जिले में 100 से अधिक चिमनी तथा 400 से अधिक साधारण ईंट भट्टे हैं। इन भट्टों पर काम करने वाले लोग परिवार के साथ भट्टों पर ही रहते हैं। वहां बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बंद कर काम पर लगा लेते हैं। एक भट्टा मजदूर ने बताया, वे भट्टे पर कई महीने पहले से अपने घर से रहने आ जाते हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई कराए भी तो कैसे? उनके बच्चे भी काम में हाथ बंटाते हैं। तब जाकर साल भर के खाने का काम चल पाता है। वह भट्टे पर काम के लिए भट्टे मालिक से हजारों रुपए पेशगी के लेते हैं। इससे कर्ज चुका भट्टे पर आ जाते हैं। भट्टे पर ईंट बनाने का काम ठेके पर करते हैं। बच्चे हाथ बंटाते हैं। एक मजदूर ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई के बारे में सोचे या कर्ज उतारने की जुगत करें। जिले में कई भट्टों पर इसी तरह के परिवार जीवन-यापन करने के लिए बच्चों सहित काम में लगे हुए हैं। इनके बच्चों के लिए भट्टों के पास ही स्कूल भी खोले हैं, लेकिन कुछ दिन बच्चे स्कूल जाते है, फिर बन्द कर देते हैं।
भीख मांग बिगड़ रहा भविष्य
मंदिरों व सार्वजनिक स्थलों पर बच्चे भीख मांगते बच्चे सर्व शिक्षा अभियान की असलियत बयान कर रहे हैं। इसमें छह वर्ष से 14 वर्ष के हर बच्चे को शिक्षा का मौलिक अधिकार माना है। इसके बावजूद शहर में मंदिर, रेलवे स्टेशन व अन्य स्थानों पर भीख मांगकर भविष्य व बचपन नष्ट करते बच्चे आसानी में दिख जाएंगे। जिम्मेदार अधिकारी इन्हें देखकर भी अनजान हैं। बच्चों को सही समय पर स्कूली शिक्षा न मिल पाने से अन्य कामों में परिवार के लोग लगा देते हैं। गांवों में कई लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। बच्चे खेती तथा अन्य काम करते हैं। खास बात है कि इनके परिवार की माली हालत खराब होती है। इसकी वजह से उन्हें काम-धंधे में लगना पड़ता है। जिले में समेकित बाल संरक्षण योजना संचालित है। इसमें भीख मांगने, कूड़ा बीनने व मजदूरी करने वाले बच्चों का चयनित कर उनके पुनर्वास किया जाता है। इसमें बच्चों के भरण-पोषण के लिए रुपए दिए जाते हैं।
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वार के हिसाब से मांगते भीख
भिक्षावृत्ति में लिप्त कई बच्चे वार के अनुसार भीख मांगते है। शनिवार व मंगलवार के दिन भीख मांगने वाले बच्चे ज्यादा हैं। इन बच्चों को महज 50 रुपए प्रतिदिन में भीख मंगवाने का काम कराते हैं। इसकी जानकारी पुलिस-प्रशासन को होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं।
दो साल में पकड़े 26 बच्चे
सीडब्ल्यू सी ने दो साल में 26 बच्चों को पकड़ा है। वर्ष 2021 में 21 तथा वर्ष 2022 में अब तक 5 बच्चों को पकड़ा है।
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कलम की जगह झाडू
जिस उम्र में बच्चे के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए, उसमें हाथ में कहीं झाड़ू है तो कहीं चाय की केतली। उनका बचपन सिसक रहा है। कम उम्र में रुपए-पैसों का हिसाब किताब आ गया लेकिन भविष्य का अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं। चाय की दुकान हो या ढाबे, ज्यादातर जगह बच्चे मजदूरी करते दिख जाएंगे।
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जागरूकता की जरूरत
14 साल से कम आयु वाले बच्चों से काम कराने वाले दुकानदारों पर जुर्माना व तीन साल की सजा का प्रावधान है। लोगों में जागरूकता के अभाव में कठोर कार्रवाई नहीं पाती है। बाल श्रम को रोकने को सबको जागरूक होना होगा।
करणसिंह यादव, श्रम उपायुक्त, श्रम विभाग