
देव डूंगरी पर उतरी थी उडऩ छतरी, तंत्र विद्या का केन्द्र रहा था कभी
पुर।
उपनगर पुर में विभिन्न देवी-देवताओं के मन्दिर एवं स्मारकों की पहाड़ी देव डूंगरी के नाम विख्यात है जो पुर के दक्षिण पूर्व में है। देव डूंगरी पर दूर से छतरी दिखती है जो उडऩछतरी के नाम से ख्यात है। इसका इतिहास अहम है। एक वक्त था जब पुर में वैष्णव धर्म की ख्याति अन्य धर्मों के साथ दिगम्बर समाज का भी वर्चस्व था। कहा जाता है। कि देव डूंगरी पर जो उडनछतरी है, वह किसी तांत्रिक की ओर से आकाश मार्ग से उडाकर ले जाई जा रही थी। इसे एक भट्टाचार्य जैन यति जो दिगम्बरी समाज के थे, उसने उक्त डूंगरी पर अपने तांत्रिक विद्या के प्रभाव से उतार लिया।
जब इनके यति जैन भटटाचार्य निधन हुआ तब उनका इसी छतरी पर अंतिम संस्कार किया गया और उनकी स्मृति में यह पत्थर का स्मारक छतरी पर स्थापित किया गया। उसी स्मारक में एक शिलालेख उनके स्मृति चिन्ह पगठ्या पर उनका नाम तथा समय विसं 1023 अंकित है। इसी पहाड़ी पर अन्य दो छतरियां जैन श्वेताम्बर की तरफ से बनी है। इसी पहाड़ी के एक हिस्से पर देवनारायण मंदिर है। इस प्रकार कई देवी-देवताओं एवं साधु यातियों के मंदिर एवं छतरियों के कारण ये देव डूंगरी पर एक साधु महात्मा रहते थे जिनका देहावसान कुछ वर्ष पहले ही हो गया था।
कहा जाता है कि वे बडे चमत्कारिक थे। गांव के बड़े, बुर्जुर्ग उनकी उम्र के बारे मे कभी भी सही अनुमान नहीं लगा सके और कहते हैं हम उनको बचपन से ही ऐसा देख रहे हैं जैसे ये अभी हैं। इससे विदित होता है कि उनकी उम्र योग क्रिया से बडी लम्बी थी। जहां पर वे रहते थे वहां पर एक बडी गुफ ा है जो भी आकर्षण का केन्द्र है।
Published on:
18 Jan 2018 12:21 pm
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