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कदाचारी, भ्रष्टाचारी नहीं, सदाचारी बनें-आचार्य महाश्रमण

शास्त्रों का ज्ञान हो तो बहुत विशिष्ट बात होती

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कदाचारी, भ्रष्टाचारी नहीं, सदाचारी बनें-आचार्य महाश्रमण

कदाचारी, भ्रष्टाचारी नहीं, सदाचारी बनें-आचार्य महाश्रमण

भीलवाड़ा।
आचार्य महाश्रमण के चतुर्मास की सम्पन्नता के अंतिम रविवार को भीलवाड़ा वासियों का सौभाग्य चरम पर था। आचार्य महाश्रमण के नित्य जीवनोपयोगी प्रवचन के साथ ही आज उन्हें अपने गुरुमुख से गुरुधारणा सम्यकत्व दीक्षा ग्रहण करने का अवसर भी प्राप्त हो गया।
महाश्रमण समवसरण पांडाल से आचार्य महाश्रमण ने कहा कि कई व्यक्ति बहुश्रुत होते हैं। शास्त्रों का वेत्ता होना बड़ी बात होती है। बहुश्रुत के पास बहुत सुना हुआ, पढ़ा हुआ, देखा हुआ ज्ञान होता है। अनेक भाषाओं का ज्ञान, विभिन्न विषयों का ज्ञान किसी के पास भी हो सकता है। कोई साधु यदि बहुश्रुत हो जाए तो सोने पे सुहागा वाली बात हो सकती है। सयंम साधना का जीवन और विभिन्न विषयों, शास्त्रों का ज्ञान हो तो बहुत विशिष्ट बात हो जाती है।
ज्ञान होना विशिष्ट बात है, किन्तु ज्ञान आचरण में उतर जाए तो मानों पूर्णता की बात हो सकती है। केवल ज्ञान से ही नहीं अपने आचरणों के माध्यम से आदमी सम्मान को प्राप्त कर सकता है। बहुश्रुत होने के साथ-साथ अच्छा आचरण हो तो वह सम्माननीय हो जाता है। ज्ञान आचार के साथ हो तो परिपूर्णता की बात हो सकती है। विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी ज्ञान अर्जित करते हैं। उनमें ज्ञान के साथ-साथ आचरण की शुद्धता का भी विशेष ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। कदाचार, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, अनाचार से बचने ओर सदाचार की दिशा में गति-प्रगति करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य ने भीलवाड़ावासियों को सम्यकत्व दीक्षा (गुरुधारणा) करवाई तो पूरा पंडाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। मुनि सुरेशकुमार हरनावां की आत्मकथा जो मैंने जीया पूज्यचरणों में लोकार्पित की गई। पुस्तक के संदर्भ में मुनि सम्बोध कुमार ने अवगति प्रस्तुत की। नाहर सिस्टर्स (आकांक्षा-चुनौती) हिरेण चोरडिय़ा, अपेक्षा पामेचा व संजय भनावत ने गीतों के माध्यम से अपनी भावनाएं प्रकट की।