scriptदिगंबर मुनि विदेशों में जाकर करते थे जैन धर्म का प्रचार | Digambara monks used to go abroad and propagate Jainism. | Patrika News
भीलवाड़ा

दिगंबर मुनि विदेशों में जाकर करते थे जैन धर्म का प्रचार

भीलवाड़ा. मुनि आदित्य सागर के सानिध्य में जैन पुरातत्व, इतिहास व जैन मूर्ति ज्ञान पर संगोष्ठी में शनिवार को डॉ नरेन्द्र कुमार जैन टीकमगढ़ ने कहा कि पच्चीस सौ वर्ष पूर्व भगवान महावीर के समय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से लेकर सम्राट खारवेल तक भारत वर्तमान सीमाओं में नहीं सिमटा था।

भीलवाड़ाSep 10, 2023 / 11:37 am

Suresh Jain

दिगंबर मुनि विदेशों में जाकर करते थे जैन धर्म का प्रचार

दिगंबर मुनि विदेशों में जाकर करते थे जैन धर्म का प्रचार

भीलवाड़ा. मुनि आदित्य सागर के सानिध्य में जैन पुरातत्व, इतिहास व जैन मूर्ति ज्ञान पर संगोष्ठी में शनिवार को डॉ नरेन्द्र कुमार जैन टीकमगढ़ ने कहा कि पच्चीस सौ वर्ष पूर्व भगवान महावीर के समय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से लेकर सम्राट खारवेल तक भारत वर्तमान सीमाओं में नहीं सिमटा था।

 

वृहतर भारत के रुप में म्यंमार, थाईलैण्ड, लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम, श्रीलंका एवं अफगानिस्तान तक फैला था। भारतीय विद्वान, साधु एवं मुनि म्यांमार के भूमि रास्ते से दक्षिण पूर्व एशिया के इन सभी देशों में आते जाते थे। ऐसी ही पश्चिम में कौशेय मार्ग से लाल सागर तक भी भारतीय एवं जैन संस्कृति का विस्तार हो रहा था।
आरके कॉलोनी के तरणताल प्रांगण में संगोष्ठी में डॉ नरेन्द्र ने बताया कि 25 सौ वर्ष पूर्व कलिंग से बीस हजार दिगम्बर मुनि दक्षिण पूर्व एशिया के म्यांमार, थाईलैण्ड, लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम, इण्डोनेशिया आदि देशों में जाकर जैन धर्म का विस्तार किया। ऋगवेद में दिगंबर मुनि के लिए मोनिए शब्द का प्रयोग किया गया। इंडोनेशिया में आज भी एक शाकाहारी जाति है, जिसे मोन कहते हैं। यह जैन परम्परा से निकली जाति मानी जाती है। कम्बोडिया में 4500 से अधिक जैन मंदिर थे। अंकोरवाट का मंदिर भी वस्तुतः नन्दीश्वर द्वीप रचना मंदिर है लेकिन वर्तमान में इसे तथ्यों से प्रमाणित किया जाना है।

थाईलैण्ड की रामायण जैन रामायण से मिलती है। यहां के महलों में एक रत्नमय मूर्ति है, जो वस्तुतः जैन मूर्ति है। इसी देश के थिमई इलाके में कई जैन मूर्तियां मिली है। उन्होंने व्यक्तिगत एवं अन्य साथियों के साथ इन देशों की कई बार यात्रा की। श्रीलंका में भगवान महावीर से पूर्व के शिलालेख पाए गए हैं।
इस सत्र में डॉ श्रैयांश कुमार बडोत ने सम्यकत्व प्राप्ति में जिन मंदिर, जिन प्रतिमाओं की भूमिका का अपना प्रस्तुतिकरण दिया। संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र में स्थानीय महेंद्र जैन सेठी ने तमिलनाडु में जैन पुरातत्व, पंडित अंकित मरदेवरा ने वर्तमान में संग्रहालय का महत्व, डॉ सुनील जैन ने तीर्थ का स्वरूप, तीर्थों की दशा, पंडित विनोद कुमार जैन, रजवांस ने जिन मंदिर की संरचना आगम के परिपेक्ष्य में, प्रोफेसर श्रेयांस सिंघई जयपुर ने जैन धर्म की प्राचीनता, डॉ धर्मेंद्र जैन जयपुर ने जैन परम्परा में यंत्रों का महत्व विषय पर आलेख प्रस्तुत किए। संगोष्ठी की अध्यक्षता ब्रहमचारी जयकुमार जैन तथा संचालन डॉ ज्योति जैन ने किया।

Hindi News / Bhilwara / दिगंबर मुनि विदेशों में जाकर करते थे जैन धर्म का प्रचार

ट्रेंडिंग वीडियो