कपास के उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान को दो भागों में बांट रखा है। पहला अपर राजस्थान है, इसमें श्री गंगानगर और हनुमानगढ़ जिले आते हैं, दूसरा लोअर राजस्थान कहलाता है, इसमें भीलवाड़ा, चित्तौडग़ढ़, अजमेर, राजसमंद, पाली, नागौर, जोधपुर और अलवर जिले आते हैं। दोनों ही क्षेत्रों में इस बार तीन-तीन लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बुवाई का लक्ष्य रखा है। विशेषज्ञों के मुताबिक पिछले दो साल से अधिकांश जिले में बरसात कम होने से पानी की कमी रही, इसलिए अनुमान के विपरीत कपास का रकबा बहुत कम रहा। अपर राजस्थान सिंचित क्षेत्र होने के कारण यहां नहरों का पानी मिलने से कपास का रकबा लगभग 3 लाख हैक्टेयर रहता है, जबकि लोवर राजस्थान में किसान बारिश और कुएं के पानी पर निर्भर रहते है, इसलिए पानी के अनुरूप यहां फसल की बुवाई की जाती है।
भीलवाड़ा में रकबा घटा पिछले वित्तीय वर्ष में भीलवाड़ जिले में कपास की बुवाई का लक्ष्य करीब 42 हजार हेक्टेयर रखा गया था, लेकिन पिछले साल बरसात देर से होने और कुएं में पानी कम होने के कारण 34 हजार 219 हेक्टेयर क्षेत्र में ही बुवाई हो पाई। बरसात कम होने के कारण इस बार भी कुएं रिचार्ज नहीं हो पाए। पानी कम होने के कारण इस साल भी बुवाई कम होने की आशंका है। कृषि विभाग ने इस साल 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई का लक्ष्य रखा है। जिन किसानों के पास अभी कुएं में पानी है, उन्होंने कपास की बुवाई शुरू कर दी है।
75 हजार से भाव 1.15 लाख पहुंचा '' गत जनवरी में कॉटन का भाव प्रति कैण्डी 75 हजार रुपए था, जो मई में बढ़कर 1 लाख 15 हजार रुपए हो गया। सूत 328 रुपए प्रति किलोग्राम था, जो अब 399 रुपए प्रति किलोग्राम हो गया है। ऐसे में कॉटन मिलों के सामने संचालन का संकट हो गया है। कई छोटी मिलों ने उत्पादन ही बंद कर दिया है।
-जे.सेलवन, अध्यक्ष द साउथ इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन
पानी की उपलब्धता पर निर्भर '' भाव अच्छे होने के कारण किसान कपास की पैदावार करना चाहता है, लेकिन पानी की कमी की वजह से वह पीछे हट रहा है। यदि अभी अच्छी बरसात हो जाती है तो जिले और प्रदेश में कपास का रकबा बढ़ेगा। कपास की बुवाई जुलाई के पहले सप्ताह तक चलेगी। जिनके पास पानी की सुविधा है, उन्होंने बुवाई कर दी है।
- डा.पी.एन. शर्मा, सेवानिवृत उपनिदेशक, कृषि विभाग
पानी की कमी से रूझान कम '' पानी की कमी से कपास की खेती में किसानों का रूझान कम है। हालांकि इसके भाव अभी अच्छे है, लेकिन यह फसल सात से आठ माह का समय लेती है, ऐसे में किसान कम समय वाली फसलों की ओर आकृषित हो रहे हैं। अभी किसान सरसों की बुआई ज्यादा कर रहे हैं। सरसों के भाव भी दो साल से अच्छे मिल रहे है।
- बद्रीलाल तेली, जिलाध्यक्ष भारतीय किसान संघ