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परिंदों को नहीं भायी यूक्रेन पर बमबारी, एक माह में ही लौटे चावंडिया

इस बार भी पक्षी अपने मूल ठिकाने लौटे लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की बमबारी, विकिरणों और युद्धक विमानों से उपजे ध्वनि व वायु प्रदूषण के चलते अपने ठिकानों की आबोहवा रास नहीं आई

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Birds returned within a month in bhilwara

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भीलवाड़ा।

रूस-यूक्रेन युद्ध परिंदों को भी रास नहीं आ रहा। युद्ध प्रवासी पक्षियों के लिए खतरा बन गया। खासकर ऐसे पक्षियों के लिए जो साइबेरिया और ठंडे यूरोपीय देशों से सर्दियों में प्रवास के लिए भारत आते हैं। ये फरवरी व मार्च में यहां से अपने घर लौट जाते हैं। इस बार भी पक्षी अपने मूल ठिकाने लौटे लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की बमबारी, विकिरणों और युद्धक विमानों से उपजे ध्वनि व वायु प्रदूषण के चलते अपने ठिकानों की आबोहवा रास नहीं आई। इस कारण कुछ प्रजातियों के पक्षी करीब एक माह बाद ही भारतीय उप महाद्वीप लौट आए।


भीलवाड़ा के चावंडिया तालाब में भी विभिन्न प्रजातियों के परिंदे लौटे हैं। चावंडिया तालाब में मई में भी प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां नजर आ रही है। चावंडिया लौटने वालों में डोलमेशियन पेलिकन, पेंटेड स्टॉर्क, यूरेशियन स्पूनबिल प्रजाति के परिंदे शामिल हैं। आमतौर पर मार्च के बाद यहां ये परिंदे नहीं दिखते हैं। हर साल सर्दियों में यहां आते हैं।
पक्षी विशेषज्ञों के मुताबिक प्रवासी पक्षी सेंट्रल एशियन फ्लाई-वे के माइग्रेशन रूट से ट्रांस यूरोपियन देश और रूस तथा साइबेरिया आदि जगह लौट गए थे। हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध में बमबारी, विकिरण और लड़ाकू विमानों की ज्यादा आवाजाही ने इन्हें परेशान कर दिया। लिहाजा ये भारतीय उपमहाद्वीप में लौटने लगे। उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध क्षेत्र के वेटलैंड से प्रवासी पक्षी हर साल काफी संख्या में भारतीय उपमहाद्वीप में आते हैं। इनकी वापसी भी इन्हीं वेटलैंड पर होती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते इस बार जिले के पक्षी ग्राम चावंडिया तालाब में तीन-चार दिन पहले पक्षियों का एक समूह लौट आया है। इस प्रजाति के पक्षी मार्च-अप्रेल में यहां से अपने देश लौट गए थे। हालांकि एक माह में ही लौट आए।


दो रास्ते, जिनका करते इस्तेमाल
पक्षी संरक्षण दल के सचिव शुभम ओझा ने बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध क्षेत्र के पास तीन फ्लाई वे हैं। इसमें सेंट्रल एशियन फ्लाई-वे, वेस्ट एशियन-ईस्ट अफ्रीकन फ्लाई-वे तथा ब्लैक सी-मेडिटेरियन फ्लाई-वे जुड़ते हैं। इनसे सेंट्रल एशियन फ्लाई-वे, वेस्ट एशियन-ईस्ट अफ्रीकन फ्लाई-वे से भारतीय उपमहाद्वीप में पक्षियों का माइग्रेशन होता है। भारत आने वाले प्रवासी पक्षी अपने आने जाने के लिए सेन्ट्रल एशियन फ्लाई वे के पांच माइग्रेशन रूट का इस्तेमाल करते हैं। इनमें दो रूट यूक्रेन के आसपास के हैं, जिसे ग्रीन रूट कहा जाता है।

इस तरह डर के कारण पहली बार वापसी
युद्ध के कारण विषैले धुएं और रेडिएशन ने प्रवासी पक्षियों को डरा दिया। वे सीजन में मूल स्थानों पर वापसी के बाद पहली बार यहां लौट रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञों के मुताबिक सेन्ट्रल एशियन फ्लाई-वे से करीब 350 प्रजातियों के पक्षी आते हैं। इनमें करीब 300 प्रजातियों का जीवन वेटलैंड पर निर्भर है। सेंट्रल एशियन फ्लाई-वे भारत सहित करीब 30 देशों को कवर करता है।
शुभम ओझा, सचिव, पक्षी संरक्षण दल, पक्षी ग्राम चावंडिया