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भरत की आंखे बोलती है- मां मैं हूं ना

मुंह में जुबान है, परंतु बोल नही सकता। कान है, परंतु सुन नहीं सकता। फिर भी अपना और मां का पेट पालन के लिए वह चाय की थड़ी लगाकर कुछ पैसे कमाने की जहदोजहद में दिन रात बीगोद कस्बे का 40 वर्षीय दिव्यांग भरत व्यास कड़ी मेहनत कर रहा है। इसके बावजूद परिवार का खर्चा चलाने के लिए पर्याप्त पैसे की कमाई नहीं हो रही है।

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भरत की आंखे बोलती है- मां मैं हूं ना

भरत की आंखे बोलती है- मां मैं हूं ना


मुंह में जुबान है, परंतु बोल नही सकता। कान है, परंतु सुन नहीं सकता। फिर भी अपना और मां का पेट पालन के लिए वह चाय की थड़ी लगाकर कुछ पैसे कमाने की जहदोजहद में दिन रात राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के बीगोद कस्बे का 40 वर्षीय दिव्यांग भरत व्यास कड़ी मेहनत कर रहा है। इसके बावजूद परिवार का खर्चा चलाने के लिए पर्याप्त पैसे की कमाई नहीं हो रही है।

मूक बधिर भरत के सिर से पिता और भाई का सहारा उठ जाने से कक्षा आठवीं तक की ही पढ़ाई कर सका। बस स्टैंड पर चाय की थड़ी लगाकर भरत अपनी मां कमला देवी के लिए कुछ पैसे कमाने की कोशिश में लगा है। मां अपने मूकबधिर बेटे को लेकर चिंता में रहती है। परंतु दिल पर पत्थर रखकर चाय की थड़ी पर भेज देती है जिससे कुछ पैसे मिल जाए और दो वक्त की रोटी खा सके।


भरत और मां कमला देवी को पेंशन और अनाज मिलता है। फिर भी आर्थिक मदद की जरूरत है। कमला देवी ने बताया कि चाय की थड़ी से गुजारा नहीं होता है। आर्थिक परेशानी अधिक है। मूकबधिर बेटे का शरीर भी साथ नहीं देता है, जिससे हर समय चिंता सताती रहती है।