूपानंद कॉलेज में हुए एक व्याख्यान में शामिल होने आई दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ प्रेरणा ने छात्राओं के प्रश्न के जवाब में कहा कि नक्सलवाद को खत्म करने का प्रयास ही नहीं किया जा रहा। अगर यहां से नक्सली समस्या खत्म हो गई और बस्तर का विकास हो गया तो कई लोगों की दुकानदारी बंद हो जाएगी।
कुछ लोग चिंतक बनकर आदिवासियों को भटका रहे
उन्होंने खुलकर कहा कि जब बस्तर के विकास की बात होती है और वहां सड़क, रेल, उद्योग लाने की पहल होती है तो आदिवासी नहीं बल्कि वे लोग विरोध में उतरते हैं जो वहां का विकास नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में माओवाद पनपा नहीं बल्कि इसे बाहर से आयात किया गया है। कुछ लोग चिंतक बनकर आदिवासियों को भटका रहे हैं। यह जंगल की लड़ाई नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों और विदेशों से भेजी गई है। अपने व्याख्यान में उन्होंने बताया कि आदिवासियों की समस्या को जानने उन्होंने पांच दिन अबूझमाड़ में रहकर जाना कि किस तरह आदिवासी नक्सली और शासन के बीच पिसकर रह गया है।
गूगल से अबूझमाड़ ही गायब
डॉ प्रेरणा ने कहा कि गूगल मैप में छोटे से छोटे होटल और शहर का नक्शा है, लेकिन इतने बड़ा अबूझमाड़ केवल जंगल के रूप में नजर आता है। बस्तर के जंगलों में नक्सली घर से बच्चों को मांगते हैं ताकि वे उनके दलम के सदस्य बन जाए और जब माता-पिता बच्चों को नहीं भेजना चाहते तो सारे गांव के सामने उनकी हत्या कर दी जाती है। तब मानव अधिकार की टीम वहां नहीं जाती, क्योंकि वे आदिवासी कोई फेमस पर्सनालिटी नहीं है।
दूसरे प्रदेशों से आए नक्सलवादी
उन्होंने कहा कि बस्तर में नक्सली स्थानीय आदिवासी नहीं बल्कि आंध्रप्रदेश सहित अन्य राज्यों से आए लोग हैं जो उन्हें डरा-धमका कर अपने मिशन में शामिल कर रहे हैं। अगर वे उनके साथ नहीं जाते तो उन्हें परिजनों की जान से हाथ धोना पड़ता है।
गृहमंत्री को दी रिपोर्ट
पांच महीने पहले जेएनयू और डीयू के प्रोफेसर्स के साथ बस्तर का दौरा कर चुकी डॉ प्रेरणा ने बताया कि बस्तर के विश्लेषण के बाद उनकी टीम ने रिपोर्ट गृहमंत्री सहित उन लोगों को सौंपी है जो यहां के लिए रणनीति बनाने और फंडिंग के लिए फैसले लेते हैं। उन्होंने बताया कि आदिवासियों के नाम पर जो अरबों रुपए केन्द्र से आते हैं वह आदिवासियों तक पहुंचते ही नहीं।
Updated on:
23 Nov 2017 11:32 am
Published on:
22 Nov 2017 11:50 pm
