
Dode arrived, but CPS guideline did not come
जयप्रकाश सिंह
भीलवाड़ा। विदेशों की तर्ज पर नारकोटिक्स विभाग ने परम्परागत खेती के साथ इस बार प्रायोगिक तौर पर सीपीएस पद्धति से अफीम की खेती के लिए प्रदेश में डेढ़ हजार से ज्यादा किसानों लाइसेंस दिए। इन किसानों ने खेती भी कर ली। अफीम के पौधों पर डोडे भी आ गए, लेकिन वित्त मंत्रालय ने अब तक इसकी गाइडलाइन जारी नहीं की। खेतों से डोडे कौन ले जाएगा। फसल के बदले किसानों को कितना भुगतान होगा। यह अब तक तय नहीं है। प्रदेश में अफीम के डोडो में चिराई शुरू हो गई है। कुछ दिनों में डोडे भी पक जाएंगे। ऐसे में सीपीएस पद्धति से खेती करने वाले किसान संशय की स्थिति में है।
जानकारों के अनुसार नारकोटिक्स विभाग ने पिछले साल अक्टूबर में अफीम नीति के तहत ३.७ से ४.२ किलोग्राम मार्फिन प्रति हैक्टेयर की उपज देने वाले कई किसानों को सीपीएस पद्धति से खेती के लिए ६ आरी का लाइसेंस जारी किया था। विदेशों की तर्ज पर इस पद्दति के तहत खेतों में अफीम पर लगे डोडे नारकोटिक्स विभाग की ओर से अनुबंधित कंपनी ले जाएगी और वह सीपीएस तकनीक से डोडे से अफीम निकालेगी। किसान को फसल का एक मुश्त पैसा मिलेगा। वह अफीम का पोस्तदाना और डोडा चूरा भी नहीं रख पाएगा। जानकारों के अनुसार यदि सीपीएस पद्धति सफल रहती है तो भविष्य में देश में अफीम की खेती इसी पद्धति से होगी।
विभाग ने इस पद्धति से खेती के लिए इस बार भीलवाड़ा, चित्तौडग़ढ़ और प्रतापगढ़ के 1433 किसानों को लाइसेंस जारी किया है। जानकारों के अनुसार आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में सीपीएस पद्धति से अफीम की खेती की जा रही है। वहां अफीम की गुणवत्ता बेहतर रही है। इस पद्धति में डोडे से सीधे अफीम निकालने की प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया से निकले अफीम में मार्फिन, कोडिन फास्टेट और अन्य रसायन की गुणवत्ता बहुत अच्छी रहती है, कई देशों की दवा कंपनियां आस्ट्रेलिया से अफीम व उससे जुड़े रसायन मंगवा रही है, जबकि भारत में परम्परागत खेती के तहत डोडे में चीरा लगाकर उसका दूध बर्तन में इकठ्ठा किया जाता है। यह दूध अफीम बनने के बाद नारकोटिक्स विभाग को दिया जाता है।
नहीं मिलेगा पोस्तदाना और डोडा चूरा
वर्तमान में किसान खेत में निकली सारी अफीम नारकोटिक्स विभाग को बेचता है। विभाग गुणवत्ता के हिसाब से 870 रुपए से लेकर 3500 रुपए किलोग्राम तक उसका भुगतान करता है। किसानों को डोडे से निकला पोस्तदाना मिलता है, जिससे उनकी खेती की लागत निकल जाती है।
तस्करी पर लगेगी रोक
जानकारों का कहना है कि यदि देश में अफीम की पूरी खेती सीपीएस पद्धति से की जाती है तो भविष्य में इसकी तस्करी पर अंकुश लगेगा। न तो अफीम में मिलावट हो सकेगी और न ही इसकी तस्करी। डोडा चूरा की तस्करी पर भी रोक लगेगी। सरकार धीरे-धीरे इसका रकबा भी बढ़ाएगी। 2015 के बाद राज्य सरकार ने डोडा चूरा की खरीद बंद कर दी। अब किसानों को डोडा चूरा नष्ट करना पड़ता है, ऐसे में कई किसानों से तस्कर इसे मुहंमांगी कीमत पर खरीद ले जाते हैं। नई पद्धति में खेत में फसल से डोडा ले जाने पर किसानों को पोस्तदाना नहीं मिलेगा और न ही डोडा चूरा मिलेगा।
'' अफीम के डोडे पकने को है, लेकिन विभाग ने अब तक इसकी पॉलिसी या गाइडलाइन जारी नहीं है। किसानों को फसल के बदले कितनी राशि मिलेगी, यह अब स्पष्ट नहीं है। सरकार की क्या मंशा है, यह स्पष्ट नहीं है। विदेशों में बड़े पैमाने पर खेती होने के कारण सीपीएस पद्धति कारगर है। करीब 15 साल पहले भी विभाग ने कुछ गांवों में सीपीएस पद्धति का प्रयोग किया था, लेकिन उसके नतीजे अच्छे नहीं आए थे। - बद्रीलाल तेली, अध्यक्ष अफीम किसान संघर्ष समिति चित्तौड़ प्रांत
'' मंत्रालय से सीपीएस पद्दति से खेती करने वाले किसानों के लिए गाइडलाइन अभी नहीं आई है। जल्दी ही उसके आने की उम्मीद है। गाइडलाइन के अनुरूप इन किसानों के अफीम के डोडे लेने के बारे में निर्णय होगा। भीलवाड़ा खण्ड में 48 किसानों को इसके तहत लाइसेंस जारी किए हैं।- के.एल.छापरिया, जिला अफीम अधिकारी भीलवाड़ा
जिला अफीम कुल पट्टे सीपीएस के पट्टे
चित्तौडग़ढ़ 15755 535
प्रतापगढ़ 7646 850
भीलवाड़ा 5639 48
Published on:
02 Mar 2022 11:09 pm
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